भारतीय परंपरा में गहराई से रचा-बसा वट पूर्णिमा का पर्व विवाह के पवित्र बंधन और पति की लंबी उम्र एवं समृद्धि के लिए पत्नी की भक्ति को समर्पित है। विशेष रूप से विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला यह पर्व सांस्कृतिक और भावनात्मक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्ष 2025 में वट पूर्णिमा का उत्सव महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और उत्तर भारत के कई हिस्सों में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाएगा।
इस लेख में हम वट पूर्णिमा 2025 की तारीख, महत्व, पूजा विधि, पौराणिक कथाएं और आज के समय में इसे मनाने के तरीकों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

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वट पूर्णिमा 2025 कब है?
वट पूर्णिमा 2025 की तिथि:
- दिनांक: गुरुवार, 11 जून 2025
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 10 जून 2025 को सुबह 11:35 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 11 जून 2025 को दोपहर 1:13 बजे
महिलाएं मुख्य रूप से 11 जून 2025 को वट पूर्णिमा व्रत रखेंगी।
वट पूर्णिमा क्या है और क्यों मनाई जाती है?
वट पूर्णिमा एक पवित्र हिंदू त्योहार है जिसमें विवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं और वट (बरगद) वृक्ष के चारों ओर धागा बांधकर अपने पति की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।
यह त्योहार सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से प्रेरित है। मान्यता के अनुसार, सावित्री ने अपने अद्भुत साहस और भक्ति से यमराज से अपने पति सत्यवान का जीवन वापस पाया था। वट वृक्ष, जो अमरत्व और स्थायित्व का प्रतीक है, इस व्रत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
महिलाएं वट वृक्ष के नीचे विशेष पूजा करती हैं, कथा सुनती हैं और सावित्री के समर्पण की कहानी को दोहराती हैं।
वट पूर्णिमा का महत्व
वट पूर्णिमा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है:
- प्रेम और समर्पण: यह पत्नी के अपने पति के प्रति निःस्वार्थ प्रेम और गहरे समर्पण का प्रतीक है।
- आध्यात्मिक उन्नति: सच्ची श्रद्धा के साथ व्रत रखने से आत्मा की शुद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद: व्रत करने से वैवाहिक जीवन सुखमय और दीर्घायु होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- वट वृक्ष का प्रतीकात्मक महत्व: वट वृक्ष दीर्घायु, स्थिरता और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है।
वट पूर्णिमा 2025 कैसे मनाई जाती है?
वट पूर्णिमा का उत्सव भक्ति, व्रत और पारंपरिक अनुष्ठानों से भरा होता है। आइए जानें कैसे:
1. तैयारी:
- महिलाएं प्रातः स्नान कर पारंपरिक परिधान पहनती हैं, प्रायः लाल या पीले रंग की साड़ी धारण करती हैं।
- वे चूड़ियां, सिंदूर और बिंदी से स्वयं को सजाती हैं।
2. वट वृक्ष की पूजा:
- वट वृक्ष को साफ कर रंगोली, फूलों और दीपों से सजाया जाता है।
- महिलाएं भीगे चावल, कलावा, फल और मिठाई जैसे पूजन सामग्री लेकर जाती हैं।
- वे वट वृक्ष की सात परिक्रमा करती हैं और धागा बांधती हैं।
3. सावित्री-सत्यवान कथा का श्रवण:
- पंडित अथवा कोई वृद्ध महिला सावित्री के समर्पण की कथा सुनाती हैं।
4. व्रत का पालन:
- अधिकांश महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं और पूजा संपन्न होने तक भोजन और जल ग्रहण नहीं करतीं।
5. व्रत का समापन:
- पूजा पूर्ण होने के बाद व्रत खोला जाता है और बड़ों से आशीर्वाद लिया जाता है।
वट पूर्णिमा 2025 की पूजा विधि
वट पूर्णिमा व्रत की विधि इस प्रकार है:
- प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- वट वृक्ष के पास पूजा का स्थान बनाएं।
- सर्वप्रथम भगवान विष्णु, ब्रह्मा और शिवजी की पूजा करें।
- भीगे अन्न, फल, मिठाई और कलावा अर्पित करें।
- वट वृक्ष के चारों ओर धागा बांधते हुए मंत्रोच्चार करें।
- सावित्री-व्रत कथा का श्रवण अथवा पाठ करें।
- वैवाहिक सुख एवं पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करें।
वट पूर्णिमा पूजा के दौरान बोले जाने वाले मंत्र
पूजा करते समय महिलाएं विशेष मंत्रों का उच्चारण करती हैं जो आशीर्वाद और आध्यात्मिक उन्नति के लिए होते हैं।
वट पूर्णिमा के सामान्य मंत्र:
- Om Vatvrikshaya Vidmahe, Mahakalaya Dhimahi, Tanno Yamah Prachodayat. (अर्थ: हम पवित्र वट वृक्ष और महाकाल का ध्यान करते हैं; यमराज हमें प्रेरित और मार्गदर्शन करें।)
- Om Savitri Satyavanayai Namah (अर्थ: दिव्य युगल सावित्री और सत्यवान को नमन।)
भक्ति भाव से इन मंत्रों का जाप व्रत की प्रभावशीलता को बढ़ाता है।
वट पूर्णिमा कथा: सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम गाथा
वट पूर्णिमा का पौराणिक आधार सावित्री और सत्यवान की अद्भुत प्रेम और भक्ति की कथा है।
सावित्री, सत्यवान की पत्नी, को महर्षि नारद ने पहले ही सत्यवान की अकाल मृत्यु के बारे में बताया था। फिर भी सावित्री का विश्वास अडिग रहा। नियत दिन पर जब यमराज सत्यवान का प्राण हरने आए, तो सावित्री उनके पीछे-पीछे गईं और धर्म के विषय में गहन चर्चा की।
सावित्री की बुद्धिमत्ता, धैर्य और भक्ति से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे तीन वरदान दिए। सावित्री ने चतुराई से सत्यवान के जीवन को वापस मांग लिया। जिस वट वृक्ष के नीचे सत्यवान की मृत्यु हुई थी, वह आज अमरता और दांपत्य निष्ठा का प्रतीक बन गया है।
वट पूर्णिमा व्रत 2025 को सफल बनाने के टिप्स
- शरीर और मन की पवित्रता बनाए रखें।
- पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से पूजा करें।
- सावित्री व्रत कथा को ध्यानपूर्वक सुनें या पढ़ें।
- पूजा के बाद बड़ों का आशीर्वाद अवश्य लें।
निष्कर्ष
वट पूर्णिमा 2025 केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह अटूट प्रेम, अडिग विश्वास और आध्यात्मिक शक्ति का उत्सव है। महिलाएं इस व्रत के माध्यम से अपने वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाती हैं और सुख, समृद्धि व दीर्घायु के लिए दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
जैसे वट वृक्ष सहस्त्रों वर्षों तक अडिग खड़ा रहता है, वैसे ही वट पूर्णिमा का यह परंपरागत पर्व आने वाली पीढ़ियों को दांपत्य मूल्यों और निष्ठा की प्रेरणा देता रहेगा।
इस वट पूर्णिमा 2025 पर सभी विवाहित महिलाओं को सुख, समृद्धि और अपने जीवनसाथी की दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त हो!