इस पौराणिक कथा में हम जानेंगे कि मत्स्य अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को प्रलय से बचाकर सृष्टि का पुनर्निर्माण कैसे किया।
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प्रारंभिक कथा:
बहुत समय पहले, सतयुग के प्रारंभिक काल में, धरती पर राजा सत्यव्रत का शासन था। सत्यव्रत एक अत्यंत धर्मनिष्ठ, सत्यप्रिय और ईश्वर भक्त राजा थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय ध्यान, तपस्या और धर्म के पालन में व्यतीत किया।
एक दिन, जब राजा सत्यव्रत अपने राज्य में स्थित एक सरोवर में जल से आचमन कर रहे थे, तो उनके हाथ में एक छोटी सी मछली आई। राजा ने मछली को ध्यान से देखा और उसे पुनः जल में छोड़ दिया। लेकिन, मछली ने राजा से प्रार्थना की कि वह उसे बचा लें, क्योंकि बड़ी मछलियाँ उसे खा सकती हैं।
मछली का बढ़ना:
राजा सत्यव्रत ने मछली की करुण प्रार्थना सुनकर उसे अपने कमंडलु (जल पात्र) में रख लिया। राजा ने अपने दैनिक कार्यों में लौटने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने देखा कि मछली बड़ी हो रही है और कमंडलु में नहीं समा सकती।
राजा ने मछली को एक बड़े बर्तन में डाल दिया, लेकिन मछली और बड़ी हो गई। फिर राजा ने उसे एक तालाब में रखा, लेकिन वहां भी मछली बड़ी होती चली गई। इसके बाद राजा ने मछली को झील में, फिर नदी में, और अंत में समुद्र में छोड़ने का निर्णय लिया, लेकिन मछली हर बार तेजी से बढ़ती गई।
मछली का रहस्य:
राजा सत्यव्रत को इस असामान्य घटना पर गहरा आश्चर्य हुआ। उन्होंने सोचा कि यह कोई साधारण मछली नहीं हो सकती। तब उन्होंने मछली से पूछा, “हे मछली! तुम कौन हो? तुम्हारा यह रूप इतना असामान्य क्यों है?”
मछली ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “हे सत्यव्रत! मैं कोई साधारण मछली नहीं हूँ। मैं साक्षात भगवान विष्णु हूँ। मैंने तुम्हें इसलिए चुना है क्योंकि तुम एक धर्मपरायण और सत्यनिष्ठ राजा हो। जल्दी ही इस पृथ्वी पर प्रलय आने वाला है, जिसमें सब कुछ जल में डूब जाएगा। मैं तुम्हें इस प्रलय से सृष्टि को बचाने का कार्य सौंपता हूँ।”
प्रलय की चेतावनी:
भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को बताया कि कुछ ही दिनों में एक महान प्रलय आएगा, जिसमें सारी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। उन्होंने राजा को निर्देश दिया कि वह एक विशाल नाव बनाएँ। इस नाव में सात महान ऋषियों (सप्तऋषि), विभिन्न जीवों के बीज, वनस्पतियों के बीज, औषधियाँ और धर्मग्रंथों को रखें। जब प्रलय का समय आएगा, तब भगवान विष्णु मछली के रूप में प्रकट होकर नाव को सुरक्षित स्थान पर ले जाएंगे।
प्रलय का आगमन:
समय के साथ भगवान विष्णु की भविष्यवाणी सत्य हुई। पृथ्वी पर भारी वर्षा होने लगी और सारे धरती पर जल का साम्राज्य हो गया। सब कुछ जल में डूब गया, और जीवन का अंत होता दिखने लगा।
राजा सत्यव्रत ने भगवान विष्णु के निर्देशानुसार एक विशाल नाव तैयार की थी। उन्होंने सात ऋषियों, जीवों के बीज, वनस्पतियों, औषधियों और धर्मग्रंथों को नाव में रखा। जैसे ही प्रलय का जल चारों ओर फैल गया, राजा सत्यव्रत ने भगवान विष्णु का ध्यान किया।
मत्स्य अवतार का प्रकट होना:
भगवान विष्णु ने मछली के रूप में प्रकट होकर उस विशाल नाव को अपने सींगों से बाँध लिया। उन्होंने नाव को प्रलय के जल से सुरक्षित निकालकर हिमालय की ऊँचाइयों पर पहुंचाया, जहाँ प्रलय का जल नहीं पहुंच सकता था।
नाव के हिमालय की ऊँचाइयों पर पहुँचने के बाद भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत और सप्तऋषियों को सृष्टि के पुनर्निर्माण का कार्य सौंपा। उन्होंने सृष्टि के निर्माण के लिए आवश्यक सभी ज्ञान और संसाधन उन्हें प्रदान किए। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप का परित्याग कर अपने वास्तविक रूप में लौट आए।
सृष्टि का पुनर्निर्माण:
प्रलय समाप्त होने के बाद, राजा सत्यव्रत और सप्तऋषियों ने भगवान विष्णु के निर्देशानुसार सृष्टि का पुनर्निर्माण किया। उन्होंने जीवों, वनस्पतियों, और अन्य जीवन के बीजों को पुनः पृथ्वी पर स्थापित किया और एक नए युग का प्रारंभ किया।
कथा का महत्व:
मत्स्य अवतार की कथा हमें यह संदेश देती है कि जब भी संसार पर संकट आता है, भगवान विष्णु अवतार लेकर उसकी रक्षा करते हैं। यह अवतार जीवन की सुरक्षा, धर्म की पुनर्स्थापना, और सृष्टि के पुनर्निर्माण का प्रतीक है।
इस कथा में भगवान विष्णु ने यह भी बताया कि वे सृष्टि के रक्षक हैं और जब भी पृथ्वी पर अधर्म का विस्तार होता है, वे अवतार लेकर उसे समाप्त करते हैं। मत्स्य अवतार को भगवान विष्णु के दशावतारों में पहला अवतार माना जाता है, जो सृष्टि के आरंभ और प्रलय के संकट से मुक्ति का प्रतीक है।
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