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सूर्य उपासना की परंपरा
भारत की सनातन संकृति में सूर्यदेव को प्रत्यक्ष देवता माना गया है। जहाँ अन्य देवताओं को मूर्तियों और कल्पनाओं में पूजा जाता है, वहीं सूर्य वह देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से आकाश में देखा जा �938कता है। प्रात:काल में सूर्य को जल चढ़ाना न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभकारी माना गया गया है।
सूर्य को जल चढ़ाने की धार्मिक मान्यता
सनातन धर्म में यह मान्यता है कि सूर्यदेव समस्त जगत के पालनकर्ता हैं। वह नवग्रहों में प्रमुख हैं और जीवनदायिनी ऊर्जा का मुख्य स्रोत हैं। भगवान सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा ऋग्वेद और संहिता ग्रंथों में भी उल्लेखित है। ऐसा माना जाता है कि प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्य को जल अर्पित करने से:
- पापों का क्षय होता है,
- स्वास्थ्य में सुधार होता है,
- नेत्र रोग दूर होते हैं,
- ग्रह दोष शांति मिलती है,
- आत्मा शुद्ध होती है।
सूर्य को जल चढ़ाने की वैज्ञानिक दृष्टि
(i) नेत्र स्वास्थ्य में सुधार
जब हम सूर्य की ओर जलधारा से देखते हैं, तो सूर्य का प्रकाश परावर्तित होकर आंखों पर पड़ता है, जिससे आँखों के स्नायु सक्रिय होते हैं और दृष्टि तेज होती है।
(ii) विटामिन D का स्रोत
प्रातः सूर्य की किरणें विटामिन D का सबसे अच्छा प्राकृतिक स्रोत हैं। यह हड्डियों, त्वचा और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
(iii) सकारात्मक ऊर्जा का संचार
सूर्य की किरणें जब शरीर पर पड़ती हैं तो शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इससे मानसिक तनाव कम होता है और आत्मबल में वृद्धि होती है।
सूर्य को जल कैसे चढ़ाएं: विधि और सावधानियाँ
सामग्री:
- तांबे या पीतल का लोटा
- शुद्ध जल
- लाल पुष्प (गेंदे या गुड़हल का फूल)
- अक्षत (चावल)
- रोली या कुमकुम
विधि:
- प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
- पूर्व दिशा की ओर मुख करके खड़े हों।
- तांबे के लोटे में जल भरें, उसमें रोली, पुष्प और अक्षत डालें।
- सूर्यदेव को प्रणाम करें और लोटे से धीरे-धीरे जल की धारा बनाते हुए सूर्य को अर्पित करें।
- जल चढ़ाते समय मंत्रों का उच्चारण करें।
सूर्य को जल चढ़ाने का सही समय
सूर्य को जल चढ़ाने का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल सूर्योदय के समय होता है। यह समय ‘सन्ध्याकाल’ माना जाता है, जब वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा अधिक होती है।
- ग्रीष्म ऋतु में – प्रातः 5:30 से 6:30 बजे तक
- शरद और शीत ऋतु में – प्रातः 6:30 से 7:30 बजे तक
ध्यान दें: सूर्य को दोपहर के समय या मध्याह्न के बाद जल चढ़ाना निषिद्ध माना गया है।
सूर्य को जल चढ़ाते समय बोले जाने वाले मंत्र
मुख्य मंत्र:
1. सूर्य अर्घ्य मंत्र:
ॐ मित्राय नमः - सबके मित्र को नमस्कार
ॐ रवये नमः - तेजस्वी को नमस्कार
ॐ सूर्याय नमः - सबको क्रियाशील बनाने वाले को नमस्कार
ॐ भानवे नमः - पृथ्वी को प्रकाशित करने वाले को नमस्कार
ॐ खगया नमः - आकाश में तेजी से यात्रा करने वाले को नमस्कार
ॐ पूष्णे नमः - प्राणियों को पोषण देने वाले को नमस्कार
ॐ हिरण्य गर्भाय नमः स्वर्णिम गर्भ या उस मूल द्रव्य को नमस्कार, जिससे सब कुछ उत्पन्न हुआ
ॐ मरीचये नमः - भोर के भगवान को नमस्कार
ॐ आदित्याय नमः - ब्रह्मांडीय माता अदिति के पुत्र को नमस्कार
10. ॐ सवित्रे नमः - सृष्टि के भगवान को नमस्कार
ॐ अर्काय नमः - उनको नमस्कार जो पूजनीय और पूजनीय हैं
ॐ भास्कराय नमः - उनको नमस्कार जो बाह्य और आंतरिक जगत को प्रकाशित करते हैं
आदि देवा नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभा करा नमोस्तुते।
2. गायत्री मंत्र:
ॐ भूर् भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
3. आदित्य हृदय स्तोत्र (संकल्प रूप में):
अस्य आदित्यहृदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, आदित्यहृदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता, निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
4. सूर्य गायत्री मंत्र:
ॐ आदित्याय विद्महे मार्त्तण्डाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।।
इन मंत्रों में से कोई भी मंत्र श्रद्धा और विश्वास से उच्चारित किया जा सकता है।
सूर्य को जल चढ़ाने के लाभ
(i) मानसिक शांति और एकाग्रता में वृद्धि
सूर्य को जल चढ़ाने से मन स्थिर होता है और ध्यान की शक्ति बढ़ती है।
(ii) नेत्र रोगों से राहत
आयुर्वेद के अनुसार, सूर्य की किरणें नेत्र रोगों में अत्यंत लाभकारी हैं।
(iii) ग्रह दोषों की शांति
जिन लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर होता है या दशा/अंतर्दशा में सूर्य पीड़ित होता है, उनके लिए सूर्य को जल चढ़ाना अत्यंत लाभकारी होता है।
(iv) सफलता और आत्मबल में वृद्धि
सूर्य आत्मा का कारक है — इसे प्रसन्न करने से आत्मबल और नेतृत्व क्षमता बढ़ती है।
सूर्य को जल चढ़ाने से जुड़े नियम और सावधानियाँ
- जल चढ़ाते समय सिर पर कपड़ा रखें (विशेषकर महिलाएँ)।
- जूते-चप्पल उतारकर ही पूजा करें।
- जलधारा सूर्य की किरणों के सामने सीधी होनी चाहिए।
- जल अर्पण के बाद अपने दोषों के लिए क्षमा याचना करें और शुभता की कामना करें।
निष्कर्ष: आध्यात्मिक शक्ति का जागरण
सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण, स्वास्थ्य लाभ, और नैतिक शुद्धि का एक उत्कृष्ट साधन है। जब हम प्रतिदिन प्रातः सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं, तो यह हमारी दिनचर्या में अनुशासन, आस्था, और ऊर्जा का संचार करता है।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1: क्या सूर्य को जल केवल रविवार को चढ़ाना चाहिए?
उत्तर: नहीं, इसे प्रतिदिन चढ़ाना उत्तम माना जाता है, लेकिन रविवार को विशेष रूप से महत्व दिया गया है।
Q2: क्या महिलाएं भी सूर्य को जल चढ़ा सकती हैं?
उत्तर: हाँ, पूर्ण श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए महिलाएं भी सूर्य को अर्घ्य दे सकती हैं।
Q3: क्या सूर्य को नल का जल चढ़ा सकते हैं?
उत्तर: यदि गंगाजल, कुएँ का जल, या ताजे जल की उपलब्धता न हो, तो शुद्ध नल के जल में रोली, पुष्प और अक्षत डालकर अर्पण किया जा सकता है।)