महाशिवरात्रि व्रत कथा | Mahashivratri Vrat Katha

हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक महाशिवरात्रि इस वर्ष 26 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी। यह पर्व भगवान शिव को समर्पित होता है और फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त दिनभर उपवास रखते हैं और विधिपूर्वक शिवलिंग की पूजा करते हैं। शिवरात्रि व्रत कथा का पाठ और रात्रि-जागरण इस पूजा के प्रमुख अंग हैं।

महाशिवरात्रि केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भगवान शिव के प्रति समर्पण और विश्वास की अद्वितीय गाथा है। यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति के मार्ग पर चाहे आप कितने ही अशुद्ध या पापी क्यों न हों, भगवान शिव की कृपा सबकुछ बदल सकती है।

व्रत कथा के अनुसार। जंगल के एक कोने में चित्रभानु नामक एक शिकारी अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए जानवरों का शिकार किया करता था। उसका जीवन कठिनाइयों से भरा था। एक दिन कर्ज में डूबे चित्रभानु को साहूकार ने अपने मठ में बंद कर दिया।

मठ में रहने के दौरान, उसने महाशिवरात्रि व्रत और भगवान शिव की महिमा के बारे में सुना। उन शब्दों ने उसके दिल को छुआ, लेकिन वह अपने जीवन की समस्याओं में उलझा हुआ था। अगले दिन साहूकार ने उसे यह कहकर छोड़ दिया कि वह जल्द ही उसका कर्ज चुकाए।

शाम होने को आई, और चित्रभानु अपने घर जाने के बजाय शिकार के लिए जंगल की ओर निकल पड़ा। उस रात का अंधकार उसके दिल में छिपे भय और निराशा जैसा था। भूखा-प्यासा चित्रभानु एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया, जो कि एक जलाशय के पास था। उसे लगा कि रात में जानवर पानी पीने आएंगे, और वह उन्हें शिकार करके अपने परिवार के लिए भोजन जुटाएगा।

उस पेड़ के नीचे भगवान शिव का एक शिवलिंग स्थापित था, लेकिन अनजान चित्रभानु को इसकी जानकारी नहीं थी। जैसे ही उसने पेड़ की एक टहनी तोड़ी, वह बेलपत्र शिवलिंग पर गिर गया। यह भगवान शिव की कृपा का आरंभ था।

रात के पहले पहर में एक गर्भिणी मृगी वहां पानी पीने आई। चित्रभानु ने जैसे ही धनुष पर तीर चढ़ाया, मृगी ने विनती करते हुए कहा, “हे शिकारी, मैं गर्भवती हूं। मेरे बच्चों को जन्म लेने दो। इसके बाद मैं स्वयं तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊंगी। चित्रभानु का कठोर हृदय पिघल गया। उसने मृगी को जाने दिया, लेकिन उसके भीतर आत्मसंघर्ष शुरू हो चुका था।

रात के दूसरे पहर में एक और मृगी आई। शिकारी ने उसे निशाना बनाना चाहा, लेकिन मृगी ने करुण स्वर में कहा, “मैं अपने पति को खोज रही हूं। कृपया मुझे जाने दो। मैं वचन देती हूं, लौटकर आऊंगी। उसकी बातों ने चित्रभानु को विचलित कर दिया। एक बार फिर उसने उसे जाने दिया

रात गहरी हो रही थी। तीसरे पहर में एक मृगी अपने छोटे बच्चों के साथ आई। शिकारी ने धनुष तान लिया, लेकिन मृगी ने असहायता से कहा, “हे शिकारी, मेरे बच्चों को उनके पिता के पास छोड़ने दो। इसके बाद मैं स्वयं तुम्हारे सामने आ जाऊंगी। शिकारी का मन अंदर से टूट रहा था। वह उन्हें भी जाने देता है।

रात के अंतिम प्रहर में एक बड़ा मृग पानी पीने आया। शिकारी ने इसे अपना आखिरी अवसर मानकर धनुष चढ़ाया। लेकिन मृग ने शांत स्वर में पूछा, “क्या तुमने पहले आने वाली मृगियों को मार दिया?”

चित्रभानु ने अपनी कथा सुनाई। मृग ने गंभीरता से कहा, “जैसे तुमने उन मृगियों पर विश्वास किया, वैसे ही मुझ पर भी विश्वास करो। मैं उन्हें तुम्हारे पास लाता हूं।”

चित्रभानु ने पूरी रात शिवलिंग के पास जागकर बिताई। इस दौरान उसने अनजाने में व्रत, रात्रि जागरण, और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने की पूजा संपन्न कर दी।

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भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और साक्षात दर्शन देकर कहा, “हे चित्रभानु, आज तुम्हारा हृदय शुद्ध हो गया है। तुम्हारे सारे पाप समाप्त हो गए हैं। मैं तुम्हें मोक्ष का आशीर्वाद देता हूं।”

उस दिन से चित्रभानु का जीवन बदल गया। उसने हिंसा का मार्ग त्यागकर शिवभक्ति का पथ अपनाया।

महाशिवरात्रि की यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान शिव केवल विधि-विधान से की गई पूजा को नहीं, बल्कि सच्चे हृदय से किए गए छोटे-से कार्य को भी स्वीकार करते हैं। शिव की कृपा से हमारे जीवन के सभी अंधकार मिट सकते हैं।

ॐ नमः शिवाय। हर हर महादेव।

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