जया एकादशी व्रत कथा | jaya ekadashi vrat katha

माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘जया एकादशी‘ कहते हैं। जो 2025 में 8 फरवरी को मनाई जाएगी, ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के पालन से व्यक्ति को भूत, प्रेत, पिशाच आदि योनियों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत की कथा इस प्रकार है:

प्राचीन काल में देवराज इंद्र स्वर्ग में राज्य करते थे। एक समय, नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार करते समय, गंधर्व गायक और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रहे थे। इस उत्सव में माल्यवान नामक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या भी शामिल थे। पुष्पवती माल्यवान को देखकर मोहित हो गई और अपने हाव-भाव से उसे रिझाने लगी। माल्यवान भी उस पर मोहित हो गया, जिसके परिणामस्वरूप दोनों का गायन और नृत्य बिगड़ गया। इंद्र ने इसे अपना अपमान समझकर क्रोधित होते हुए उन्हें शाप दिया: “तुम दोनों पिशाच योनि में जाओ और अपने कर्मों का फल भोगो।”

इंद्र के शाप के कारण, वे दोनों पिशाच बनकर हिमालय पर्वत पर कष्टदायक जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें न तो नींद आती थी, न ही भोजन का स्वाद मिलता था, और अत्यधिक ठंड के कारण वे हमेशा कांपते रहते थे। एक दिन, उन्होंने अपने पिछले कर्मों पर विचार करते हुए निर्णय लिया कि अब वे कोई पाप कर्म नहीं करेंगे।

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संयोगवश, उस दिन माघ शुक्ल पक्ष की जया एकादशी थी। उन्होंने उस दिन बिना अन्न ग्रहण किए, केवल फल-फूल खाकर उपवास किया और रात को पीपल के वृक्ष के नीचे बैठे रहे। ठंड के कारण वे सो नहीं सके और पूरी रात जागरण में बिताई। अगले दिन प्रातः होते ही, जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से उनकी पिशाच योनि समाप्त हो गई और वे पुनः अपने गंधर्व रूप में आ गए। स्वर्ग लौटकर, उन्होंने इंद्र को प्रणाम किया और अपनी कथा सुनाई। इंद्र ने उन्हें आशीर्वाद दिया और स्वर्ग में पुनः स्थान दिया।

इस प्रकार ऐसा माना जाता है कि, जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से वे पिशाच योनि से मुक्त होकर स्वर्ग में वापस आ गए। जो व्यक्ति इस व्रत को विधिपूर्वक करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है और वह मोक्ष को प्राप्त करता है।

जया एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को भूत, प्रेत, पिशाच आदि योनियों से मुक्ति मिलती है और वह सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

इस व्रत की महिमा का वर्णन पद्मपुराण में भी मिलता है।

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