kalashtami : कालाष्टमी क्या है? जानिए कब आती है, क्यों मनाई जाती है और इस दिन क्या करना चाहिए

भारत की प्राचीन धार्मिक परंपराओं में हर तिथि और पर्व का विशेष महत्व होता है। इन्हीं में एक अत्यंत पवित्र और रहस्यमयी व्रत है कालाष्टमी, जिसे भगवान शिव के रौद्र रूप श्री कालभैरव को समर्पित माना जाता है। यह दिन भैरव उपासकों के लिए अत्यंत श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक होता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कालाष्टमी क्या होती है, यह तिथि किस दिन पड़ती है, इसके पीछे क्या धार्मिक मान्यताएं हैं और इस दिन क्या विशेष कार्य करने चाहिए।

कालाष्टमी क्या है? | Kalashtami kya hai ?

कालाष्टमी हर मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। ‘काल’ का अर्थ समय और ‘अष्टमी’ का अर्थ आठवां दिन होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने अपने भयंकर रूप में अवतरित होकर अधर्म और अन्याय का अंत किया था। इसी कारण यह दिन ‘काल’ के अधिपति भैरव को समर्पित है।

शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान भैरव का रूप अत्यंत शक्तिशाली और उग्र है, जो अधर्मी और पापियों का संहार करता है। उन्हें न्याय का प्रतीक भी माना जाता है। विशेषकर मार्गशीर्ष मास की कालाष्टमी को कालभैरव जयंती के रूप में मनाया जाता है, जब भगवान भैरव का प्राकट्य हुआ था।

कालाष्टमी कब आती है?

kalashtami kab aati hai ? : कालाष्टमी हर महीने आती है, और इसकी तिथि का निर्धारण हिंदू पंचांग के अनुसार होता है। यह तिथि हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होती है, जो अमावस्या से आठ दिन पूर्व आती है। हर मास की कालाष्टमी धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है, लेकिन मार्गशीर्ष माह की कालाष्टमी को विशेष रूप से मनाया जाता है क्योंकि यह भैरव जयंती का दिन होता है।

इस दिन के बारे में मान्यता है कि इस तिथि को भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के पांचवे मस्तक को काटकर ब्रह्महत्या जैसे दोष से ग्रस्त हो गए थे, जिससे मुक्ति पाने हेतु उन्होंने भैरव रूप धारण किया। ऐसा भी कहा जाता है कि इस रूप में शिव ने ब्रह्मा जी के अहंकार का नाश किया और ब्रह्मांड में धर्म की पुनर्स्थापना की।

कालाष्टमी क्यों मनाई जाती है?

Kalashtami kyo manai jaati hai ? : कालाष्टमी मनाने के पीछे धार्मिक मान्यताओं का गहरा प्रभाव है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से जीवन में भय, संकट, रोग, शत्रु बाधा और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है। उनके उपासक मानते हैं कि कालभैरव की कृपा से व्यक्ति को न्याय, बल, साहस और सफलता प्राप्त होती है।

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच इस बात को लेकर विवाद हुआ कि श्रेष्ठ कौन है। तब भगवान शिव ने भैरव रूप धारण किया और ब्रह्मा जी के पांचवे मस्तक को काट दिया, जिससे उनका घमंड टूट गया। इस घटना की स्मृति में कालाष्टमी का पर्व श्रद्धा से मनाया जाता है।

यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखकर भैरव बाबा का स्मरण करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और वह आत्मिक एवं भौतिक बाधाओं से मुक्त होता है।

कालाष्टमी के दिन क्या करना चाहिए?

kalashtami ke din kya karna chahiye ? : कालाष्टमी के दिन कुछ विशेष नियमों और उपायों का पालन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह दिन साधना, भक्ति और तपस्या के लिए उपयुक्त माना गया है। इस दिन निम्नलिखित कार्य करना शुभ फल प्रदान करता है:

  1. व्रत और उपवास: बहुत से भक्त इस दिन निर्जल व्रत रखते हैं, जबकि कुछ लोग फलाहार करते हैं। उपवास रखने से मन और शरीर दोनों की शुद्धि मानी जाती है।
  2. कालभैरव की विशेष पूजा: पूजा में काले तिल, सरसों का तेल, काले वस्त्र, नारियल और धूप-दीप का प्रयोग किया जाता है। कालभैरव की मूर्ति पर काले फूल अर्पित किए जाते हैं और शंख-घंटी से आरती की जाती है।
  3. कुत्तों को भोजन कराना: ऐसा माना जाता है कि कुत्ता भगवान भैरव का वाहन है। अतः इस दिन काले कुत्तों को मीठी रोटी, दूध या अन्य खाद्य पदार्थ खिलाना पुण्यदायी माना गया है।
  4. भैरव मंदिर में दर्शन और सेवा: इस दिन श्रद्धालु भैरव मंदिर में जाकर विशेष पूजन करते हैं, और अगर संभव हो तो भैरव चालीसा या भैरव स्तोत्र का पाठ करते हैं।
  5. रात्रि जागरण और कथा श्रवण: कई स्थानों पर रात्रि जागरण का आयोजन होता है जहाँ भजन-कीर्तन और भगवान भैरव की कथाएं सुनाई जाती हैं। इससे मानसिक शांति और दिव्यता की अनुभूति होती है।
  6. मंत्र जाप: “ॐ कालभैरवाय नमः” या “ॐ भैरवाय नमः” जैसे मंत्रों का जाप 108 बार करना अत्यंत फलदायी माना गया है। यह साधक को आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।

कालाष्टमी से जुड़ी अन्य रोचक बातें:

  • भगवान भैरव को तंत्र साधना में विशेष स्थान प्राप्त है। कहा जाता है कि जो साधक कालाष्टमी के दिन उपासना करता है, उसे साधना में सफलता शीघ्र प्राप्त होती है।
  • यह दिन न्याय और धर्म की स्थापना का प्रतीक भी माना जाता है, इसलिए भैरव को ‘धर्म रक्षक’ कहा गया है।
  • कुछ परंपराओं में इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा भी की जाती है। ऐसा करना पितृ दोष और काल सर्प दोष से मुक्ति दिलाता है, ऐसा माना जाता है।

निष्कर्ष:

कालाष्टमी एक ऐसा दिन है जो ना केवल धार्मिक बल्कि आत्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व भगवान भैरव की भक्ति, साधना और संरक्षण का प्रतीक है। इसकी महिमा अनेक ग्रंथों और पुराणों में वर्णित है। यद्यपि इसकी सारी मान्यताएं धार्मिक और लोक विश्वासों पर आधारित हैं, फिर भी श्रद्धा और विश्वास से किए गए कार्य हमेशा जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं।

यदि आप भी अपने जीवन में शांति, साहस और सुरक्षा चाहते हैं, तो कालाष्टमी के दिन उपवास रखकर भगवान भैरव की पूजा जरूर करें। यह दिन भक्ति की शक्ति का अनुभव कराने वाला पर्व है।

Disclaimer: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और लोकविश्वासों पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी भी प्रकार की अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं की जानकारी जागरूकता के साथ साझा करना है।

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