बुद्ध पूर्णिमा 2025: तिथि, महत्व, पूजा विधि और उत्सव

बुद्ध पूर्णिमा 2025, जिसे वैशाख पूर्णिमा या बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है, विश्वभर के बौद्ध समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक अत्यंत पावन पर्व है। यह दिन भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति (निर्वाण) और महापरिनिर्वाण का प्रतीक है। वैशाख माह की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली यह तिथि आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस अवसर पर श्रद्धालु मठों में एकत्र होते हैं, प्रार्थना करते हैं, धर्म ग्रंथों का पाठ करते हैं और दान व सेवा के कार्यों में लिप्त रहते हैं।

Budhha Purnima 2025 hindi

बुद्ध पूर्णिमा

साल 2025 में बुद्ध पूर्णिमा सोमवार, 12 मई 2025 को मनाई जाएगी। भारत से लेकर श्रीलंका, नेपाल, थाईलैंड, म्यांमार सहित विश्व के विभिन्न हिस्सों में भव्य आयोजन होंगे। इस लेख में हम बुद्ध पूर्णिमा 2025 के महत्व, पूजा विधि, वैश्विक उत्सवों और भगवान बुद्ध के अमूल्य संदेशों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

बुद्ध पूर्णिमा 2025 कब है?

बुद्ध पूर्णिमा 2025 में सोमवार, 12 मई 2025 को मनाई जाएगी। हिंदू और बौद्ध पंचांग के अनुसार, यह वैशाख महीने की पूर्णिमा तिथि को आती है। पूर्णिमा तिथि के समय इस प्रकार हैं:

  • पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 11 मई 2025 को रात 08:01 बजे
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त: 12 मई 2025 को रात 10:25 बजे

यह दिन कई देशों में सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है। विशेष प्रार्थनाएं, ध्यान सत्र और दान कार्य इस शुभ दिन की प्रमुख विशेषताएं हैं।

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व

बुद्ध पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन की तीन प्रमुख घटनाओं का स्मरण कराती है: लुंबिनी में जन्म, बोधगया में ज्ञान प्राप्ति और कुशीनगर में महापरिनिर्वाण।

प्रत्येक घटना से गहन शिक्षाएँ मिलती हैं:

  • जन्म: एक ऐसे मार्गदर्शक का आगमन जो धर्म और करुणा का प्रकाश फैलाने आए।
  • ज्ञान प्राप्ति: अज्ञान, दुःख और तृष्णा पर विजय प्राप्त कर मोक्ष की राह को प्रदर्शित करना।
  • महापरिनिर्वाण: जीवन-मृत्यु के चक्र (संसार) से मुक्ति का संदेश।

इस दिन को मनाना अहिंसा (अहिंसा), करुणा (दया) और प्रज्ञा (बुद्धिमत्ता) जैसे मूल्यों को अपने जीवन में उतारने का प्रेरक अवसर होता है।

बुद्ध पूर्णिमा के अनुष्ठान और परंपराएँ

यद्यपि विभिन्न देशों में बुद्ध पूर्णिमा के अनुष्ठानों में कुछ भिन्नताएं होती हैं, परंतु भावनाएँ एक समान रहती हैं:

  • मठों और विहारों की यात्रा: श्रद्धालु मंदिरों और मठों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं।
  • बुद्ध प्रतिमाओं का स्नान: भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं पर जल या गंध जल अर्पित कर शुद्धि और नवीनीकरण का प्रतीकात्मक अनुष्ठान करते हैं।
  • दीप प्रज्वलन: दीपक जलाकर अज्ञान और अंधकार को दूर करने का प्रतीकात्मक कार्य।
  • फूल और फल अर्पण: श्रद्धापूर्वक सफेद फूल और फल अर्पित करना।
  • धम्म चर्चा: त्रिपिटक जैसे पवित्र बौद्ध ग्रंथों का वाचन और प्रवचन।
  • दान पुण्य: निर्धनों को भोजन कराना, पक्षियों को मुक्त करना और ज़रूरतमंदों को सामग्री दान करना।

अनेक श्रद्धालु इस दिन शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं और सभी प्राणियों के प्रति करुणा का पालन करते हैं।

विश्वभर में बुद्ध पूर्णिमा का उत्सव

बुद्ध पूर्णिमा विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाई जाती है:

  • भारत: बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर में विशाल समारोह, शोभायात्राएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
  • नेपाल: लुंबिनी, भगवान बुद्ध का जन्मस्थल, भव्य दीपोत्सव और धार्मिक यात्राओं का केंद्र बनता है।
  • श्रीलंका: यहाँ इसे ‘वेसाक’ कहा जाता है, जहाँ गलियों को लालटनों से सजाया जाता है और विशाल दान कार्य किए जाते हैं।
  • थाईलैंड: मंदिरों में भव्य समारोह और मोमबत्ती जुलूस आयोजित होते हैं।
  • म्यांमार: ध्यान शिविर और मठीय समारोह प्रमुख रहते हैं।

हालाँकि सांस्कृतिक रूप में भिन्नता हो सकती है, लेकिन करुणा, शांति और ज्ञान का संदेश विश्वभर के उत्सवों को एक सूत्र में बाँधता है।

भगवान बुद्ध की प्रेरणादायक शिक्षाएँ और मंत्र

भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। प्रमुख शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:

  • चार आर्य सत्यों की शिक्षा: जीवन दुःखमय है, दुःख का कारण तृष्णा है, दुःख का अंत संभव है, और दुःख के अंत तक पहुँचने का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है।
  • अष्टांगिक मार्ग: सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि।
  • मध्यम मार्ग: अत्यधिक भोग और कठोर तपस्या दोनों से बचते हुए संतुलित जीवन जीने का मार्ग।

प्रसिद्ध बौद्ध मंत्र:

  • “ॐ मणि पद्मे हुं” (करुणा और ज्ञान की प्राप्ति हेतु)
  • “बुद्धं शरणं गच्छामि” (मैं बुद्ध में शरण लेता हूँ)

इन मंत्रों का जप बुद्ध पूर्णिमा पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और आंतरिक शांति प्रदान करता है।

निष्कर्ष

बुद्ध पूर्णिमा 2025 केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि भगवान बुद्ध के करुणा, ध्यान और प्रज्ञा के शाश्वत सिद्धांतों की पुनः स्मृति का अवसर है। इस दिन को श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाकर हम स्वयं के भीतर झाँक सकते हैं और एक शांतिपूर्ण, जागरूक जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

जब विश्व 12 मई 2025 को बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाएगा, आइए हम सब उनके संदेशों को अपने जीवन में आत्मसात करें, करुणा फैलाएँ और धर्म के पथ पर अग्रसर हों।

English

प्रातिक्रिया दे