सकट चौथ व्रत हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे हर साल माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान गणेश और चंद्र देव की पूजा के लिए समर्पित होता है। माताएं इस दिन अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए उपवास करती हैं। सकट चौथ की व्रत कथा को सुनना और इसका पालन करना व्रत का एक अनिवार्य भाग माना जाता है। आइए जानते हैं इस पवित्र व्रत की कथा।
Table of Contents
सकट चौथ व्रत की कहानी
साहूकारनी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। वे धार्मिक कार्यों में विश्वास नहीं रखते थे, इसलिए उनके घर में संतान का सुख नहीं था। एक दिन साहूकारनी अपने पड़ोसी के घर गई, जहां उसकी पड़ोसन सकट चौथ व्रत कर रही थी और व्रत की कथा सुना रही थी। साहूकारनी ने पूछा, “यह किसकी कथा है?” पड़ोसन ने उत्तर दिया, “यह सकट चौथ की कथा है। इसे करने से अन्न-धन, सुहाग, और पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।”
साहूकारनी ने मन ही मन सोचा, “यदि मेरा गर्भ ठहर जाए तो मैं सवा सेर तिलकुट चढ़ाऊंगी और चौथ का व्रत करूँगी।” भगवान गणेश की कृपा से वह गर्भवती हुई और फिर संकल्प लिया कि पुत्र होने पर ढाई सेर तिलकुट चढ़ाएगी। जब उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तो उसने यह वचन लिया कि पुत्र का विवाह हो जाने पर सवा पांच सेर तिलकुट चढ़ाएगी।
वर्षों बाद पुत्र का विवाह तय हुआ, लेकिन साहूकारनी अपने वचन को भूल गई। इस पर चौथ देव नाराज हो गए और साहूकारनी के पुत्र को शादी के फेरे के समय गायब कर दिया। साहूकारनी परेशान होकर भगवान गणेश से क्षमा मांगने लगी। उसने कहा कि यदि उसका पुत्र सकुशल लौट आए, तो वह ढाई मन तिलकुट चढ़ाएगी। भगवान गणेश की कृपा से पुत्र वापस आ गया और विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। इसके बाद साहूकारनी ने तिलकुट चढ़ाकर चौथ व्रत का पालन किया। तब से यह व्रत लोकप्रिय हो गया।
संकटों को दूर करने वाली कथा
कहते हैं कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था, जिसकी मिट्टी के बर्तन पक नहीं रहे थे। उसने पुजारी से सलाह ली, जिसने छोटे बच्चे की बलि देने का सुझाव दिया। कुम्हार ने सकट चौथ के दिन एक बच्चे को आंवा में डाल दिया। लेकिन बच्चे की मां ने गणेश जी से सच्चे मन से प्रार्थना की।
अगली सुबह कुम्हार ने देखा कि बर्तन तो पक गए, लेकिन बच्चा सुरक्षित था। इस घटना ने कुम्हार को भयभीत कर दिया। उसने राजा से पूरी बात बताई। जब बच्चे की मां को बुलाया गया, तो उसने सकट चौथ व्रत की महिमा का वर्णन किया। तभी से माताएं अपनी संतानों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए इस व्रत को करती आ रही हैं।
सकट चौथ व्रत का महत्व
इस व्रत का पालन करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। भगवान गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता कहा जाता है, इस दिन भक्तों के सभी कष्ट हरते हैं। सकट चौथ की कथा को सुनने और कहने से जीवन में शुभता आती है।
निष्कर्ष
सकट चौथ व्रत का विशेष महत्व है, क्योंकि यह व्रत माताओं की संतान के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करता है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का भी संचार करता है। भगवान गणेश सभी भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करें और उनके जीवन को सुख-समृद्धि से भरें।
इस कथा को इंग्लिश मे पढने के लिये यहा क्लिक करे ।