संत गुरु रविदास जयंती 2025: जीवन परिचय, भजन, विचार और समाज में योगदान

संत गुरु रविदास भक्ति आंदोलन के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। वे 15वीं-16वीं शताब्दी के दौरान उत्तर भारत में सक्रिय थे। उन्होंने समाज में फैले जातिभेद, अस्पृश्यता और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई। उनके विचारों और कीर्तन ने समाज में एकता और भाईचारे का संदेश दिया।

एक आध्यात्मिक चित्र जिसमें संत श्री गुरु रविदास जी का दिव्य स्वरूप है, पीले पृष्ठभूमि पर भक्तिपूर्ण आभा के साथ।
संत रविदास जयंती 2025 – महान संत, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रेरणास्रोत को श्रद्धांजलि अर्पित करें।

1. संत गुरु रविदास का जीवन परिचय

जन्म और परिवार

ऐसा माना जाता है कि गुरु रविदास का जन्म 1377 से 1399 के बीच वाराणसी (काशी) में हुआ था। हालांकि, उनकी जन्मतिथि और माता के नाम को लेकर विभिन्न भ्रांतियाँ मौजूद हैं। वे चर्मकार समाज से संबंधित थे। उनके पिता का नाम संतोक दास और माता का नाम कर्मा देवी बताया जाता है, लेकिन कुछ अन्य स्रोतों में माता के नाम को लेकर अलग-अलग दावे किए गए हैं। उनके जन्म के समय समाज में जातिवाद और अस्पृश्यता का बोलबाला था।

बाल्यकाल और शिक्षा

गुरु रविदास को बचपन से ही ईश्वर भक्ति और संतों की संगति में रहने की रुचि थी। उनके माता-पिता ने उन्हें शिक्षा लेने का अवसर दिया, लेकिन सामाजिक भेदभाव के कारण उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। फिर भी, उन्होंने ज्ञानार्जन जारी रखा और अपने अनुभवों से आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण की।

भक्ति और संत परंपरा

गुरु रविदास निर्गुण भक्ति संप्रदाय के अनुयायी थे। वे संत कबीर के समकालीन थे और उनके विचारों में समानता थी। उन्होंने मूर्तिपूजा के स्थान पर ईश्वर के नाम स्मरण और सत्य, प्रेम, करुणा जैसे नैतिक मूल्यों पर आधारित भक्ति का प्रचार किया। उन्होंने यह सिखाया कि ईश्वर सभी के लिए समान है और वह किसी जाति, धर्म या वर्ग विशेष तक सीमित नहीं है।

मुख्य शिक्षाएं और विचारधारा

गुरु रविदास की शिक्षाएं समानता, प्रेम, भक्ति और सामाजिक न्याय पर आधारित थीं। उनके कुछ प्रमुख विचार इस प्रकार हैं:

  • सर्वत्र समानता: प्रत्येक व्यक्ति समान है और किसी को भी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर नीचा नहीं माना जाना चाहिए।
  • नाम स्मरण: ईश्वर की उपासना के लिए मूर्तिपूजा आवश्यक नहीं है, बल्कि ईश्वर का नाम स्मरण और निःस्वार्थ भक्ति महत्वपूर्ण है।
  • श्रम का महत्व: मेहनत और ईमानदारी से काम करना ही जीवन की सर्वोच्च साधना है।
  • सदाचार और सत्य: हमेशा सत्य, नैतिकता और अच्छाई के मार्ग पर चलना चाहिए।
  • बेगमपुर की संकल्पना: उन्होंने ‘बेगमपुर’ नामक आदर्श राज्य की कल्पना की, जहां कोई दुख, अन्याय या गरीबी नहीं होती।

2. गुरु रविदास का साहित्य और रचनाएँ

गुरु रविदास ने कई भक्ति गीत, दोहे और अभंग रचे। उनकी कुछ रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में भी संकलित हैं, जिससे सिख धर्म में भी उनका विशेष स्थान है। उनके काव्य में सामाजिक समानता, मानवता का संदेश और भक्ति की मिठास है।

प्रसिद्ध दोहे:

👉 “मन चंगा तो कठौती में गंगा।”अर्थ: यदि मन शुद्ध है, तो विशेष धार्मिक विधियों की कोई आवश्यकता नहीं। ईश्वर का सान्निध्य प्राप्त करने के लिए अंतःकरण की पवित्रता ही पर्याप्त है।

👉 “ऐसा चाहूं राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न। छोट बड़ो सब संग बसे, रैदास रहे प्रसन्न।।”अर्थ: ऐसा राज्य होना चाहिए जहाँ सभी को समान अवसर और भोजन मिले, जहाँ कोई ऊँच-नीच न हो और सभी प्रेमपूर्वक रहें।

समाज पर प्रभाव और विरासत

गुरु रविदास के विचारों का प्रभाव पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में देखा जा सकता है। उनके अनुयायी ‘रविदासी’ कहलाते हैं। सिख धर्म के गुरु ग्रंथ साहिब में उनके 40 से अधिक पद शामिल हैं।

निधन

ऐसा माना जाता है कि 1528 में उनका निधन हुआ। उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं।

गुरु रविदास के दोहों की विशेषताएँ

गुरु रविदास के दोहे सरल और सहज भाषा में होते हुए भी अत्यंत गूढ़ अर्थ और गहन दर्शन से परिपूर्ण हैं। उनके दोहों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • सामाजिक समानता का संदेश: उन्होंने अपने दोहों में वर्ण व्यवस्था और जातिभेद का कड़ा विरोध किया।
  • नाम स्मरण का महत्व: उन्होंने भक्ति मार्ग में ईश्वर के नाम स्मरण को सर्वोच्च स्थान दिया।
  • आदर्श समाज की कल्पना: ‘बेगमपुर’ की संकल्पना के माध्यम से उन्होंने एक समानता आधारित समाज की कल्पना प्रस्तुत की।
  • श्रम का महत्व: उन्होंने परिश्रम के महत्व को बताया और ईमानदारी से किए गए श्रम को सर्वोच्च स्थान दिया।
  • नैतिकता और सरलता: उन्होंने सादगी और नैतिकता को जीवन का सर्वोच्च मूल्य माना।

3. गुरु रविदास के दोहे और उनके अर्थ

👉 “मन चंगा तो कठौती में गंगा।”अर्थ: यदि मन शुद्ध और पवित्र है, तो किसी बाहरी तीर्थयात्रा या धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं है। गंगा में स्नान करने के बजाय, अपने हृदय की पवित्रता अधिक महत्वपूर्ण है। यह दोहा कर्मकांड और अंधविश्वास पर सीधी चोट करता है।

👉 “जात-पात के फेर में, उरझि रहि गया संसार। यह बस्ती हरि नाम बिन, रही न एकउ बार॥”अर्थ: संपूर्ण संसार जात-पात और भेदभाव के जाल में उलझा हुआ है, लेकिन सच्चाई यह है कि ईश्वर के नामस्मरण के बिना यह संसार टिक नहीं सकता। गुरु रविदास ने इस दोहे में सामाजिक भेदभाव और वर्णव्यवस्था पर कठोर प्रहार किया है।

👉 “ऐसा चाहूं राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न। छोट बड़ो सब संग बसे, रैदास रहे प्रसन्न॥”अर्थ: गुरु रविदास ने इस दोहे में एक समानतापूर्ण समाज की कल्पना की है। वे ऐसा राज्य चाहते हैं, जहाँ हर व्यक्ति को अन्न, न्याय और समान अवसर मिले। यहाँ कोई ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं हो, और सभी लोग आनंदपूर्वक जीवन यापन करें।

👉 “हरि के संग बसै बैकुंठा। दरस परस बिनसे दुख पुंथ॥”अर्थ: जो व्यक्ति ईश्वर की भक्ति में लीन होता है, वही सच्चे वैकुंठ (स्वर्ग) में निवास करता है। ईश्वर के दर्शन और उनकी संगति से सभी दुख समाप्त हो जाते हैं।

👉 “कर्म भूमि पर फल सब काहू। विधि के लेख मिटै ना राहू॥”अर्थ: इस दोहे में कर्म का महत्व बताया गया है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है, और नियति का लेखन कोई मिटा नहीं सकता।

👉 “जो बिनु गुरु के जानै, सो मतिहीन अजान। तृण तोरै ज्यूं गदहा, संसारा में निपट गुमान॥”अर्थ: जो व्यक्ति गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है, वह मूर्ख होता है। वह उस गधे के समान है, जो केवल घास खाने तक ही सीमित रहता है और आगे नहीं सोच सकता।

👉 “राम नाम जप लीजिए, छूटे सब उपद्रव। संत संग जब पाइए, मिटे सकल कुहरव॥”अर्थ: ईश्वर के नामस्मरण से सभी संकट और कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं। संतों की संगति में रहने से अज्ञानता का नाश होता है।

👉 “जाति जाति में जाति है, जो केतन के पात। रैदास मानुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात॥”अर्थ: जाति-पाति का भेदभाव एक पेड़ के पत्तों की तरह है, जहाँ हर पत्ता अलग दिखता है, लेकिन मूल एक ही होता है। मानवता तब तक एक नहीं हो सकती, जब तक जातिवाद समाप्त नहीं होता।

गुरु रविदास ने अपने दोहों के माध्यम से सामाजिक समानता, ईश्वरभक्ति, श्रम के महत्व और नैतिकता का संदेश दिया। उन्होंने जातिभेद, अंधविश्वास और कर्मकांडों का विरोध किया और सभी के लिए समानता पर आधारित समाज की संकल्पना की। उनके दोहे आज भी समाज के लिए प्रेरणादायक हैं और मानव जीवन का सही मार्ग दिखाते हैं।

4. कब है गुरु रविदास जयंती 2025?

गुरु रविदास जयंती संत गुरु रविदास के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। यह जयंती मुख्य रूप से माघ पूर्णिमा के दिन (फरवरी माह में) बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। वर्ष 2025 में, गुरु रविदास जयंती 12 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी। संत गुरु रविदास 15वीं-16वीं शताब्दी के महान संत, समाज सुधारक और भक्त कवि थे। उनकी शिक्षाओं और विचारों ने समाज में बड़ा परिवर्तन किया। इसी कारण, उनकी जयंती आज भी पूरे भारत में, विशेष रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा में भक्ति भाव के साथ मनाई जाती है।

गुरु रविदास जयंती का महत्व

गुरु रविदास जयंती केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह दिन उनकी शिक्षाओं को याद करने और उनके विचारों के अनुरूप सामाजिक समानता के प्रचार-प्रसार के लिए मनाया जाता है। इस दिन उनके अनुयायी और भक्तजन उनकी शिक्षाओं पर चर्चा करते हैं, कीर्तन-भजन का आयोजन करते हैं और समाज के जरूरतमंद लोगों के लिए विभिन्न सेवा कार्यों का संचालन करते हैं।

गुरु रविदास जयंती की तिथि और पंचांग के अनुसार महत्व

गुरु रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा को हुआ था। इसलिए, उनकी जन्मतिथि के अनुसार, प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा को यह जयंती मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि हर वर्ष बदलती रहती है, लेकिन यह पर्व मुख्य रूप से फरवरी माह में पड़ता है।

गुरु रविदास जयंती के उत्सव और परंपराएँ

1. भव्य शोभायात्रा (नगर कीर्तन)

इस दिन वाराणसी, अमृतसर, दिल्ली, मुंबई और पंजाब सहित विभिन्न स्थानों पर भव्य शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं। हजारों भक्त इन शोभायात्राओं में भाग लेते हैं और गुरु रविदास के विचारों व शिक्षाओं को प्रसारित करते हैं।

2. प्रवचन और सत्संग

गुरु रविदास की शिक्षाओं पर प्रवचन और सत्संग आयोजित किए जाते हैं, जहाँ उनके दोहों का वाचन और उनके संदेशों का प्रचार किया जाता है।

3. विशेष पूजा और भजन संध्या

गुरु रविदास से संबंधित मंदिरों में विशेष पूजा, आरती और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है।

4. अमृतसर स्थित ‘श्री गुरु रविदास जन्मस्थली’ में विशेष आयोजन

वाराणसी के गुरु रविदास मंदिर और अमृतसर स्थित श्री गुरु रविदास जन्मस्थली पर लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और बड़े भक्ति भाव से भव्य आयोजन करते हैं।

5. सामूहिक अन्नदान और सेवा कार्य

इस दिन अनेक स्थानों पर अन्नदान, वस्त्रदान, स्वास्थ्य शिविर और अन्य सेवा कार्य किए जाते हैं। गरीब एवं जरूरतमंद लोगों के लिए निःशुल्क भोजन प्रसाद की व्यवस्था भी की जाती है।

गुरु रविदास जयंती के विशेष पहलू

  • जातिभेद और अस्पृश्यता के विरोध का संदेश: गुरु रविदास जयंती का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य सामाजिक समानता को बढ़ावा देना है।
  • श्रम का महत्व: गुरु रविदास का संदेश था कि कर्म ही सर्वोच्च धर्म है।
  • नाम स्मरण का महत्व: भक्ति मार्ग में ईश्वर के नाम स्मरण को विशेष स्थान दिया गया है।
  • संत परंपरा का पालन: इस दिन संत समाज के लोग और भक्त विशेष प्रवचन करते हैं और गुरु रविदास की शिक्षाओं पर विचार-विमर्श करते हैं।

गुरु रविदास जयंती भारत और विदेश में कैसे मनाई जाती है?

1. भारत में:

  • उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भव्य समारोह होते हैं।
  • वाराणसी स्थित गुरु रविदास जन्मस्थली पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
  • अमृतसर और दिल्ली में विशाल शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।

2. विदेशों में:

गुरु रविदास जयंती भारत के बाहर भी बड़े भक्तिभाव से मनाई जाती है। विशेष रूप से कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में रहने वाले पंजाबी और रविदासिया समुदाय इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

गुरु रविदास जयंती का समाज पर प्रभाव

गुरु रविदास जयंती का सबसे बड़ा प्रभाव सामाजिक समानता, प्रेम और सहिष्णुता का संदेश फैलाना है। उनकी शिक्षाओं ने कई समाज सुधारकों और विचारकों को प्रेरित किया है। उनका दर्शन किसी एक समुदाय तक सीमित न होकर पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायक है।

5. गुरु रविदास के विचार

गुरु रविदास ने समाज के लिए अनेक मूल्यवान विचार प्रस्तुत किए, जो आज भी समाज सुधार के लिए प्रासंगिक हैं। उनके विचारों के कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

सामाजिक समानता:

गुरु रविदास ने जाति भेद और अस्पृश्यता का विरोध किया। उन्होंने यह संदेश दिया कि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर का अंश है और सबको समान अधिकार मिलने चाहिए।

श्रम का महत्व:

उन्होंने मेहनत और ईमानदारी से किए गए श्रम को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। उनका संदेश था, “कर्म ही सच्चा धर्म है।”

नाम स्मरण का महत्व:

गुरु रविदास ने भक्ति और ईश्वर के नाम स्मरण को सर्वोच्च स्थान दिया। उनके भजनों में ‘रामनाम’ और ‘हरि कीर्तन’ को विशेष रूप से महत्व दिया गया है।

संतोष और सादगी:

उन्होंने अत्यंत सरल जीवन व्यतीत किया और दूसरों को भी सादगी अपनाने की सलाह दी। उन्होंने वैभव और अहंकार से दूर रहने का संदेश दिया।

सत्य और न्याय:

गुरु रविदास ने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और कहा कि जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, उसे कोई हरा नहीं सकता।

6. गुरु रविदास के भजन

गुरु रविदास ने अनेक सुंदर भजन रचे, जो भक्ति और सामाजिक जागरूकता का संदेश देते हैं। उनके कुछ प्रसिद्ध भजनों के उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  1. “प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी” – इस भजन में गुरु रविदास ने ईश्वर और भक्त के बीच के अटूट संबंध को स्पष्ट किया है।
  2. “अवधू, ऐसा ज्ञान बिचार” – इसमें आत्मज्ञान और आध्यात्मिक शिक्षा के महत्व को समझाया गया है।
  3. “मन चंगा तो कठौती में गंगा” – इस प्रसिद्ध भजन में वे कहते हैं कि यदि मन शुद्ध हो, तो किसी बाहरी धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं है।

गुरु रविदास के भजन आज भी गुरुद्वारों और भजन मंडलियों में गाए जाते हैं और संत साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

7. गुरु रविदास मंदिर

गुरु रविदास के नाम पर कई मंदिर और तीर्थस्थल स्थापित किए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख स्थान निम्नलिखित हैं:

श्री गुरु रविदास जन्मस्थल मंदिर, वाराणसी

यह मंदिर गुरु रविदास के जन्मस्थान पर बनाया गया है। हर साल यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

गुरुद्वारा श्री गुरु रविदास, अमृतसर

इस गुरुद्वारे में गुरु रविदास की शिक्षाओं पर आधारित प्रवचन और सत्संग आयोजित किए जाते हैं।

दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के मंदिर

भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में, गुरु रविदास के नाम पर कई मंदिर और आश्रम स्थापित किए गए हैं।

8. गुरु रविदास का योगदान

गुरु रविदास ने समाज के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन आए।

जाति व्यवस्था पर प्रहार:

उन्होंने अस्पृश्यता और जाति भेदभाव का खुलकर विरोध किया। उन्होंने सभी जातियों के लोगों को एकजुट करने के लिए बड़े प्रयास किए।

स्त्रियों को समान अधिकार:

गुरु रविदास ने महिलाओं को शिक्षा और भक्ति मार्ग में समान स्थान देने की वकालत की।

संत परंपरा में योगदान:

उन्होंने भक्ति संप्रदाय के संत तुकाराम और संत नामदेव के साथ समानता और भक्ति का संदेश फैलाया।

सामाजिक न्याय:

उन्होंने “बेगमपुर” नामक एक काल्पनिक आदर्श राज्य की परिकल्पना की, जहाँ सभी लोग समान हों और किसी प्रकार का अन्याय न हो।

9. गुरु रविदास की शिक्षाएँ

गुरु रविदास की कुछ प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं:

  • प्रत्येक व्यक्ति समान है: उन्होंने जाति, धर्म और सामाजिक भेदभाव को अस्वीकार करते हुए सभी मनुष्यों को समान बताया।
  • ईश्वर भक्ति और नामस्मरण: उनके अनुसार, ईश्वर की भक्ति और नामस्मरण जीवन का अंतिम उद्देश्य होना चाहिए।
  • कर्म ही सच्ची पूजा है: उन्होंने मेहनत और ईमानदारी से किए गए कार्य को ही सच्ची पूजा बताया।
  • सत्य और न्याय: वे हमेशा सत्य और न्याय के पक्षधर रहे और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई।

10. गुरु रविदास के अनुयायी

गुरु रविदास के अनुयायी भारत और विदेशों में फैले हुए हैं। प्रमुख रूप से उनके अनुयायियों के समुदाय निम्नलिखित हैं:

रविदासिया समुदाय:

  • पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में उनके अनुयायी ‘रविदासिया’ कहलाते हैं।

सिख धर्म में प्रभाव:

  • गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु रविदास के 40 से अधिक दोहे और पद शामिल हैं।

विदेशों में अनुयायी:

  • इंग्लैंड, कनाडा, अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में भी उनके भक्त बड़ी संख्या में मौजूद हैं।

11. गुरु रविदास का साहित्य

गुरु रविदास ने अनेक भजन, पद और दोहे रचे, जिनका संकलन उनके अनुयायियों द्वारा किया गया। प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं:

  • गुरु ग्रंथ साहिब में योगदान:
    • सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ में उनके 40 से अधिक भजन और दोहे शामिल हैं।
  • ‘रविदास रामायण’ और ‘रविदास की वाणी’:
    • उनके अनुयायियों ने उनके विचारों और शिक्षाओं का संकलन कर ग्रंथ तैयार किए।
  • नामस्मरण और भजन संग्रह:
    • उनके भजन आज भी मंदिरों और भजन मंडलियों में गाए जाते हैं।

निष्कर्ष

गुरु रविदास केवल संत ही नहीं, बल्कि समाज सुधारक भी थे। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रेरणादायक हैं और उनके विचार सामाजिक समानता और न्याय का संदेश देते हैं। उनके दोहे और भजन भक्ति साहित्य का अमूल्य हिस्सा हैं।

🙏 “जो बिनु गुरु के जानै, सो मतिहीन अजान।” (गुरु के बिना ज्ञान अधूरा रहता है।)

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