चातुर्मास: भगवान विष्णु का वो वचन, जो उन्हें सोने पर विवश कर देता है!

हिन्दू धर्म, जो अपनी व्रत, त्योहारों और अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है, में हर अवधि का एक विशेष आध्यात्मिक महत्व है। ऐसी ही एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण अवधि है ‘चातुर्मास’। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, ‘चातुर्मास’ का अर्थ है ‘चार महीने’। यह चार महीने की वह अवधि है जब सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। यह समय तप, साधना, भक्ति और आत्म-संयम के लिए सर्वोत्तम माना गया है।

आइए, इस लेख के माध्यम से हम चातुर्मास के हर पहलू को गहराई से समझते हैं और जानते हैं कि इसका हमारे जीवन और धर्म में क्या महत्व है।

क्या है चातुर्मास?

चातुर्मास केवल चार महीनों की अवधि नहीं, बल्कि यह आत्म-निरीक्षण और आध्यात्मिक उन्नति का एक महापर्व है। इस दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, जनेऊ संस्कार आदि नहीं किए जाते। इसके पीछे का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण भी है।

  • आध्यात्मिक दृष्टि: माना जाता है कि जब भगवान विष्णु निद्रा में होते हैं, तो सृष्टि में सकारात्मक शक्तियों का प्रभाव कम हो जाता है और नकारात्मक शक्तियां प्रबल होने की कोशिश करती हैं। इन नकारात्मक शक्तियों से बचने और अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखने के लिए इस दौरान व्रत, तप, पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन और स्वाध्याय करने का विधान है।
  • वैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टि: चातुर्मास का समय वर्षा ऋतु के साथ आता है। पुराने समय में जब यातायात के साधन नहीं थे, तो इन चार महीनों में यात्रा करना अत्यंत कठिन और जोखिम भरा होता था। नदियों में बाढ़ और रास्तों में कीचड़ के कारण संत-महात्मा एक ही स्थान पर रुककर तप और ज्ञान का आदान-प्रदान करते थे। साथ ही, वर्षा के कारण जल-जनित बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए इस दौरान खान-पान में संयम और सात्विकता बरतने के नियम बनाए गए ताकि स्वास्थ्य उत्तम रहे।

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कब से शुरू हो रहा है चातुर्मास 2025?

साल 2025 में चातुर्मास का आरंभ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि, यानी देवशयनी एकादशी से होगा, जो 6 जुलाई 2025, रविवार को है। इसी दिन से भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाएंगे।

चातुर्मास कब से कब तक रहेगा?

चातुर्मास की अवधि देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, यानी देवउठनी एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) तक होती है। साल 2025 में देवउठनी एकादशी 2 नवंबर 2025, रविवार को है। इस दिन भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागृत होंगे और पुनः सृष्टि का कार्यभार संभालेंगे।

यह चार महीने मुख्य रूप से श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक के होते हैं।

आखिर क्यों कहा जाता है कि भगवान विष्णु चार महीनों तक सोते हैं?

जब हम सुनते हैं कि भगवान विष्णु ‘सोते’ हैं, तो इसका अर्थ हमारी साधारण नींद से बिल्कुल अलग है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु की यह निद्रा ‘योगनिद्रा’ कहलाती है। योगनिद्रा एक दिव्य और चेतन अवस्था है, जिसमें भगवान भौतिक रूप से विश्राम करते हुए भी ब्रह्मांड के प्रति पूर्ण रूप से जागृत रहते हैं। यह एक प्रकार का ब्रह्मांडीय ध्यान है।

माना जाता है कि जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं, तो वे सृष्टि के संचालन का कार्यभार अस्थायी रूप से भगवान शिव को सौंप देते हैं। यही कारण है कि चातुर्मास का पहला और सबसे पवित्र महीना ‘श्रावण मास’ पूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित है। इस दौरान शिव की आराधना करने से भक्तों को विशेष कृपा प्राप्त होती है।

क्या है चातुर्मास के पीछे की पौराणिक कथा?

चातुर्मास के आरंभ के पीछे एक अत्यंत रोचक पौराणिक कथा है, जो असुर राजा बलि की भक्ति और भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है।

कथा के अनुसार, प्रह्लाद के पौत्र, राजा बलि एक अत्यंत पराक्रमी, दानी और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। अपनी तपस्या और शक्ति के बल पर उन्होंने तीनों लोकों – पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल पर अधिकार कर लिया। उनके पराक्रम से भयभीत होकर देवराज इंद्र समेत सभी देवता माता अदिति के साथ भगवान विष्णु की शरण में गए और सहायता की प्रार्थना की।

तब भगवान विष्णु ने देवताओं को वचन दिया कि वे राजा बलि के अहंकार को दूर करने और देवताओं को उनका स्थान वापस दिलाने के लिए अवश्य उपाय करेंगे। इसके लिए भगवान विष्णु ने ‘वामन’ अवतार लिया, जो एक छोटे कद के ब्राह्मण बालक का रूप था।

राजा बलि उस समय नर्मदा नदी के तट पर एक महान अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे और उन्होंने घोषणा की थी कि यज्ञ के दौरान कोई भी उनसे जो कुछ भी मांगेगा, वे उसे अवश्य देंगे। भगवान वामन एक छोटे बालक के रूप में राजा बलि की यज्ञशाला में पहुंचे। उनके दिव्य तेज को देखकर राजा बलि ने स्वयं उनका स्वागत किया और उनसे कुछ मांगने का आग्रह किया।

तब भगवान वामन ने विनम्रता से कहा, “हे राजन! मुझे और कुछ नहीं, बस अपने पैरों से तीन पग भूमि चाहिए।”

राजा बलि यह सुनकर हंस पड़े और बोले, “हे ब्रह्मचारी! आप मुझसे पूरे द्वीप, राज्य मांग सकते थे, पर आपने केवल तीन पग भूमि मांगी? तथास्तु, मैं आपको तीन पग भूमि दान देने का वचन देता हूँ।”

राजा बलि के गुरु, शुक्राचार्य, भगवान की लीला को समझ गए। उन्होंने बलि को सचेत किया कि यह कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं और उन्हें यह दान नहीं देना चाहिए। परंतु, राजा बलि अपने वचन से पीछे हटने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि जिस भक्त के द्वार पर स्वयं भगवान याचक बनकर आएं, उससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है।

जैसे ही राजा बलि ने दान का संकल्प लिया, भगवान वामन ने अपना विराट रूप धारण कर लिया। उन्होंने अपने एक पग में पूरी पृथ्वी को नाप लिया, दूसरे पग में সমগ্র स्वर्ग और अन्य लोकों को नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान ही नहीं बचा।

तब भगवान वामन ने बलि से पूछा, “हे राजन! तुम्हारे वचन के अनुसार, मैं अपना तीसरा पग कहाँ रखूँ?”

राजा बलि ने बिना किसी संकोच के अपना सिर झुका दिया और कहा, “हे प्रभु! इस संसार में सबसे मूल्यवान वस्तु व्यक्ति का अहंकार होता है, जो उसके सिर में वास करता है। आप अपना तीसरा और अंतिम पग मेरे सिर पर रखकर मेरे अहंकार का नाश करें।”

राजा बलि की इस अद्भुत भक्ति और शरणागति को देखकर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने बलि के सिर पर अपना चरण रखा और उन्हें पाताल लोक भेज दिया, साथ ही उन्हें पाताल का स्वामी बना दिया। बलि की भक्ति से अभिभूत होकर भगवान ने उनसे एक वरदान मांगने को कहा।

तब राजा बलि ने कहा, “हे प्रभु! मेरी बस एक ही इच्छा है कि आप सदैव मेरे साथ मेरे महल में निवास करें।”

अपने भक्त को दिए वचन से बंधकर भगवान विष्णु राजा बलि के साथ पाताल लोक में उनके द्वारपाल बनकर रहने लगे। जब बहुत समय तक भगवान विष्णु वैकुंठ नहीं लौटे, तो माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं। वे एक साधारण स्त्री का वेश बनाकर राजा बलि के पास पहुंचीं और उन्हें ‘राखी’ बांधकर अपना भाई बना लिया। जब बलि ने उपहार स्वरूप कुछ मांगने को कहा, तो माता लक्ष्मी ने अपने पति भगवान विष्णु को वापस मांग लिया।

अपने दिए वचन और बहन की प्रार्थना के बीच राजा बलि ने एक मार्ग निकाला। उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे वर्ष के चार महीने उनके साथ पाताल लोक में निवास करें। भगवान विष्णु ने अपने भक्त की यह बात सहर्ष स्वीकार कर ली।

तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक, इन चार महीनों के लिए भगवान विष्णु राजा बलि को दिए वचन का मान रखने के लिए पाताल लोक में निवास करते हैं।

चातुर्मास में कौन-कौन से त्योहार आते हैं?

चातुर्मास का समय भले ही मांगलिक कार्यों के लिए वर्जित हो, लेकिन यह व्रत और त्योहारों की सबसे लंबी श्रृंखला लेकर आता है। इस दौरान आने वाले प्रमुख त्योहार हैं:

  • गुरु पूर्णिमा: चातुर्मास के आरंभ के आसपास ही गुरु पूर्णिमा का पर्व आता है, जो गुरुओं को समर्पित है।
  • श्रावण मास: नाग पंचमी, हरियाली तीज, रक्षाबंधन और श्रावण सोमवार के व्रत।
  • भाद्रपद मास: कजरी तीज, श्री कृष्ण जन्माष्टमी, हरतालिका तीज, गणेश चतुर्थी और अनंत चतुर्दशी।
  • आश्विन मास: पितृ पक्ष (श्राद्ध), शारदीय नवरात्रि, दुर्गा पूजा और दशहरा (विजयादशमी)।
  • कार्तिक मास: करवा चौथ, अहोई अष्टमी, धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज, देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह।

संक्षेप में, चातुर्मास संयम, त्याग, तपस्या और भक्ति का स्वर्णिम अवसर है। यह हमें अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने, सात्विक जीवन शैली अपनाने और आध्यात्मिक रूप से ईश्वर के और करीब आने की प्रेरणा देता है।

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