देवशयनी आषाढी एकादशी कब है? जानिए पूजा विधि, सही समय और नियम!

आषाढी एकादशी कब है ?

आषाढी एकादशी, जिसे देवशयनी आषाढी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धार्मिक कैलेंडर में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है, विशेष रूप से महाराष्ट्र और उन क्षेत्रों में जहाँ भगवान विठोबा (विठल) की पूजा की जाती है। यह आषाढ़ मास के 11वें दिन (हिंदू कैलेंडर के अनुसार) मनाई जाती है। यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण उपव्रत का दिन है, विशेष रूप से पंढरपूर में। 2025 में, देवशयनी एकादशी 6 जुलाई 2025 को पडेगी (जिसका परण समय 7 जुलाई 2025 को होगा)।

देवशयनी आषाढी एकादशी का अर्थ

देवशयनी एकादशी‘ दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है — ‘देव‘ अर्थात ईश्वर और ‘शयनी‘ जिसका अर्थ है सोना। यह एकादशी वह दिन होता है जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं। इस योगनिद्रा की अवधि चार महीनों की होती है, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। इस काल में वे बाह्य संसार की गतिविधियों से विराम लेते हैं और ब्रह्मा, शिव तथा अन्य देवताओं के कार्य भी सीमित हो जाते हैं। यह वर्णन स्कंद पुराण और पद्म पुराण में विस्तार से मिलता है। देवशयनी एकादशी से चातुर्मास आरंभ होता है और इस दिन से भक्तगण अधिक संयम, तपस्या और भक्ति के साथ जीवन जीने का संकल्प लेते हैं। यही कारण है कि यह दिन धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

देवशयनी आषाढी एकादशी क्यों मनाई जाती है?

देवशयनी आषाढी एकादशी उस दिन को दर्शाती है जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं, जिसकी स्पष्ट जानकारी स्कंद पुराण और पद्म पुराण में मिलती है। इस दिन से चातुर्मास का आरंभ होता है, जो चार महीनों तक चलता है और इस अवधि में धार्मिक अनुष्ठान, व्रत, तप, और संयमित जीवनशैली को विशेष महत्व दिया गया है। चातुर्मास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य भी शास्त्रों के अनुसार वर्जित माने गए हैं।

महाराष्ट्र के पंढरपूर नगर में इस दिन का विशेष महत्व है, जहाँ भक्तगण संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर की परंपरा में पैदल डिंडी यात्रा करते हुए भगवान विठोबा के मंदिर तक पहुँचते हैं। यह यात्रा केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं होती, बल्कि सामाजिक एकता, अनुशासन और भक्ति भावना का जीवंत उदाहरण भी होती है।

देवशयनी आषाढी एकादशी का महत्व

देवशयनी आषाढी एकादशी भगवान विष्णु के योगनिद्रा में प्रवेश का दिन है, जो शास्त्रों के अनुसार चार महीनों के चातुर्मास काल की शुरुआत करता है। यह तिथि विशेष रूप से उन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है जहाँ भगवान विष्णु की पूजा विठोबा रूप में की जाती है, जैसे महाराष्ट्र का पंढरपूर। स्कंद पुराण और पद्म पुराण में वर्णन है कि इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में चले जाते हैं और यही समय आध्यात्मिक साधना, संयम, और तप का होता है।

पंढरपूर में भगवान विठोबा के दर्शन के लिए हर वर्ष लाखों भक्त पदयात्रा करते हैं। यह एकादशी केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इस दिन की पूजा और व्रत से व्यक्ति को संयमित जीवन, नियमित साधना और आत्मिक उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है। यही कारण है कि देवशयनी एकादशी को वर्ष की प्रमुख एकादशी माना जाता है।

देवशयनी आषाढी एकादशी 2025 की तिथि और समय

देवशयनी आषाढी एकादशी वर्ष 2025 में रविवार, 6 जुलाई को मनाई जाएगी। यह एकादशी तिथि शनिवार, 5 जुलाई 2025 को शाम 6:58 बजे प्रारंभ होगी और रविवार, 6 जुलाई को रात 9:14 बजे समाप्त होगी। व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए परण (उपवास समाप्त करने का समय) सोमवार, 7 जुलाई 2025 को प्रातः 5:29 बजे से 8:16 बजे के बीच निर्धारित है। द्वादशी तिथि उसी दिन यानी 7 जुलाई को सुबह 11:10 बजे तक रहेगी। इन समयों की गणना पंचांगों के अनुसार की गई है और यह व्रत-विधि में शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

देवशयनी आषाढी एकादशी के अनुष्ठान और पूजा विधि

देवशयनी आषाढी एकादशी के दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करते हैं। महाराष्ट्र में विशेष रूप से भगवान विठोबा (विठ्ठल) और उनकी पत्नी देवी रुक्मिणी (रुख्माई) की संयुक्त पूजा की जाती है, जिन्हें विष्णु और लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इस अवसर पर निम्नलिखित धार्मिक क्रियाएं प्रमुख रूप से की जाती हैं:

  1. प्रातःकालीन पूजा: व्रतधारी व्यक्ति प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और घर या मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। पंढरपूर में लाखों श्रद्धालु विठोबा मंदिर की यात्रा करते हैं और भक्ति गीतों के माध्यम से आराधना करते हैं।
  2. व्रत का पालन: अधिकतर लोग निर्जल व्रत रखते हैं, जिसमें न तो अन्न ग्रहण किया जाता है और न ही जल। कुछ श्रद्धालु फलाहार या केवल दूध का सेवन करते हैं।
  3. वेदमंत्र और नामस्मरण: इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का उच्चारण विशेष रूप से किया जाता है, जिसे वैदिक शास्त्रों में विष्णु भक्ति का मूलमंत्र माना गया है।
  4. मंदिरों के दर्शन: विष्णु अथवा विठोबा मंदिर में जाकर दर्शन और आरती में भाग लेना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। पंढरपूर में डिंडी यात्रा के माध्यम से यह परंपरा जीवंत रहती है।
  5. तुलसी अर्पण: पूजा के दौरान भगवान विष्णु को तुलसी पत्र चढ़ाए जाते हैं। तुलसी को श्रीहरि की अत्यंत प्रिय माना गया है और यह विधान पद्म पुराण तथा गरुड़ पुराण में उल्लेखित है।
  6. धार्मिक ग्रंथों का पाठ: भक्तजन भगवद गीता, विष्णु सहस्रनाम, श्रीमद्भागवत पुराण आदि ग्रंथों का श्रवण व पाठ करते हैं ताकि वे आध्यात्मिक दृष्टि से जागरूक और संतुलित जीवन की ओर अग्रसर हो सकें।

आषाढी एकादशी उपव्रत नियम

हैं और धार्मिक अनुशासन के लिए अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं:

  1. भोजन और जल का त्याग: इस दिन अधिकतर श्रद्धालु निर्जल व्रत रखते हैं, जिसमें ना भोजन किया जाता है और ना ही जल ग्रहण किया जाता है। यदि स्वास्थ्य कारणों से पूर्ण उपवास संभव न हो, तो केवल फल या दूध का सेवन किया जा सकता है।
  2. मांसाहार और तामसिक भोजन वर्जित: व्रत के दिन मांसाहार, अंडा, प्याज, लहसुन, शराब और अन्य तामसिक खाद्य पदार्थों का सेवन पूरी तरह से निषिद्ध होता है। व्रती केवल सात्विक और शुद्ध आहार का ही पालन करते हैं।
  3. पारण विधि का पालन: व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि पर किया जाता है, वह भी सूर्योदय के बाद और निर्धारित समय सीमा के भीतर। पारण से पूर्व विष्णु पूजन और तुलसी जल अर्पण करना आवश्यक होता है। यह नियम धर्मसिंधु और व्रतराज जैसे शास्त्रों में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है।
  4. आचरण की शुद्धता: इस व्रत के दौरान केवल खान-पान ही नहीं, बल्कि विचार, वाणी और व्यवहार में भी संयम अपेक्षित होता है। दिनभर भगवान विष्णु के नाम का स्मरण, भक्ति गीतों का गायन और धार्मिक ग्रंथों का पाठ मानसिक शुद्धता और आत्मिक बल को बढ़ाता है।

पंढरपूर में आषाढी एकादशी का महत्व

महाराष्ट्र के पंढरपूर शहर में देवशयनी आषाढी एकादशी का विशेष महत्व है। माना जाता है कि यहाँ भगवान विष्णु ने भगवान विठोबा के रूप में अवतार लिया था। हर साल, महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से हजारों तीर्थयात्री पंढरपूर आते हैं, भजन (अभंग) गाते हुए और भगवान विठोबा के दर्शन करते हुए। आषाढी एकादशी के दिन यहाँ की यात्रा एक लंबी परंपरा बन चुकी है, और यह शहर भक्तों से भर जाता है।

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देवशयनी एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है?

देवशयनी एकादशी को वैष्णव परंपरा में वर्ष की प्रमुख एकादशी के रूप में माना गया है, जिसे ‘महाएकादशी‘ या ‘बड़ी एकादशी’ भी कहा जाता है। इसका विशेष कारण यह है कि इसी दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं और चातुर्मास का शुभारंभ होता है। स्कंद पुराण तथा पद्म पुराण के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से साधक के चित्त में स्थिरता, तप में दृढ़ता और भक्ति में गहराई आती है। इस दिन की पूजा और संयमित आचरण, व्यक्ति को आध्यात्मिक प्रगति की दिशा में अग्रसर करता है।

देवशयनी एकादशी के मंत्र

देवशयनी एकादशी के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण शांति और आशीर्वाद लाता है:

  1. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
  2. “ॐ श्री विठोबा नमः”
  3. “ॐ नमो नारायणाय”

ये मंत्र भगवान विष्णु और भगवान विठोबा का आशीर्वाद प्राप्त करने, मन को शुद्ध करने और आध्यात्मिक जागरण के लिए उपयोग किए जाते हैं।

देवशयनी एकादशी पर भगवान विठोबा की पूजा कैसे करें

इस दिन भगवान विठोबा की पूजा एक प्रिय अभ्यास है। पूजा करने के लिए:

  1. स्थान की शुद्धि करें: पूजा शुरू करने से पहले अपने घर या मंदिर स्थान को शुद्ध करें।
  2. फूल और तुलसी पत्तियाँ चढ़ाएँ: भगवान विठोबा की मूर्ति या चित्र पर ताजे फूल और तुलसी पत्तियाँ चढ़ाएँ।
  3. मंत्रोच्चारण करें: मंत्रों का उच्चारण करें और पूजा के साथ भजन गाएँ।
  4. प्रसाद चढ़ाएँ: पूजा में मिठाई, फल और दीपक अर्पित करें।

पूजा का समापन भक्ति गीत “पंढुरंग विठोबा” से करें और भक्त प्रसाद ग्रहण करें, जो भगवान के आशीर्वाद को प्रतीकित करता है।

अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: Devshayani Ashadhi Ekadashi 2025: date,tithi, Significance, Rituals, and Worship Practices

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