वरूथिनी एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु के वामन अवतार को समर्पित है और इसे अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। वरूथिनी का अर्थ होता है ‘सुरक्षा देने वाली’ या ‘रक्षा कवच’। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से जीवन में आने वाले संकट दूर होते हैं और व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Table of Contents
वरूथिनी एकादशी 2025 तिथि और समय
- एकादशी व्रत तिथि: गुरुवार, 24 अप्रैल 2025
- एकादशी तिथि प्रारंभ: बुधवार, 23 अप्रैल 2025 को शाम 4:43 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: गुरुवार, 24 अप्रैल 2025 को दोपहर 2:32 बजे
- पारण (व्रत खोलने का समय): शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025 को सुबह 5:46 से 8:23 बजे तक
- द्वादशी समाप्त: शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025 को सुबह 11:44 बजे
टिप्पणी: उपरोक्त समय स्थान विशेष के अनुसार बदल सकता है। कृपया स्थानीय पंचांग अवश्य देखें।
वरूथिनी एकादशी का महत्व
“वरूथिनी” शब्द का अर्थ होता है “कवच” या “संरक्षण”। भविष्य पुराण में इस व्रत की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इसके लाभ बताए थे।
कथा अनुसार, धर्मात्मा राजा मान्धाता को एक शाप से मुक्ति इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुई थी। इसी प्रकार राजा धुन्धुमार भी शिवजी के शाप से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर सके थे। यह एकादशी न केवल सांसारिक लाभ देती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति, पापों से मुक्ति और मोक्ष की ओर अग्रसर करती है।
वरूथिनी एकादशी का अर्थ क्या है?
वरूथिनी एकादशी का मूल भाव आत्मसंयम, भक्ति और दान में निहित है। इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धता की प्राप्ति होती है। यह उपवास मन, वचन और कर्म की शुद्धता पर बल देता है।
व्रत करने वाले को झूठ, क्रोध, कटु वचन, हिंसा और वासना जैसे नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए और दिन भर पूजा, मंत्रजप, ध्यान और सत्कर्म में लिप्त रहना चाहिए।
वरूथिनी एकादशी की परंपराएं और रीति-रिवाज
- व्रत रखना: इस दिन उपवास में अन्न, दालें और तामसिक भोजन नहीं लिया जाता। कुछ लोग निर्जला व्रत रखते हैं, जबकि कुछ फलाहार करते हैं।
- दान: अन्न, वस्त्र, तिल, घी, धन आदि का दान अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
- भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु या उनके वामन स्वरूप की पूजा तुलसी पत्र, दीपक, फूल और अगरबत्ती से की जाती है।
- जागरण: रात्रि जागरण कर भजन, कीर्तन और कथा श्रवण करने से पुण्य फल प्राप्त होता है।
- दुष्कर्मों से बचाव: इस दिन चोरी, झूठ बोलना, गाली देना, आलस्य करना आदि से दूर रहना चाहिए।
वरूथिनी एकादशी को क्या खाएं?
इस दिन सात्विक और व्रत योग्य भोजन ही करना चाहिए:
- फल: केला, सेब, अनार, पपीता आदि
- कन्द-मूल: आलू, शकरकंद, अरबी
- अनाज विकल्प: सिंघाड़ा आटा, कुट्टू आटा
- नाश्ता: साबूदाना खिचड़ी, भुने हुए मूँगफली, नारियल
- मिठाई: लौकी का हलवा, साबूदाना खीर, तिल लड्डू
ध्यान दें: चावल, गेहूं, प्याज, लहसुन और मांसाहार वर्जित है।
वरूथिनी एकादशी पर पालन करने योग्य प्रमुख विधियाँ
सुबह के कार्य:
- सूर्योदय से पूर्व स्नान कर तिल मिश्रित जल से शुद्धिकरण करें।
- स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें।
- तुलसी पत्र, पीले पुष्प, फल और दीप से पूजा करें।
- विष्णु सहस्रनाम और अन्य स्तोत्रों का पाठ करें।
दिन के कार्य:
- वरूथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ अथवा श्रवण करें।
- अन्न, वस्त्र, तिल और धन का दान करें।
- मौन व्रत या ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है।
शाम के कार्य:
- घी का दीपक जलाकर भगवान की आरती करें।
- भजन, कीर्तन करें और प्रभु की महिमा का चिंतन करें।
पारण (व्रत खोलना):
- द्वादशी तिथि में प्रातःकाल व्रत खोलें।
- हल्के सात्विक आहार से पारण करें।
- पारण से पूर्व भगवान को धन्यवाद अर्पित करें।
वरूथिनी एकादशी व्रत करने के लाभ
- आध्यात्मिक लाभ: आत्मा की शुद्धि और ईश्वर से निकटता।
- ईश्वरीय संरक्षण: विपत्तियों से रक्षा और दुष्ट प्रभाव से मुक्ति।
- मोक्ष प्राप्ति: पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति।
- स्वास्थ्य लाभ: उपवास शरीर को विषरहित कर ऊर्जा प्रदान करता है।
- सामाजिक लाभ: दान से समाज में करुणा और सहयोग की भावना बढ़ती है।
राजा मान्धाता और राजा धुन्धुमार की कथा
राजा मान्धाता, एक धार्मिक और पराक्रमी राजा थे। एक शाप के कारण उन्हें अनेक कष्ट झेलने पड़े। ऋषियों की सलाह पर उन्होंने वरूथिनी एकादशी का व्रत किया और पुनः अपने सामर्थ्य को प्राप्त किया।
इसी प्रकार राजा धुन्धुमार को शिवजी के शाप से भूत योनि में जाना पड़ा। उन्होंने इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया और शाप से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त किया। ये कथाएं इस व्रत की महिमा को सिद्ध करती हैं।
मंत्र और प्रार्थनाएं
- ओं नमो भगवते वासुदेवाय अर्थ: मैं भगवान वासुदेव को नमन करता हूँ।
- श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम् विष्णु सहस्रनाम का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: क्या सभी लोग वरूथिनी एकादशी का व्रत रख सकते हैं?
उत्तर: हाँ, कोई भी पुरुष या स्त्री यह व्रत रख सकता है। बीमार या वृद्धजन फलाहार कर सकते हैं।
प्रश्न 2: क्या व्रत में पानी पी सकते हैं?
उत्तर: निर्जला व्रत में नहीं, लेकिन सामान्य व्रत में पानी और फलाहार की अनुमति होती है।
प्रश्न 3: यदि कोई पूरा उपवास न कर सके तो क्या करे?
उत्तर: आंशिक उपवास, पूजा-पाठ, ध्यान और दान करना भी फलदायक होता है।
प्रश्न 4: क्या इस दिन रात को सो सकते हैं?
उत्तर: रात्रि जागरण श्रेष्ठ होता है, परंतु यदि संभव न हो तो भजन और ध्यान अवश्य करें।
निष्कर्ष
वरूथिनी एकादशी केवल उपवास का पर्व नहीं है, यह एक जीवनशैली है जो संयम, भक्ति और परोपकार का पाठ पढ़ाती है। इस व्रत को श्रद्धा और नियमों के साथ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक बल मिलता है और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में यह व्रत आत्मनिरीक्षण और ईश्वर से जुड़ने का सुनहरा अवसर है।
वरूथिनी एकादशी 2025 के इस पावन अवसर पर भगवान विष्णु की कृपा आप पर और आपके परिवार पर बनी रहे।