षटतिला एकादशी का व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है और इसे हिंदू परंपरा में अत्यधिक महत्व दिया गया है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने और पूजा करने से धन, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। आइए जानते हैं षटतिला एकादशी से जुड़ी प्रेरणादायक पौराणिक कथा, जो दान और निस्वार्थता के महत्व को उजागर करती है।
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षटतिला एकादशी की कहानी ( shattila ekadashi vrat katha in hindi )
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक नगर में एक वृद्ध ब्राह्मणी रहती थी। वह उपवास और पूजा-पाठ में लीन रहती थी, लेकिन दूसरों को भोजन या दान देने में रुचि नहीं रखती थी। समय के साथ, उसके उपवास और भक्ति ने उसकी आत्मा को शुद्ध कर दिया, लेकिन दान की कमी के कारण उसकी आध्यात्मिक यात्रा अधूरी रह गई।
एक दिन भगवान विष्णु ने ब्राह्मणी की भक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय किया। साधु का रूप धारण कर वे ब्राह्मणी की कुटिया पर पहुंचे और भोजन मांगा। ब्राह्मणी, जो कुछ भी देना नहीं चाहती थी, ने उन्हें भोजन की जगह मिट्टी का एक पिंड दे दिया। भगवान ने उसका उपहार स्वीकार किया और चले गए।
कुछ समय बाद ब्राह्मणी का देहांत हो गया और वह स्वर्गलोक पहुंच गई। लेकिन स्वर्ग में उसने पाया कि उसका घर खाली था—वहां न भोजन था, न ही अन्य सुख-सुविधाएं। परेशान होकर ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से इसका कारण पूछा। भगवान ने बताया कि यद्यपि उसने भक्ति और उपवास से पुण्य अर्जित किया, लेकिन दान न करने के कारण उसका आशीर्वाद अधूरा रह गया।
तब ब्राह्मणी ने देवियों से षटतिला एकादशी के महत्व को समझा। उन्होंने बताया कि इस व्रत का पालन करने से भक्ति और दान दोनों के फल मिलते हैं। ब्राह्मणी ने विधिपूर्वक षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से उसका स्वर्गिक घर धन, अन्न और समृद्धि से भर गया।
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षटतिला एकादशी का संदेश
यह कथा हमें दान के महत्व और इस तथ्य की सीख देती है कि कोई भी धार्मिक कार्य दान के बिना पूर्ण नहीं होता। अपने जीवन में निस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना, पूजा और उपवास का फल कई गुना बढ़ा देता है।
निष्कर्ष
षटतिला एकादशी व्रत भक्ति और निस्वार्थता का आदर्श उदाहरण है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने और दान के महत्व को अपनाने से साधक न केवल आध्यात्मिक समृद्धि प्राप्त करता है, बल्कि उसे दिव्य आशीर्वाद भी प्राप्त होते हैं।
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