हिंदू पंचांग के अनुसार जब एक चंद्र मास में कोई भी संक्रांति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) नहीं होती है, तो उस मास को “अधिक मास” कहा जाता है। इसे “मलमास” भी कहा जाता है, क्योंकि यह सामान्य महीनों से अलग होता है और कुछ विशेष कार्यों के लिए निषिद्ध माना जाता है।

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यह मास कब आता है?
अधिक मास लगभग हर 32 महीने, 16 दिन और 8 घंटे के अंतराल पर आता है। इसका मुख्य कारण चंद्र और सौर मास की गति में अंतर है।
हर तीन सालों में क्यों आता है अधिक मास?
हिंदू पंचांग दो प्रकार के होते हैं — चंद्र पंचांग (जिसे मासिक रूप से चंद्रमा की गति के अनुसार गिना जाता है) और सौर पंचांग (सूर्य की गति के अनुसार)। चंद्र वर्ष 354 दिन का होता है जबकि सौर वर्ष 365 दिन का। इस 11 दिन के अंतर को संतुलित करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अतिरिक्त मास जोड़ा जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं।
अधिक मास का खगोलीय एवं गणितीय आधार
चंद्र और सौर मास के बीच अंतर
- चंद्र मास: पूर्णिमा से पूर्णिमा या अमावस्या से अमावस्या तक चलता है।
- सौर मास: सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने तक का समय।
चंद्र वर्ष 354 दिन का होता है जबकि सौर वर्ष 365 दिन का। इस प्रकार हर वर्ष लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। यह अंतर हर तीसरे वर्ष एक मास के बराबर हो जाता है, जिसे जोड़कर पंचांग को संतुलित किया जाता है।
पंचांग गणना में इसकी भूमिका
पंचांग का उद्देश्य समय और धर्म के अनुकूल जीवन संचालन है। अधिक मास जोड़कर यह संतुलन बनाए रखा जाता है ताकि सभी पर्व और उत्सव अपने मौसम में आएं।
हिंदू पंचांग में इसका महत्व
अधिक मास का विशेष धार्मिक महत्व है। इसे भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। यह मास भक्ति, तप, जप, व्रत, कथा और दान के लिए अत्यंत पुण्यदायक होता है।
अन्य नाम
- मलमास: प्रारंभ में इसे अशुभ माना जाता था, क्योंकि इसमें कोई संक्रांति नहीं होती थी।
- पुरुषोत्तम मास: भगवान विष्णु ने इस मास को अपना नाम और आशीर्वाद देकर पुण्य मास बना दिया।
अधिक मास को ‘पुरुषोत्तम मास’ क्यों कहा जाता है?
अधिकमास को भगवान विष्णु का विशेष मास माना जाता है, क्योंकि पुरुषोत्तम उनका ही एक नाम है। इसी कारण यह मास पुरुषोत्तम मास के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस संबंध में पुराणों में एक अत्यंत रोचक कथा का वर्णन मिलता है।
कहा गया है कि प्राचीन काल में भारतीय ऋषि-मुनियों ने प्रत्येक चंद्र मास को एक-एक देवता के अधीन कर दिया था। लेकिन जब पंचांग गणना के अनुसार एक अतिरिक्त चंद्र मास प्रकट हुआ, जिसे बाद में अधिकमास कहा गया, तो वह देवता-रहित रह गया। चूंकि यह मास सूर्य और चंद्र वर्ष के बीच असंतुलन को संतुलित करने के लिए अस्तित्व में आया था, अतः कोई भी देवता इसे अपनाने को तैयार नहीं हुआ।
तब सभी मनीषियों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे इस मास को अपने अधीन स्वीकार करें और इसे गौरव प्रदान करें। भगवान विष्णु ने उनकी विनम्र प्रार्थना को स्वीकार करते हुए इस मास को अपनाया और इसे अपना नाम “पुरुषोत्तम मास” प्रदान किया। इस प्रकार यह मास मलमास के साथ-साथ पुरुषोत्तम मास के रूप में भी विख्यात हो गया।
धार्मिक श्लोक:
“यः पुरुषोत्तममासे भक्त्या मां संप्रपूजयेत्।
स समस्तपापविनिर्मुक्तः मम सायुज्यमवाप्नुयात्॥”
अर्थ: जो व्यक्ति पुरुषोत्तम मास में श्रद्धा और भक्ति से मेरी पूजा करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर मुझे प्राप्त करता है।
अधिक मास की पौराणिक कथा
अधिक मास से जुड़ी एक अत्यंत सुंदर और प्रेरणादायक कथा पुराणों में वर्णित है, जो दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से संबंधित है। कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया था और उनसे अमर होने का वरदान मांग लिया।
लेकिन ब्रह्मा जी ने स्पष्ट कर दिया कि अमरता देना संभव नहीं है, अतः उन्होंने उसे कोई अन्य वरदान माँगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने अत्यंत चालाकी से ऐसा वरदान मांगा जो उसे अजेय बना सके। उसने कहा कि उसे ना कोई मनुष्य, ना स्त्री, ना पशु, ना देवता और ना ही असुर मार सके। साथ ही यह भी शर्त रखी कि वह ना दिन में मरे, ना रात में, ना अस्त्र से मरे, ना शस्त्र से, ना घर के भीतर, ना घर के बाहर।
इस असाधारण वरदान को पाकर हिरण्यकश्यप अहंकार से भर गया और स्वयं को ईश्वर घोषित कर दिया। उसने धर्म और भक्ति का दमन करना शुरू कर दिया। जब अत्याचार अपनी सीमा पार कर गया, तब भगवान विष्णु ने अधिक मास के समय में नरसिंह अवतार धारण किया—जो आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए।
वे संध्या काल (ना दिन, ना रात), देहरी (ना घर के अंदर, ना बाहर) पर, अपने नाखूनों (ना अस्त्र, ना शस्त्र) से हिरण्यकश्यप का वध कर देते हैं। इस प्रकार भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना की और अधिक मास की महिमा को और भी विशेष बना दिया।
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इस मास में कौन-कौन से कार्य शुभ माने जाते हैं?
पुण्य प्राप्ति का महत्व
अधिक मास में किए गए धार्मिक कार्य सामान्य दिनों से कई गुना अधिक फल देते हैं।
मोक्ष और भक्ति से संबंध
यह मास मोक्ष प्राप्ति, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उत्तम माना जाता है।
अधिक मास में क्या करना चाहिए?
अनुशंसित कार्य
- कथा एवं कीर्तन: श्रीमद्भागवत, रामायण, गीता, विष्णु पुराण का पाठ।
- व्रत: विशेषकर सोमवार, एकादशी, पूर्णिमा का व्रत।
- भजन और कीर्तन: भगवान विष्णु के नाम का स्मरण।
- दान: अन्न, वस्त्र, गौ, स्वर्ण, धन, विद्या आदि का दान।
- तीर्थ यात्रा: पवित्र स्थलों का दर्शन।
- विशेष मंत्र जाप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
अधिक मास में क्या नहीं करना चाहिए?
वर्जित कार्य
- विवाह: यह मास विवाह योग्य नहीं माना जाता।
- मुंडन: बच्चों के लिए यह कार्य भी वर्जित होता है।
- गृह प्रवेश: नए घर में प्रवेश या भवन निर्माण शुभ नहीं माना जाता।
यह निषेध इसलिए है क्योंकि यह मास विशेष रूप से भक्ति और तपस्या के लिए आरक्षित है।
धार्मिक एवं पौराणिक महत्व
पुराणों में उल्लेख
- स्कंद पुराण: इसमें अधिक मास को ‘पुरुषोत्तम मास’ के रूप में वर्णित किया गया है।
- ब्रह्म पुराण: इसमें कहा गया है कि यह मास भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और इसमें किए गए पुण्यकर्म अनंत फलदायी होते हैं।
भगवान विष्णु का संबंध
भगवान विष्णु ने स्वयं इस मास को अपनी उपाधि दी, जिससे यह मास सबसे श्रेष्ठ माना गया।
वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण
चंद्र-सौर कैलेंडर का संतुलन
अधिक मास पंचांग विज्ञान का उत्कृष्ट उदाहरण है। इससे समय चक्र संतुलित होता है और धार्मिक पर्व मौसम के अनुसार मनाए जाते हैं।
समाज में इसकी स्वीकार्यता
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अधिक मास को अत्यंत श्रद्धा से मनाया जाता है। कथा, कीर्तन, व्रत, और सामूहिक भजन की परंपरा आज भी जीवित है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: अधिक मास कितने वर्षों में आता है?
उत्तर: लगभग हर 32.5 महीने में एक बार।
प्रश्न 2: क्या इस मास में विवाह हो सकता है?
उत्तर: नहीं, यह मास शुभ कार्यों जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश के लिए वर्जित है।
प्रश्न 3: अधिक मास में क्या करना चाहिए?
उत्तर: व्रत, कथा, कीर्तन, दान, मंत्र जाप, और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
प्रश्न 4: इसे पुरुषोत्तम मास क्यों कहा गया?
उत्तर: भगवान विष्णु ने इसे अपना नाम और स्थान देकर अत्यंत पवित्र मास बना दिया।
सारांश:
अधिक मास केवल पंचांग का गणितीय समायोजन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अवसर है – आत्मविश्लेषण, आत्मशुद्धि और ईश्वरभक्ति का। यह मास न केवल धार्मिक दृष्टि से विशेष है, बल्कि जीवन को संतुलित और संयमित करने का एक माध्यम भी है।
जो श्रद्धालु इस मास में संकल्प लेकर भक्ति मार्ग पर चलते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की कृपा और मोक्ष की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है।