भारतीय सनातन धर्म की परंपराओं और पुराणों में कई ऐसे प्रसंग मिलते हैं जो न केवल धार्मिक आस्था को बल देते हैं, बल्कि मानव जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों को भी उजागर करते हैं। इन्हीं पौराणिक पात्रों में एक सर्वाधिक पूज्य, शक्तिशाली, और भक्तिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में महाबली हनुमान जी की गाथा सदियों से जन-जन में लोकप्रिय रही है। हनुमान जी का नाम सुनते ही एक ऐसा स्वरूप मन में उभरता है जो बल, बुद्धि, भक्ति और विनय का प्रतीक है। उनका जीवन आदर्श, सेवा और समर्पण की प्रतिमूर्ति माना गया है।

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वरदान कैसे प्राप्त हुआ, इसके पीछे की पौराणिक कथाएं क्या हैं, यह वरदान क्यों महत्वपूर्ण है, और आज के युग में इसका क्या आध्यात्मिक महत्व है। साथ ही, हम यह भी जानेंगे कि उनकी उपासना से भक्तों को क्या-क्या लाभ होते हैं और वे क्यों संकटमोचन कहलाते हैं।
हनुमान जी का जन्म, बचपन और दिव्य शक्तियों की शुरुआत
हनुमान जी का जन्म अंजनी माता और केसरी के पुत्र के रूप में वानर कुल में हुआ। एक अन्य मान्यता यह भी है कि वे पवनदेव के अंश से उत्पन्न हुए, जिससे उन्हें ‘पवनपुत्र’ भी कहा जाता है। उनका जन्म स्वयं शिव जी के अंश से हुआ मानकर उन्हें रुद्रावतार भी कहा जाता है। हनुमान जी का बाल्यकाल असाधारण और विलक्षण था। उन्होंने शैशव अवस्था में ही अपनी असाधारण शक्ति का प्रदर्शन कर दिया था।
एक बार उन्होंने उगते हुए सूर्य को फल समझकर निगल लिया, जिससे पूरे ब्रह्मांड में अंधकार छा गया। देवताओं ने चिंतित होकर भगवान इंद्र से प्रार्थना की। इंद्र ने अपने वज्र से हनुमान को रोका, जिससे वे अचेत हो गए। यह देखकर पवनदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने समस्त वायु का संचार रोक दिया। तब देवताओं ने मिलकर हनुमान जी को अनेक वरदान दिए और उन्हें अमोघ शक्ति, अजर-चिरंजीविता का आंशिक स्वरूप प्रदान किया।
लेकिन बाल्यकाल में ही उनकी शरारतों से परेशान होकर कुछ ऋषियों ने उन्हें यह शाप दे दिया कि वे अपनी शक्तियों को भूल जाएंगे और केवल तभी उन्हें याद आएंगी जब कोई उन्हें उनका स्मरण कराएगा। यही कारण था कि बाद में श्रीराम के संपर्क में आने तक वे अपनी वास्तविक शक्तियों से अनभिज्ञ रहे।
हनुमान जी की रामभक्ति कैसे शुरू हुई और उनका जीवन उद्देश्य क्या था
हनुमान जी का जीवन तब पूरी तरह बदल गया जब उनकी भेंट श्रीराम से हुई। रामायण में वर्णित है कि किस प्रकार सुग्रीव और श्रीराम के मिलन का माध्यम हनुमान बने। यह मिलन केवल एक संयोग नहीं था, बल्कि यह उनके जीवन की धारा को एक निश्चित दिशा देने वाला क्षण था।
हनुमान जी ने श्रीराम की सेवा को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। उन्होंने सीता माता की खोज, लंका दहन, राम-रावण युद्ध में रणनीति, संजीवनी बूटी लाने, विभीषण का सहयोग दिलाने जैसे अनेकों कार्य किए। उनका प्रत्येक कार्य राम भक्ति से प्रेरित और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित था।
उनकी भक्ति इतनी गहन और निष्कलंक थी कि श्रीराम भी उनसे प्रभावित होकर उन्हें अपने सबसे प्रिय भक्तों में स्थान देते हैं।
श्रीराम से हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वरदान कैसे मिला
जब भगवान श्रीराम ने पृथ्वी पर अपने अवतारी उद्देश्य को पूर्ण कर लिया और तय किया कि अब उन्हें अपना लौकिक रूप त्याग कर वैकुण्ठ लौटना है जब श्रीराम ने यह निर्णय लिया कि वे पृथ्वी पर अपने अवतार का अंत कर अब वैकुण्ठ लौटेंगे, तब उन्होंने अपने समस्त सेवकों और अनुयायियों को आशीर्वाद प्रदान किया। उसी समय उन्होंने हनुमान जी को बुलाकर कहा:
“हे हनुमान, तुम मेरे लिए केवल एक सेवक या मित्र नहीं, बल्कि मेरे ह्रदय के अत्यंत निकट हो। तुम्हारी सेवा, निष्ठा और भक्ति अपार है। इसलिए मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि जब तक इस पृथ्वी पर मेरा नाम लिया जाएगा, जब तक रामकथा का गुणगान होता रहेगा, तब तक तुम इस धरती पर चिरंजीवी रहोगे। तुम हर उस स्थान पर उपस्थित रहोगे जहाँ मेरा नाम लिया जाएगा।”
यह वरदान हनुमान जी के लिए एक अत्यंत महान दायित्व भी था – मानवता की सेवा, भक्तों की रक्षा और धर्म की रक्षा करना।
कलियुग में हनुमान जी की उपस्थिति और संकटमोचक रूप में उनकी भूमिका
यह भी कहा जाता है कि हनुमान जी विशेष रूप से कलियुग में अधिक सक्रिय रहते हैं। अन्य देवताओं की तुलना में हनुमान जी उन विरले दिव्य रूपों में से हैं जो आज भी सशरीर इस पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं।
कहते हैं कि जो भक्त सच्चे मन से ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ करता है, या ‘राम नाम’ का स्मरण करता है, वहां स्वयं हनुमान जी उपस्थित हो जाते हैं। उनके विषय में यह भी कहा गया है कि वे गुप्त रूप में तीर्थ स्थलों, साधु-संतों, और भक्तों के बीच भ्रमण करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें संकट से उबारते हैं।
भारत में कई स्थानों पर ऐसी घटनाएं प्रचलित हैं जहाँ किसी संकटग्रस्त भक्त को संकट से उबारने में हनुमान जी ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सहायता की।
हनुमान जी का उल्लेख महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों में कैसे होता है
हनुमान जी का वर्णन केवल रामायण तक सीमित नहीं है। वे महाभारत में भी प्रकट होते हैं।
महाभारत में वर्णन आता है कि जब भीमसेन ने एक विशाल वानर को मार्ग में देखा, तो उन्होंने उसे हटने को कहा। वह वानर हनुमान जी ही थे, जिन्होंने भीम को उनका अहंकार दिखाने के लिए यह रूप धारण किया था। हनुमान जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान होकर पांडवों की विजय सुनिश्चित की।
‘स्कंद पुराण’, ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’, और ‘हनुमान नटकम्’ जैसे ग्रंथों में हनुमान जी को चिरंजीविता प्राप्त होने का उल्लेख मिलता है।
आज भी जब हम ‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर’ बोलते हैं, तो हमारी आत्मा को शांति मिलती है और एक दिव्य ऊर्जा का संचार होता है।
हनुमान जी का स्मरण जीवन में साहस, विश्वास और शक्ति का संचार करता है। वे न केवल संकटमोचन हैं, बल्कि सच्चे अर्थों में मानवता के रक्षक हैं।
जय श्रीराम! जय हनुमान!
इस लेख को इंग्लिश मे पढे : How Lord Hanuman Became Chiranjeevi – A Mythological Tale of Immortality and Devotion