रामानुजाचार्य जयंती 2025: तिथि, इतिहास, शिक्षाएं और महान वैष्णव संत के अनुष्ठान

Ramanujacharya Jayanti 2025 hindi

परिचय

रामानुजाचार्य जयंती उस दिव्य संत और दार्शनिक आचार्य रामानुज की जयंती के रूप में मनाई जाती है, जिन्होंने विशिष्टाद्वैत वेदांत दर्शन को प्रचारित किया। वर्ष 2025 में यह जयंती शुक्रवार, 2 मई को मनाई जाएगी। रामानुजाचार्य को हिंदू धर्म के सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक सुधारकों में गिना जाता है और उन्हें श्रीवैष्णव परंपरा के प्रमुख स्थापक माना जाता है। उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं — समता, भक्ति और परमेश्वर के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण (प्रपत्ति) के पथ को दर्शाते हुए। इस दिन विशेष पूजा, प्रवचन और विष्णु मंदिरों में भक्ति आयोजन किए जाते हैं।

रामानुजाचार्य जयंती 2025 तिथि और नक्षत्र

वर्ष 2025 में रामानुजाचार्य जयंती 2 मई, शुक्रवार को मनाई जाएगी। यह तिथि चैत्र मास (या तमिल पंचांग अनुसार पंगुनी) के तिरुवादिरै (आर्द्रा) नक्षत्र में आती है, जिसे आचार्य रामानुज का जन्म नक्षत्र माना जाता है।

रामानुजाचार्य कौन थे?

रामानुजाचार्य का जन्म 1017 ईस्वी में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हुआ था। वे एक महान विद्वान, संत और समाज-सुधारक थे, जिन्होंने विशिष्टाद्वैत वेदांत का प्रचार किया। उनका नाम ‘रामानुज’ का अर्थ है — “राम के छोटे भाई”। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और जीवन भर भक्ति का संदेश फैलाते रहे। उन्होंने सामाजिक असमानता का विरोध किया और मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रेम और विश्वास से परमेश्वर के प्रति आत्मसमर्पण पर बल दिया।

प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक यात्रा

रामानुज का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्होंने बचपन से ही असाधारण बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। उन्होंने कई प्रसिद्ध विद्वानों से शिक्षा प्राप्त की और वैष्णव संत यामुनाचार्य के कार्यों और विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए। यद्यपि वे यामुनाचार्य से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिल पाए, परंतु उनकी शिक्षाओं ने रामानुज के दर्शन को आकार दिया। उन्होंने बाद में पेरिया नंबि से दीक्षा ली और भगवान नारायण (विष्णु) की भक्ति का प्रचार आरंभ किया।

रामानुजाचार्य की शिक्षाएं और योगदान

रामानुजाचार्य का मूल दर्शन विशिष्टाद्वैत था, जिसके अनुसार आत्मा और ब्रह्मांड दोनों सत्य हैं, पर वे परमेश्वर — विष्णु — पर निर्भर हैं। उनके प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं:

  • भक्ति मार्ग को मोक्ष का सर्वोत्तम साधन बताना।
  • मंदिरों के द्वार सभी जातियों के लिए खोलना।
  • प्रपत्ति (पूर्ण आत्मसमर्पण) को भगवान तक पहुँचने का सरल मार्ग बनाना।
  • भक्तों में एकता, सेवा और करुणा का प्रसार करना।
  • श्री भाष्य, गीता भाष्य, वेदार्थ संग्रह, नित्य ग्रंथम जैसे ग्रंथों की रचना करना।

रामानुजाचार्य जयंती के अनुष्ठान और उत्सव

रामानुजाचार्य जयंती विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के वैष्णव मंदिरों में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है। इस दिन के प्रमुख अनुष्ठान इस प्रकार हैं:

  • रामानुज की मूर्ति का अभिषेक और अलंकार
  • दिव्य प्रबंधम् और रामानुजाचार्य के भजन-स्तोत्रों का पाठ।
  • भगवान विष्णु और रामानुजाचार्य के लिए विशेष पूजन और हवन
  • जीवन और दर्शन पर आधारित प्रवचन और उपदेश।
  • प्रसाद वितरण और सामूहिक भंडारे।

रामानुजाचार्य से जुड़े प्रमुख मंदिर

  • श्रीरंगम श्री रंगनाथस्वामी मंदिर – जहाँ वे मुख्य पुजारी और आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे।
  • श्रीपेरंबदूर मंदिर – उनका जन्मस्थल और समाधि स्थल।
  • मेलकोट चेलुवानारायण मंदिर – जहाँ उन्होंने मंदिर परंपराओं का पुनःस्थापन किया।
  • कांचीपुरम वरदराज पेरुमल मंदिर – उनके आरंभिक भक्ति जीवन से जुड़ा स्थल।

रामानुजाचार्य जयंती पर मंत्र और प्रार्थनाएँ

भक्तगण इस दिन विशेष मंत्रों और स्तोत्रों का जप करते हैं जिससे वे आचार्य रामानुज के ज्ञान और कृपा को प्राप्त कर सकें। कुछ प्रमुख मंत्र निम्नलिखित हैं:

“ॐ रामानुजाय नमः”
अर्थ: उस महान आचार्य रामानुज को नमस्कार, जिन्होंने भक्ति और आत्मसमर्पण का मार्ग दिखाया।

“यत्पाद कमल द्वन्द्वं जानतां पुरुषोत्तमः |
सर्वात्मा सर्वलोकेशः श्रीमन्नारायणः प्रभुः ||”

अर्थ: जो रामानुज के द्वंद्व चरणकमलों को जानता है, वह स्वयं नारायण को प्राप्त करता है — जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड के आत्मा और स्वामी हैं।

रामानुजाचार्य जयंती का महत्व

यह पावन दिन हमें रामानुजाचार्य के जीवन मूल्यों की याद दिलाता है — समता, सेवा और पूर्ण भक्ति। श्रीवैष्णव परंपरा के अनुयायियों के लिए, उनका जीवन धर्म और प्रेममय भक्ति का मूर्त स्वरूप है। उनकी जयंती मनाना हमारे आध्यात्मिक संकल्प को दृढ़ करता है और हमें दिव्य प्रेम से जुड़ने का अवसर देता है।

निष्कर्ष

रामानुजाचार्य जयंती 2025 केवल एक स्मृति उत्सव नहीं, बल्कि समर्पण, समावेश और भक्ति के उनके शाश्वत मूल्यों को अपनाने का एक पुनीत अवसर है। उनकी शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी हजार वर्ष पूर्व थीं। प्रार्थना, चिंतन या सेवा के माध्यम से इस दिव्य आत्मा को स्मरण करना भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता के इस महान प्रकाशस्तंभ को सच्ची श्रद्धांजलि है।

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