संकष्टी चतुर्थी: यह व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है, और 2025 में सितंबर से दिसंबर तक आने वाली संकष्टी चतुर्थी पर भक्त सुबह से उपवास रखते हैं और चंद्रोदय के समय गणपति बप्पा की पूजा करके व्रत का समापन करते हैं।
संकष्टी चतुर्थी, जिसे संकटा हर चतुर्थी भी कहा जाता है, भगवान गणेश को समर्पित एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है और इसका पालन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक किया जाता है। मान्यता है कि श्रद्धा और नियमपूर्वक संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से जीवन के संकट दूर होते हैं, कार्य सिद्धि मिलती है और परिवार में सुख, शांति व समृद्धि आती है। व्रत का पारायण (समापन) चंद्रोदय के दर्शन और गणेश पूजन के बाद ही किया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
“संकष्टी” शब्द का शाब्दिक अर्थ है—संकट से मुक्ति। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, अर्थात् वे बाधाओं का नाश कर सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इस दिन किया गया व्रत साधक के मन को संयमित करता है और आध्यात्मिक दृढ़ता प्रदान करता है। प्रत्येक संकष्टी चतुर्थी का एक विशिष्ट नाम और उससे जुड़ी पौराणिक कथा (व्रत कथा) होती है, जिसे श्रद्धापूर्वक पढ़ना/सुनना शुभ माना गया है। इन कथाओं के माध्यम से भक्त धर्म, संयम, करुणा और कर्तव्यनिष्ठा जैसे आदर्शों का अभ्यास करना सीखते हैं।
संकष्टी चतुर्थी की विधि
व्रत वाले दिन प्रातःकाल स्नान के बाद संकल्प लिया जाता है। अधिकतर भक्त फल, कंद-मूल और दूध पर आधारित फलाहार लेते हैं; कुछ लोग निर्जल व्रत भी करते हैं। दिनभर मन, वाणी और कर्म से संयम रखा जाता है। सायंकाल चंद्रोदय से पहले गणपति की प्रतिमा/चित्र स्थापित कर पूजा की तैयारी की जाती है। दूर्वा घास, मोदक, फल, पुष्प और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं। गणेश जी के स्तोत्र—विशेषकर गणपति अथर्वशीर्ष—का पाठ किया जाता है, दीपक जलाए जाते हैं और आरती उतारी जाती है। अनेक भक्त इस दिन गणेश मंदिरों में दर्शन के लिए जाते हैं जहाँ सामूहिक भजन-कीर्तन और विशेष आरती का भी आयोजन होता है।
चंद्रमा उदित होने पर चंद्रदेव को आचमनीय जल से अर्घ्य दिया जाता है (अर्घ्य का पात्र अक्सर जल से भरा होता है) और फिर गणेश पूजन कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इसी क्षण व्रत का पारायण होता है, इसलिए चंद्रोदय की सटीक जानकारी रखना आवश्यक है ताकि पूजा-विधि समय पर संपन्न की जा सके।
चंद्रोदय का महत्व
संकष्टी चतुर्थी का व्रत तभी पूर्ण माना जाता है जब चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य अर्पित किया जाए। चंद्रोदय के समय पूरे परिवार का एकत्र होकर गणेश पूजन करना इस व्रत की विशेषता है—यह केवल व्यक्तिगत अनुशासन नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामुदायिक उत्सव भी है। सही समय पर चंद्रोदय देखने से व्रत की सिद्धि होती है और साधक के अंदर विश्वास, धैर्य और सकारात्मकता का संचार होता है।
आगामी संकष्टी चतुर्थी की तिथियाँ (2025)
तिथि | दिन | मास / पक्ष | चंद्रोदय समय |
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10 सितम्बर 2025 | बुधवार | भाद्रपद कृष्ण पक्ष 3 | 08:34 PM |
10 अक्टूबर 2025 | शुक्रवार | आश्विन कृष्ण पक्ष 4 | 08:53 PM |
08 नवम्बर 2025 | शनिवार | कार्तिक कृष्ण पक्ष 3–4 | 08:41 PM |
07 दिसम्बर 2025 | रविवार | मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष 3 | 08:34 PM |
यह व्रत क्यों करते हैं (आध्यात्मिक लाभ)
संकष्टी चतुर्थी का व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी माना गया है जो जीवन में रुकावटें, स्वास्थ्य-संबंधी चुनौतियाँ या लक्ष्य प्राप्ति में कठिनाइयाँ अनुभव कर रहे हों। नियमित रूप से इस व्रत का पालन करने से आत्म-अनुशासन मजबूत होता है, मन में ईश्वर के प्रति अटल श्रद्धा उत्पन्न होती है और कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य बना रहता है। अनेक श्रद्धालु यह मानते हैं कि विघ्नहर्ता गणेश की उपासना से पारिवारिक कलह शांत होते हैं, आर्थिक स्थिति में सुधार आता है और समग्र कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।
कथाएँ, परंपराएँ और सांस्कृतिक स्वरूप
हिंदू धर्मग्रंथों में संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी अनेक प्रेरक कथाएँ मिलती हैं। प्रत्येक माह की संकष्टी का अपना एक नाम और कथा होती है—इनमें गणेश जी की प्रज्ञा, शक्ति और करुणा का वर्णन है, जो बताती हैं कि सच्ची भक्ति और सही आचरण से बड़े से बड़ा संकट टल सकता है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु सहित देश के कई भागों में यह व्रत अत्यंत उत्साह से मनाया जाता है। मंदिरों में विशेष पूजन, सामूहिक आरती और भजन-कीर्तन होते हैं; घरों में बच्चे और बुज़ुर्ग सब मिलकर पूजा में भाग लेते हैं, जिससे पारिवारिक एकता और परंपरा का संचार होता है।
ऊपर दी गई तालिका में 2025 के आगामी महीनों—सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर—की संकष्टी चतुर्थी तिथियाँ और चंद्रोदय समय दिए गए हैं। इन तिथियों का ध्यान रखकर भक्त समयानुसार पूजा-विधि सम्पन्न कर सकते हैं। प्रत्येक संकष्टी साधक के लिए श्रीगणेश की कृपा का एक नया अवसर है—रूकावटें दूर करने, आस्था गहरी करने और जीवन में शांति व सफलता के पथ पर अग्रसर होने का।