नाग पंचमी का धार्मिक महत्व: क्यों करते हैं नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा?

नाग पंचमी

नाग पंचमी भारत की उन परंपराओं में से एक है, जहां प्रकृति, आस्था और चेतना का मिलन होता है। यह पर्व सर्पों की पूजा से जुड़ा है, लेकिन इसका महत्व इससे कहीं गहरा है। हर साल श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला यह दिन, हमें याद दिलाता है कि सृष्टि के हर प्राणी के साथ सम्मान और संतुलन जरूरी है  चाहे वह मनुष्य हो या नाग।

क्यों करते हैं नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा?

नाग पंचमी पर नागों की पूजा का धार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से विशेष महत्व है। धर्मग्रंथों में नागों को दिव्य शक्तियों का प्रतिनिधि माना गया है और वे कई देवताओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। ग्रामीण जीवन में सांपों की उपस्थिति आम रही है, और उन्हें हानि पहुँचाना अशुभ माना जाता है। इस दिन दूध, पुष्प और चावल अर्पित करके नागों को सम्मान देने की परंपरा है। यह पूजा सांपों के साथ सह-अस्तित्व, प्रकृति के प्रति श्रद्धा और धार्मिक विश्वासों की अभिव्यक्ति है।

धर्मग्रंथों में नागों की भूमिका

हिंदू धर्मशास्त्रों में नागों का उल्लेख सिर्फ भय, मृत्यु या संकट के प्रतीक के रूप में नहीं किया गया, बल्कि उन्हें ब्रह्मांड की संरचना और धर्म की रक्षा से भी जोड़ा गया है। इनका उल्लेख कई महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों में मिलता है:

  • शेषनाग: इन्हें “अनंत” भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, यह वही नाग हैं जिनके सहारे पूरी पृथ्वी टिकी हुई है और जिनकी सहसा गति पर ब्रह्मांड का संतुलन निर्भर करता है। भगवान विष्णु इन्हीं शेषनाग की शय्या पर क्षीर सागर में योगनिद्रा में स्थित रहते हैं। यह शेषनाग ब्रह्मांड की स्थिरता, विवेक और धैर्य के प्रतीक माने जाते हैं।
  • वासुकि नाग: वासुकि नाग की भूमिका समुद्र मंथन में अत्यंत महत्वपूर्ण रही। देवताओं और असुरों ने मंदराचल पर्वत को मंथनदंड बनाया और वासुकि को रस्सी की तरह उपयोग किया गया। यह प्रसंग यह दर्शाता है कि नाग केवल पूज्य नहीं, बल्कि धर्म और सृष्टि के कार्यों में सहायक भी रहे हैं।
  • तक्षक नाग: तक्षक का वर्णन महाभारत और भागवत पुराण में मिलता है। इन्होंने राजा परीक्षित को उनके अपराध के दंडस्वरूप दंश दिया। यह कथा दर्शाती है कि धर्म के अपमान का परिणाम भी गंभीर हो सकता है और नाग देवता को न्याय का प्रतीक भी माना जा सकता है।
  • शिवजी के गले में वासुकि: हिंदू शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान शिव के गले में जो नाग विराजमान हैं, उनका नाम वासुकि है। समुद्र मंथन के समय वासुकि नाग ने मंदराचल पर्वत को मंथन रस्सी की तरह लपेटा था। मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, तब भगवान शिव ने स्वयं ही आगे आकर उसे ग्रहण करने का निर्णय लिया। उन्होंने संपूर्ण सृष्टि को बचाने के लिए उस विष को पी लिया और अपने कंठ में रोक लिया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा गया।
  • श्रीकृष्ण जन्म के समय शेषनाग की उपस्थिति : श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, तब उनके पिता वसुदेव उन्हें रात के समय मथुरा से गोकुल ले जा रहे थे। रास्ते में मूसलधार वर्षा हो रही थी और यमुना नदी उफान पर थी। उसी समय शेषनाग ने प्रकट होकर वसुदेव और नवजात बालक कृष्ण के ऊपर अपना फन फैलाया, जिससे वे तेज बारिश और अन्य बाधाओं से सुरक्षित रहे।

इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि नागों को केवल परंपरा के कारण नहीं, बल्कि उनकी आध्यात्मिक भूमिका और धार्मिक कथाओं में उनके विशिष्ट स्थान के कारण देवतुल्य स्थान प्राप्त हुआ है। वे सृष्टि की रचना, रक्षा और पुनर्रचना तीनों में किसी न किसी रूप में योगदान देने वाले तत्व हैं।

ग्रामीण भारत में नाग पंचमी का महत्व और सर्पों के प्रति परंपरागत व्यवहार

ग्रामीण भारत में नाग पंचमी का एक व्यावहारिक पहलू भी है। खेतों और गांवों में रहने वाले लोग सांपों को नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि उन्हें दूध और अन्न अर्पित करते हैं। यह पूजा:

  • प्राकृतिक संरक्षण का प्रतीक है,
  • कृषि संतुलन बनाए रखने की परंपरा का हिस्सा है, और
  • सर्पों के साथ सह-अस्तित्व की भावना को मजबूत करती है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से नाग पंचमी

योगशास्त्र में ‘कुंडलिनी’ को एक सर्प के रूप में बताया गया है, जो शरीर में छुपी शक्ति का प्रतीक है। जब यह शक्ति जागृत होती है, तो व्यक्ति आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है। नाग पंचमी उसी आंतरिक ऊर्जा के प्रति श्रद्धा का पर्व है।

धार्मिक मान्यताएं और पूजा का उद्देश्य

नाग पंचमी केवल परंपरा नहीं, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण दिन है।

  • कालसर्प दोष निवारण: जिन लोगों की कुंडली में यह दोष होता है, वे इस दिन विशेष पूजा करके राहत की कामना करते हैं।
  • पितृ शांति से जुड़ाव: कुछ मान्यताओं में नागों को पितरों से जोड़ा जाता है।
  • भगवान शिव से संबंध: नाग देवता शिवजी के आभूषण माने जाते हैं, इसलिए यह दिन शिवभक्ति से भी जुड़ा होता है।

वैदिक मंत्र:

“ॐ नमः सर्पेभ्यः ये के च पृथिव्याम स्थिताः। ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यः नमः।”

भावार्थ: जो सर्प पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग में निवास करते हैं, उन सभी को हमारा नमस्कार है।

नाग पंचमी हमें यह समझाने का प्रयास करती है कि जो हमें भयभीत करता है, उसे समझकर अपनाया जा सकता है। सर्पों की पूजा एक प्रकार से यह स्वीकार करना है कि जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए हमें हर जीव-जंतु के महत्व को पहचानना होगा।

यह पर्व हमें डर से नहीं, समझ और सम्मान से जुड़ने का संदेश देता है। नाग देवता की पूजा उस विचार को दर्शाती है कि धर्म केवल ईश्वर की पूजा नहीं, बल्कि हर जीव के प्रति उत्तरदायित्व भी है।

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