क्या है श्रावण पुत्रदा एकादशी?
श्रावण पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म में एक अत्यंत पुण्यदायी व्रत है, जो भगवान विष्णु को समर्पित होता है। यह व्रत श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में आता है, जो स्वयं ही भक्ति, उपवास और तीर्थयात्रा के लिए पवित्र माना जाता है। “पुत्रदा” का अर्थ होता है – संतान प्रदान करने वाली, और यह एकादशी विशेष रूप से उन विवाहित दंपतियों द्वारा रखी जाती है जो संतान की प्राप्ति की इच्छा रखते हैं।
एक वर्ष में कुल 24 एकादशियाँ आती हैं, परंतु श्रावण पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह परिवार की समृद्धि, वंशवृद्धि और पापों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।
वर्ष में दो पुत्रदा एकादशियाँ आती हैं – एक पौष मास में (जनवरी में) और दूसरी श्रावण मास में। यह लेख श्रावण पुत्रदा एकादशी 2025 पर केंद्रित है, जिसमें हम इसकी तिथि, व्रत विधि, आध्यात्मिक महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।
श्रावण पुत्रदा एकादशी 2025: तिथि, एकादशी समय और पारण मुहूर्त
- एकादशी तिथि: मंगलवार, 5 अगस्त 2025
- एकादशी प्रारंभ: सोमवार, 4 अगस्त 2025 को दोपहर 11:41 बजे
- एकादशी समाप्त: मंगलवार, 5 अगस्त 2025 को दोपहर 01:12 बजे
- पारण (व्रत खोलने का समय): बुधवार, 6 अगस्त 2025
- पारण मुहूर्त: सुबह 06:09 से 08:43 तक
पारण सूर्योदय के बाद, निश्चित समय में ही करना चाहिए। यह समय के अनुसार व्रत पूर्ण करने का आध्यात्मिक महत्व रखता है।
वर्ष में दो पुत्रदा एकादशी क्यों होती हैं?
हिंदू पंचांग में दो पुत्रदा एकादशियाँ मानी गई हैं – एक पौष मास में और दूसरी श्रावण मास में। दोनों ही भगवान विष्णु से संतान प्राप्ति की कामना के लिए रखी जाती हैं, परंतु श्रावण पुत्रदा एकादशी अधिक लोकप्रिय मानी जाती है, विशेषकर उत्तर भारत में।
पौष पुत्रदा एकादशी भी श्रद्धा से मनाई जाती है, लेकिन श्रावण मास की धार्मिक गरिमा के कारण श्रावण पुत्रदा एकादशी का पुण्य फल अधिक माना गया है।
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श्रावण पुत्रदा एकादशी का आध्यात्मिक महत्व
यह एकादशी उन दंपतियों के लिए विशेष फलदायी मानी जाती है जिन्हें संतान प्राप्त नहीं हो रही हो। हिंदू धर्म में माना जाता है कि संतान, विशेष रूप से पुत्र, पूर्वजों के श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मों के लिए आवश्यक होते हैं।
श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से न केवल संतान की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मिक शुद्धि, धर्म में वृद्धि और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
व्रत की परंपराएं और पूजन विधि
- प्रातःकाल स्नान: पवित्र नदियों या गंगाजल मिश्रित जल से स्नान किया जाता है।
- व्रत संकल्प: स्नान के पश्चात व्रत का संकल्प लिया जाता है।
- भगवान विष्णु की पूजा: तुलसी पत्र, चंदन, दीपक, पुष्प आदि से पूजन किया जाता है।
- श्रीमद्भगवद्गीता पाठ: 18 अध्यायों या विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है।
- जागरण एवं कीर्तन: रात्रि में भक्तजन भजन, कीर्तन और विष्णु नामस्मरण करते हैं।
क्या खाएं और क्या न खाएं – व्रत में आहार नियम
क्या खा सकते हैं:
- फल (केला, सेब, अनार आदि)
- दूध, दही, पनीर
- सूखे मेवे (बादाम, काजू)
- साबूदाना, सिंघाड़ा आटा, कुट्टू आटा
- सेंधा नमक
क्या न खाएं:
- अनाज (गेहूं, चावल, दालें)
- प्याज, लहसुन व तामसिक भोजन
- सामान्य नमक
- मांसाहारी भोजन
व्रत की संपूर्ण विधि: सुबह से पारण तक
प्रातःकाल:
- सूर्योदय से पूर्व उठें और स्नान करें
- व्रत का संकल्प लें
- पूजा स्थान की सफाई कर भगवान विष्णु के पूजन की तैयारी करें
दिन में:
- भगवान विष्णु की पूजा तुलसी पत्र व नैवेद्य से करें
- मंत्र जाप व धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें
- मौन, संयम व सात्विक विचारों का पालन करें
संध्या:
- दीप प्रज्वलित कर आरती करें
- यदि संभव हो तो भजन-कीर्तन में भाग लें
- कुछ भक्त रात्रि जागरण भी करते हैं
पारण (अगले दिन):
- 6 अगस्त को प्रातः 06:09 से 08:43 के बीच पारण करें
- पारण से पूर्व ब्राह्मणों या ज़रूरतमंदों को भोजन दें
व्रत के लाभ
- संतान की प्राप्ति, विशेषकर सद्गुणी पुत्र
- पारिवारिक सुख-शांति व समृद्धि
- पापों से मुक्ति
- भक्ति व आत्मिक उन्नति
- भगवान विष्णु की कृपा से मनोकामनाओं की पूर्ति
श्रावण पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा
भविष्य पुराण के अनुसार, माहिष्मती नगरी के राजा महीजित संतानहीन थे। उन्होंने महर्षियों की सलाह पर श्रद्धा से श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। भगवान विष्णु उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें एक सद्गुणी पुत्र का वरदान प्राप्त हुआ।
यह कथा यह सिखाती है कि श्रद्धा और उपवास से भाग्य को भी बदला जा सकता है।
व्रत के दिन का मंत्र
संस्कृत:
“एकादशी व्रतिं शुभन्याय जन्मन्ये विष्णुम्”
हिंग्लिश:
“Ekadashi vratam shubhamyaya janmanye Vishnum.”
अर्थ:
“यह एकादशी व्रत मुझे पुण्य संतान एवं भगवान विष्णु की कृपा प्रदान करे।”
अन्य मंत्र:
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” (108 बार जप करें)
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. श्रावण पुत्रदा एकादशी 2025 में कब है?
मंगलवार, 5 अगस्त 2025 को है। तिथि 4 अगस्त दोपहर 11:41 बजे शुरू होकर 5 अगस्त दोपहर 1:12 बजे समाप्त होगी।
2. क्या अविवाहित व्यक्ति भी यह व्रत कर सकते हैं?
हाँ, कर सकते हैं। यह व्रत आत्मिक शुद्धि व भगवान विष्णु की कृपा के लिए उपयोगी है, परंतु परंपरागत रूप से यह संतान इच्छुक विवाहितों द्वारा अधिक किया जाता है।
3. व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए?
अनाज, दालें, प्याज, लहसुन, मांसाहार – इन सबका त्याग करें। केवल सात्विक व एकादशी के अनुकूल भोजन करें।
4. पौष की पुत्रदा एकादशी से यह अधिक महत्वपूर्ण क्यों मानी जाती है?
क्योंकि यह श्रावण मास में आती है, जो स्वयं ही धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ महीना होता है।
5. व्रत रखने से क्या लाभ होता है?
मुख्य रूप से संतान की प्राप्ति, साथ ही परिवार में सुख-शांति, पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु की कृपा।
निष्कर्ष: श्रावण पुत्रदा एकादशी की दिव्यता को अपनाएं
श्रावण पुत्रदा एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। यह अवसर है – संतान प्राप्ति, पारिवारिक कल्याण, और आत्मिक उन्नति के लिए भगवान विष्णु की शरण में जाने का। चाहे आप इसे किसी विशेष उद्देश्य से रखें या केवल भक्ति भाव से, यह व्रत जीवन में सुख, शांति और आध्यात्मिक संतुलन लेकर आता है।
श्रावण मास की इस पावन एकादशी पर भगवान विष्णु की कृपा से आपका जीवन समृद्ध और कल्याणकारी हो।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। 🙏
अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: When Is Shravan Putrada Ekadashi 2025? date, tithi, Significance and Fasting Rules Explained