धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है, दीपावली की पाँच दिवसीय श्रृंखला का प्रथम दिन है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की जयंती तथा लक्ष्मी-कुबेर पूजन का विशेष विधान है। परंपरा के अनुसार प्रदोषकाल में दीप प्रज्वलन, यमदीपदान, और शुभ खरीदारी से समृद्धि के द्वार खुलते हैं। इस लेख में हम 2025 के लिए धनतेरस की तिथि, सामान्य मुहूर्त-मार्गदर्शिका, शास्त्रोक्त पूजा-विधि और खरीदारी‑सूची को विस्तार से, चरण-दर-चरण और व्यावहारिक ढंग से समझेंगे।
नोट: शहर/देश के अनुसार घड़ियों, सूर्यास्त और लग्न के समय भिन्न हो सकते हैं। अतः अंतिम निर्णय हेतु अपने स्थानीय/विश्वसनीय पंचांग का संदर्भ अवश्य लें।
तिथि व पंचांग-संदर्भ
- धनतेरस (धनत्रयोदशी) 2025 की संभावित तिथि: 18 अक्टूबर 2025 (शनिवार) — कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी।
- निरुक्ति/अर्थ: ‘धन’ (समृद्धि) + ‘तेरस’ (त्रयोदशी) — यह दिन समृद्धि, आरोग्य और शुभारंभ का सूचक माना गया है।
- श्रृंखला-संदर्भ: धनतेरस → नरक चतुर्दशी/छोटी दीपावली → अमावस्या/दीपावली → गोवर्धन पूजा → भैया दूज।
शुभ मुहूर्त: व्यावहारिक मार्गदर्शिका
धनतेरस के पूजन व खरीदारी के लिए सामान्यत: निम्नलिखित काल का विचार किया जाता है:
प्रदोषकाल (सूर्यास्त के बाद का काल)
प्रदोषकाल सूर्यास्त के पश्चात प्रारंभ होकर लगभग ढाई घंटे तक माना जाता है। लक्ष्मी-पूजन हेतु प्रदोषकाल का विशेष महत्त्व है, क्योंकि यह समय गृहस्थ जीवन के लिए ‘स्थिर’ और शुभ माना गया है।
वृषभ लग्न (स्थिर लग्न)
यदि संभव हो तो वृषभ लग्न में लक्ष्मी‑कुबेर पूजन करना उत्तम माना गया है। वृषभ ‘स्थिर’ लग्न है, जो धन-स्थायित्व का सूचक माना जाता है। यह समय स्थानानुसार बदलता है; अपने शहर-विशिष्ट लग्न-सारिणी देखें।
शुभ खरीदारी के लिए समय-चयन
खरीदारी के लिए भी प्रदोषकाल व लग्न विचार उचित माने जाते हैं। यदि दिन में खरीदारी करनी हो, तो अभिजीत मुहूर्त (यदि उपलब्ध हो) या चंद्रबल/ताराबल अनुकूल देखकर खरीदें। परंपरानुसार संध्या/प्रदोषकाल में प्रतीकात्मक ख़रीद (जैसे दीपक, लक्ष्मी-गणेश चित्र, धातु का सिक्का) करनी शुभ मानी जाती है।
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धनतेरस पर पूजन का शास्त्रीय आधार
- धन्वंतरि जयंती: समुद्र‑मंथन से भगवान धन्वंतरि के अमृत-घट के साथ प्रकट होने का स्मरण। अतः आज के दिन आरोग्य‑कामना और आयु‑वर्धन प्रार्थना की जाती है।
- लक्ष्मी-कुबेर पूजन: लक्ष्मी (धन‑समृद्धि) और कुबेर (धन‑नियंत्रण) का संयुक्त पूजन वित्तीय संतुलन और शुद्ध अर्जन के संकल्प के लिए किया जाता है।
- यमदीपदान: मृत्यु के देवता यमराज के निमित्त दीपदान कर परिवार की दीर्घायु और अकाल‑मृत्यु से रक्षा की प्रार्थना।
पूजन सामग्री (संक्षिप्त सूची)
- स्वच्छ वेदी/चौकी, लाल/पीला वस्त्र, कलश, गंगाजल
- लक्ष्मी‑गणेश व कुबेर की प्रतिमा/चित्र, पान के पत्ते, रोली, अक्षत, हल्दी, कुमकुम
- पुष्प (विशेषकर कमल/गेंदा), धूप‑दीप‑अगरबत्ती, घी/तेल के दीपक
- चावल, दालें/अनाज के दाने, मौली, सुपारी, इलायची, लौंग
- फल‑मिठाई/खीर/पंचामृत, नैवेद्य, इत्र
- चाँदी/तांबे का सिक्का, कुबेर की ‘तिजोरी’/कोष के प्रतीक
- नए लेखा‑वही/खाता‑बही (व्यापारियों हेतु), स्वस्तिक/श्री‑चिन्ह स्टिकर
लक्ष्मी‑कुबेर पूजन: चरण‑दर‑चरण विधि
पूर्व‑तैयारी
- घर/कार्यालय की सफाई, विशेषकर उत्तर‑पूर्व (ईशान) और प्रवेशद्वार।
- वेदी/चौकी को स्वच्छ वस्त्र से ढकें, श्री‑यंत्र/श्री‑चिन्ह अंकित करें।
- कलश में जल, आम/अशोक पत्ते, सुपारी, इत्र, सिक्का रखें और नारियल स्थापित करें।
संकल्प और आह्वान
- आचमन/प्राणायाम के साथ संकल्प लें—कुटुम्ब‑आरोग्य, सतार्जित धन, ऋण‑मुक्ति, दानशीलता।
- कलश‑पूजन, गणेश‑पूजन के बाद लक्ष्मी‑कुबेर का आह्वान करें।
मुख्य पूजन
- लक्ष्मी‑पूजन: रोली‑अक्षत से तिलक, पुष्प‑अर्पण, धूप‑दीप, नैवेद्य, आरती।
- कुबेर‑पूजन: कुबेर प्रतीक/कोष पर तिलक, चाँदी/तांबे के सिक्कों का अर्पण, नया खाता‑बही पूजन।
- मंत्र‑जाप (उदाहरण):
- लक्ष्मी मंत्र: “ॐ श्रीं महालक्ष্ম्यै नमः” (कम से कम 11 बार)।
- कुबेर मंत्र: “ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन‑धन्याधिपतये नमः”।
- धन्वंतरि स्मरण:
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतरये अमृत‑कलश हस्ताय सर्व‑भय विनाशाय, श्री महाविष्णवे नमः”।
आरती व क्षमा‑प्रार्थना
- लक्ष्मी‑जी और गणेश‑जी की आरती करें, परिवार सहित क्षमा‑याचना और कृतज्ञता व्यक्त करें।
यमदीपदान कैसे करें
- संध्या समय घर के बाहर/मुख्य द्वार के दक्षिण दिशा की ओर मुख करके एक दीपक जलाएँ।
- दीपक में तिल का तेल/सरसों का तेल उत्तम माना गया है।
- संक्षिप्त प्रार्थना: परिवार की दीर्घायु, दुर्घटना‑निवारण और सद्बुद्धि की कामना।
क्या खरीदें: परंपरा व व्यावहारिकता
धनतेरस को नए आरंभ, उपकरण और सुदृढ़ वित्तीय अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। खरीदारी में शास्त्रीय परंपरा और आधुनिक उपयोगिता का संतुलन रखें।
पारंपरिक रूप से शुभ मानी जाने वाली वस्तुएँ
- सोना‑चाँदी/सिक्के (लक्ष्मी‑गणेश अंकित), चाँदी की थाली/दीपक।
- ताँबे/पीतल के बर्तन — जल, पूजन व रसोई उपयोग।
- देवालय/पूजन‑सामग्री — दीपक, घंटी, पूजा‑थाली।
- औषधीय/आरोग्य‑संबंधी वस्तुएँ — धन्वंतरि स्मरणार्थ, प्राथमिक उपचार/हेल्थ‑डिवाइस।
आधुनिक उपयोगिता के साथ
- घर/ऑफिस के आवश्यक उपकरण (ऊर्जा‑कुशल विकल्प प्राथमिकता)।
- फाइनेंशियल टूल्स का ‘खरीद’ (जैसे स्वास्थ्य बीमा नवीनीकरण, आपातकालीन कोष)—यानी प्रतीकात्मक निवेश‑आरंभ।
किन बातों से बचें
- केवल परंपरा के नाम पर अनावश्यक/ऋण लेकर महँगी ख़रीद से बचें।
- टूटी/खराब वस्तुएँ, अनुपयोगी गैजेट, या दिखावे के लिए expenditure—धन‑शुचिता के सिद्धांत के विपरीत।
गृह‑वास्तु व वित्त‑अनुशासन टिप्स
- मुख्य द्वार, रसोई और तिजोरी क्षेत्र स्वच्छ व रोशन रखें; प्रवेशद्वार पर स्वस्तिक/श्री‑चिन्ह।
- तिजोरी/लॉकर दिशा: अनेक परंपराओं में दक्षिण/पश्चिम की दीवार से सटाकर उत्तर/पूर्व की ओर खुलना शुभ माना गया है; अपने घर के प्लान के अनुसार व्यावहारिक समायोजन करें।
- बजट‑निर्धारण: खरीद सूची पहले से तय करें; 50‑30‑20 (आवश्यक‑इच्छा‑बचत) जैसा नियम अपनाएँ।
- दान‑धर्म: किसी भी शुभ खरीद के साथ दान (अन्न/वस्त्र/अर्थ) का संकल्प जोड़ें—समृद्धि का प्रवाह संतुलित रहता है।
सामान्य भ्रांतियाँ व स्पष्टिकरण
- सिर्फ़ सोना खरीदना ही अनिवार्य नहीं—प्रतीकात्मक सिक्का/दीपक/खाता‑बही भी उतने ही शुभ।
- मुहूर्त ‘एक’ नहीं होता—शहर, सूर्योदय‑सूर्यास्त और लग्न अनुसार भिन्नता स्वाभाविक है।
- उधार‑खरीद vs. शुभता—ऋण‑दबाव से समृद्धि नहीं आती; क्षमता‑अनुकूल, सोच‑समझकर ख़रीदें।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
क्या धनतेरस पर चाँदी‑ताँबे के बर्तन खरीदना आवश्यक है?
आवश्यक नहीं, परंपरा में ये धातुएँ शुद्धता व उपयोगिता के कारण प्रिय हैं। यदि उपयोग में आएँ तो उत्तम; नहीं तो प्रतीकात्मक सिक्का/दीपक पर्याप्त।
लक्ष्मी‑पूजन में कौन‑सा समय प्राथमिकता लेता है—प्रदोषकाल या वृषभ लग्न?
सामान्यत: प्रदोषकाल प्रमुख माना जाता है। यदि उसके भीतर वृषभ लग्न उपलब्ध हो तो वह अधिक श्रेष्ठ मानी जाती है। न हो तो प्रदोषकाल में ही पूजन करें।
क्या इलेक्ट्रॉनिक्स/वाहन खरीद सकते हैं?
हाँ, पर ऊर्जा‑कुशल, वास्तविक आवश्यकता और बजट का ध्यान रखें। पंजीकरण/बीमा औपचारिकताएँ उसी दिन न हो सकें तो प्रतीकात्मक बुकिंग/आरंभ भी उचित है।
क्या व्यापारियों को खाता‑बही इसी दिन खोलनी चाहिए?
परंपरा में यही माना गया है। नए वित्त‑वर्ष/व्यापार‑चक्र के लिए स्वच्छ खाता‑बही/ERP लेजर का पूजन करें और सत्य‑अर्जन, समय पर देनदारी‑निपटान का संकल्प लें।
धनतेरस 2025 (18 अक्टूबर, शनिवार) का दिन समृद्धि‑आरोग्य के द्वार खोलने का शुभ अवसर है। इस अवसर पर लक्ष्मी‑कुबेर पूजन, धन्वंतरि जयंती‑स्मरण, यमदीपदान, और विवेकपूर्ण खरीदारी—चारों का सम्यक संगम आपके घर‑परिवार में स्थिरता ला सकता है। याद रखें कि समृद्धि का अर्थ केवल वस्तु‑संग्रह नहीं, बल्कि सतार्जित धन, स्वास्थ्य, अनुशासन और दानशीलता है। अपने स्थानीय पंचांग के अनुसार समय सुनिश्चित कर, शास्त्रीय विधि और आधुनिक विवेक—दोनों को साथ लेकर उत्सव मनाएँ।
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