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पंढरपुर वारी 2025
पंढरपुर वारी महाराष्ट्र की एक महान धार्मिक यात्रा है जो हर वर्ष आषाढ़ी एकादशी पर भगवान विठोबा (श्री विट्ठल) के दर्शन हेतु निकाली जाती है। यह वारी संत ज्ञानेश्वर महाराज (आलंदी) और संत तुकाराम महाराज (देहू) की पालखियों के रूप में आयोजित की जाती है, जिसमें लाखों वारकरी भक्त भाग लेते हैं। यह यात्रा भक्ति, अनुशासन, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक साधना का प्रतीक मानी जाती है।
इस परंपरा की शुरुआत संत ज्ञानेश्वर महाराज और संत तुकाराम महाराज की भक्ति परंपरा से जुड़ी है। यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि यह महाराष्ट्र की आत्मा, संस्कृति और लोकधर्म की जीवंत अभिव्यक्ति है।
वारी की शुरुआत कैसे होती है?
वारी की शुरुआत “पादुका यात्रा” से होती है, जिसमें संतों की पवित्र पादुका (चरण चिन्ह) को चांदी की पालखी में विराजमान कर उनके अनुयायी पदयात्रा के रूप में पंढरपुर ले जाते हैं।
पालखी परंपरा की नींव 1685 ई. में संत तुकाराम महाराज के वंशजों ने रखी थी। संत ज्ञानेश्वर महाराज की पालखी परंपरा भी 1820 के दशक में पंढरपुर वारी से जुड़ी। यह पदयात्रा लगभग 21 दिनों तक चलती है, और भक्त प्रतिदिन कीर्तन-भजन करते हुए गंतव्य की ओर बढ़ते हैं।
पैदल चलना केवल एक साधन नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि और अनुशासन का माध्यम माना जाता है। हर वारकरी यह मानता है कि यह यात्रा उनके जीवन की आध्यात्मिक उन्नति की राह है।
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2025 में पंढरपुर वारी की तिथि और प्रमुख कार्यक्रम
प्रारंभ तिथि:
- संत तुकाराम महाराज पालखी (देहू से): 18 जून 2025 (बुधवार)
- संत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी (आलंदी से): 19 जून 2025 (गुरुवार)
समापन तिथि:
- आषाढ़ी एकादशी दर्शन: 6 जुलाई 2025 (रविवार)
- पंढरपुर पहुंचने की तिथि: 5 जुलाई 2025
इस अवधि में प्रतिदिन का कार्यक्रम सुनिश्चित होता है जिसमें पालखी विश्राम स्थल, कीर्तन, धर्मशिक्षा और रिंगण उत्सव प्रमुख होते हैं।
पालखी मार्ग और प्रमुख स्थान (Route Map)
संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग (Dehu to Pandharpur):
देहू → पुणे → सासवड → जेजुरी → वल्हे → लोणंद → टरडगांव → फलटण → बारड → नातेपुते → माळशिरस → वेळापूर → भांडिशेगाव → वाखरी → पंढरपुर
संत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग (Alandi to Pandharpur):
आलंदी → पुणे → सासवड → जेजुरी → लोणंद → फलटण → नातेपुते → माळशिरस → वेळापूर → भांडी शेगाव → वाखरी → पंढरपुर
इन मार्गों पर पालखी का स्वागत विभिन्न गांवों और शहरों में किया जाता है जहाँ स्थानीय श्रद्धालु भोजन, जल, चिकित्सा और विश्राम की व्यवस्था करते हैं।
वारकरी संप्रदाय और संत परंपरा
वारी की आत्मा है वारकरी संप्रदाय, जिसकी नींव संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, संत एकनाथ, संत तुकाराम जैसे संतों ने रखी। यह संप्रदाय जाति, पंथ, वर्ग से परे केवल भक्ति, समर्पण और कीर्तन पर आधारित है।
वारकरी परंपरा में ‘हरिपाठ’, ‘अभंग’ और ‘नामस्मरण’ का अत्यंत महत्व है। यह संप्रदाय संतों की शिक्षाओं को जीवन में आत्मसात करते हुए समाज में समानता और सेवा के मूल्यों को फैलाता है।
वारी में होने वाली प्रमुख धार्मिक गतिविधियाँ
अभंग गान:
वारी की आत्मा होते हैं संतों के लिखे गए अभंग। वारकरी मंडली दिनभर इन्हें सामूहिक रूप से गाते हैं।
कीर्तन-भजन:
हर गांव में कीर्तन सोहळे आयोजित किए जाते हैं जिसमें संतों की शिक्षाओं को गीतों के माध्यम से समझाया जाता है।
रिंगण उत्सव:
पालखी के रुकने वाले विश्राम स्थलों पर पवित्र अश्व (घोड़े) की रिंगण दौड़ होती है जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है।
धर्मशिक्षा:
छोटे-बड़े वारकरी एकत्र होकर संतों की वाणी, भगवद्गीता, भागवत आदि पर चर्चा करते हैं।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
वारी केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह सामाजिक समरसता, समानता, अनुशासन और सेवा की जीवंत मिसाल है। यहाँ सभी जातियों, लिंगों और वर्गों के लोग एक समान रूप से शामिल होते हैं।
- महिलाएं बड़ी संख्या में सहभागी होती हैं।
- पर्यावरण के लिए प्लास्टिक मुक्त वारी का संदेश दिया जाता है।
- कई स्वयंसेवी संस्थाएं सेवा कार्य, मुफ्त भोजन और प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराती हैं।
सरकारी प्रबंध और स्वास्थ्य सुविधाएं 2025 के लिए
महाराष्ट्र सरकार और जिला प्रशासन की ओर से विशेष प्रबंध किए जाते हैं:
- बाइक एम्बुलेंस और मोबाइल क्लिनिक की व्यवस्था
- सीसीटीवी निगरानी और सुरक्षा बल की तैनाती
- मुफ्त जल एवं शौचालय की व्यवस्था
- आपातकालीन हेल्पलाइन और कंट्रोल रूम
कैसे शामिल हों पंढरपुर वारी 2025 में?
नए प्रतिभागियों के लिए सुझाव:
- यात्रा के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार रहें।
- समूह के साथ चलना सुविधाजनक होता है, इसलिए किसी कीर्तन मंडली या वारी ग्रुप से जुड़ें।
- आवश्यक वस्त्र: सफेद पारंपरिक धोती-कुर्ता (पुरुष), नऊवारी साड़ी (महिलाएं), टोपी/पगड़ी, रेनकोट, छाता, दवा किट, जूते, बर्तन आदि।
पंढरपुर और विठोबा मंदिर का परिचय
पंढरपुर स्थित विठोबा-रुक्मिणी मंदिर महाराष्ट्र का एक अत्यंत पवित्र स्थल है। यहां भगवान विष्णु के स्वरूप विठोबा अपने भक्तों को कृपा दृष्टि से निहारते हैं।
पंढरपुर को “दक्षिणा का काशी” कहा जाता है। यहां के प्रमुख उत्सव आषाढ़ी और कार्तिकी एकादशी हैं, जिन पर लाखों श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं।
पंढरपुर वारी से जुड़ी रोचक जानकारियाँ और परंपराएँ
- पवित्र अश्व: रिंगण में भाग लेने वाला घोड़ा संतों का प्रतीक माना जाता है। उसकी दौड़ को शुभ माना जाता है।
- पादुका पूजन: पालखी की शुरुआत और समापन पादुका पूजन के साथ होती है।
- पगफेरा: कुछ वारकरी प्रतिदिन चरण पखारने की सेवा करते हैं।
- सामूहिक रात्रि विश्राम: सभी वारकरी मैदानों में खुले आसमान के नीचे विश्राम करते हैं।
निष्कर्ष: आस्था, अनुशासन और आध्यात्मिक यात्रा का संगम
पंढरपुर वारी केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह मानवता, भक्ति, अनुशासन और सेवा का महासंगम है। यह यात्रा एक ऐसा अनुभव है जो जीवन में आत्मिक स्थिरता, संयम और सह-अस्तित्व की भावना को जाग्रत करता है।
वारकरी कहते हैं — “ज्ञानेश्वर माऊलीचा नाम घे, तुकाराम महाराजांचा अभंग गा, विठोबा भेटीची वाट पहा।” यही वारी का सार है — एक संगठित, अनुशासित और आध्यात्मिक युगयात्रा।
अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: Pandharpur Wari 2025: Date, Route Map, Tradition.