क्या है ‘ध्यान’ और कैसे करें उसका अभ्यास प्रारंभिक स्तर पर?

क्या है ध्यान?

हिंदू धर्म में ध्यान (Meditation) को आत्मा की शुद्धि और ईश्वर से संपर्क स्थापित करने का श्रेष्ठ मार्ग माना गया है। ध्यान कोई नया चलन नहीं है, बल्कि यह वेदों, उपनिषदों, और योग शास्त्रों से निकली एक गूढ़ साधना है जो हमें मन की चंचलता से मुक्त कर अंतर्मुखी बनाती है। यह लेख उन प्रारंभिक साधकों के लिए है जो ध्यान के अभ्यास को आरंभ करना चाहते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि कहां से और कैसे शुरुआत करें।

ध्यान का अर्थ और उसका महत्व

‘ध्यान’ शब्द संस्कृत की ‘धि’ धातु से निकला है, जिसका अर्थ है बुद्धि या चेतना। ध्यान का अर्थ है मन को एक बिंदु पर स्थिर करना और अंतर्मुखी होकर आत्मचिंतन करना।

शास्त्रीय परिभाषा:

“ध्यानं निरंतरं मनस्येकत्वम्” — पतंजलि योगसूत्र

अर्थात जब मन निरंतर एक ही वस्तु या लक्ष्य पर स्थिर रहता है, वही ध्यान है।

हिंदू दर्शन में ध्यान को:

  • आत्मज्ञान प्राप्ति का मार्ग,
  • ईश्वर से एकात्मकता का अनुभव,
  • चित्त की शुद्धि का साधन
    माना गया है।

ध्यान का प्रारंभिक अभ्यास कैसे करें?

1. स्थान का चयन:

शांत, स्वच्छ और पवित्र स्थान का चयन करें। यदि संभव हो तो एक ही स्थान पर प्रतिदिन ध्यान करें।

2. समय:

ब्राह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) ध्यान के लिए श्रेष्ठ माना गया है। शाम को सूर्यास्त के बाद भी ध्यान किया जा सकता है।

3. आसन:

सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठें। पीठ सीधी रखें, आँखें बंद करें, और शरीर को स्थिर रखें।

4. श्वास पर ध्यान:

अपने श्वास की गति को महसूस करें। इसे रोकने या बदलने की आवश्यकता नहीं है, केवल उसका साक्षी बनें।

5. मंत्र जप:

प्रारंभ में किसी सरल मंत्र का जप करें, जैसे:
ॐ नमः शिवाय
ॐ विष्णवे नमः

या बीज मंत्र:

यह मंत्र जप मन को स्थिर करने में सहायक होता है।

6. एकाग्रता:

मन यदि भटकता है, तो उसे gently वापस मंत्र या श्वास पर लाएं। शुरुआत में 5–10 मिनट पर्याप्त हैं।

ध्यान से क्या लाभ होते हैं?

  • मानसिक शांति और स्थिरता
  • चित्त की शुद्धि
  • नकारात्मक विचारों का क्षय
  • आत्मनिरीक्षण और आत्मज्ञान
  • आध्यात्मिक उन्नति

शास्त्रीय और पौराणिक प्रमाण

भगवद गीता में:

“युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः ।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥” (6.15)

भावार्थ: इस प्रकार चित्त को संयमित कर जो योगी निरंतर ध्यान करता है, वह परम शांति और मोक्ष को प्राप्त करता है।

उपनिषदों में:

“ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरुर्पदम्।”

अर्थात ध्यान का मूल गुरु की मूर्ति है — ध्यान में गुरु या ईश्वर का स्वरूप केंद्र में रखें।

ध्यान करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

  • शरीर स्थिर हो परंतु तनावमुक्त रहे
  • धीरे-धीरे समय को बढ़ाएं
  • दैनिक नियम बनाए रखें
  • फल की चिंता न करें

ध्यान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • ध्यान से मस्तिष्क में ग्रे मैटर की वृद्धि होती है
  • तनाव हार्मोन (Cortisol) कम होता है
  • एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है
  • भावनात्मक संतुलन प्राप्त होता है

ध्यान की सरल विधि (Step-by-Step)

  1. शांत स्थान पर बैठें
  2. रीढ़ सीधी रखें
  3. आँखें बंद करें
  4. श्वास पर ध्यान केंद्रित करें
  5. एक मंत्र का जप करें
  6. मन भटके तो वापस लाएं
  7. प्रारंभ में 5–10 मिनट करें
  8. अभ्यास नियमित रखें

ध्यान के कुछ उपयोगी मंत्र

ॐ मंत्र:

– सृष्टि का आदि नाद, ध्यान का मूल

गायत्री मंत्र:

ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यम्।
भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥

भावार्थ: हम उस दिव्य सविता (सूर्य रूपी परमात्मा) का ध्यान करें, जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।

ध्यान को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं

ध्यान केवल बैठने की क्रिया नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की एक कला है। यह न केवल आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करता है, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शांति और सफलता प्रदान करता है। जो साधक नियमित ध्यान करता है, वह धीरे-धीरे आत्मानुभूति की ओर बढ़ता है।

अतः आइए, हम सभी अपने व्यस्त जीवन में कुछ क्षण ईश्वर के लिए निकालें और ध्यान साधना को अपनाकर अपने अंतर्मन को उज्जवल बनाएं।

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