नवरात्रि, शक्ति की आराधना का प्रमुख पर्व, नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों—नवदुर्गा—की उपासना का उत्सव है। इस पर्व के अंतिम चरण में कुमारी/कंजक पूजन का विशेष महत्त्व है, जिसमें पारंपरिक रूप से 9 कन्याओं (नवदुर्गा का प्रतीक) और 1 बालक (भैरव/लंगूर का प्रतीक) को आदरपूर्वक आमंत्रित कर उनके चरण पखारे जाते हैं, आरती की जाती है और भोजन/दक्षिणा प्रदान की जाती है। यह लेख 2025 के संदर्भ में कंजक पूजन के कारण, विधि, नियम, सावधानियाँ और शास्त्रीय/परंपरागत आधार को सरल भाषा में व्यवस्थित रूप से समझाता है।
कुमारी/कंजक पूजन क्या है?
कुमारी या कंजक पूजन वह विधि है जिसमें अविवाहित बालिकाओं (आमतौर पर 2 से 10–12 वर्ष के बीच) को देवी का जीवंत रूप मानकर पूजित किया जाता है। संख्या प्रायः नौ मानी जाती है जो नवदुर्गा का प्रतीक है—शैलपुत्री से सिद्धिदात्री तक। अनेक क्षेत्रों में इनके साथ एक बालक (लंगूर/भैरव) को भी बुलाया जाता है, जो भैरवनाथ की उपस्थिति का प्रतीक है।
परंपरागत उद्देश्य
- देवी-तत्त्व का साक्षात आदर: शास्त्रीय और लोक-मान्यता अनुसार बालिकाएँ शक्ति का रूप मानी जाती हैं।
- नवदुर्गा का स्मरण: 9 कन्याएँ नौ रूपों का बोध कराती हैं; पूजन से नवदुर्गा की अनुग्रह-प्राप्ति का भाव पुष्ट होता है।
- कृतज्ञता और दानशीलता: व्रत/अनुष्ठान के समापन पर अन्न-दान, वस्त्र-दान द्वारा समाज-सेवा व कृतज्ञता का अभ्यास।
- सामाजिक-सांस्कृतिक संवर्धन: बालिकाओं का सम्मान, आतिथ्य और सुरक्षा की भावना का सार्वजनिक संदेश।
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शास्त्रीय व परंपरागत आधार (संक्षिप्त चर्चा)
कुमारी-पूजन की धारणा शक्ति परंपरा में व्यापक है और देवी-महात्म्य, दुर्गा-सप्तशती (मार्कण्डेय पुराण का अंश) की पूजा-पद्धति, तथा देवी-भागवत, कलिका-पुराण, स्कन्द-पुराण आदि में वर्णित शक्ति-उपासना की व्यापक धारा से प्रेरित है। अलग-अलग क्षेत्रों/सम्प्रदायों में ग्रंथ-आधारित निर्देश भिन्न मिलते हैं, पर मूल भाव एक ही है—कन्या में देवी-तत्त्व का पूजन।
ध्यान दें: विभिन्न संप्रदायों में अध्याय/श्लोक-संदर्भों की भाषा और पाठ-परंपरा अलग हो सकती है; अतः स्थानीय पंचांग/आचार्य की सलाह अनुसार विधि अपनाना श्रेष्ठ है।
2025 संदर्भ: यह गाइड क्यों उपयोगी है
2025 में भी शारदीय नवरात्रि के दौरान अष्टमी/नवमी को कंजक पूजन की परंपरा निभाई जाएगी। क्षेत्रीय पंचांगों में अष्टमी/नवमी तिथियों व उनका काल-गणना में किंचित अंतर संभव है; इसलिए स्थानीय पंचांग या विश्वस्त कैलेंडर देखकर पूजन-तिथि व कुमारी-पूजन का शुभ समय निश्चित करना उचित है। यह गाइड आपको पूरी प्रक्रिया, आवश्यक सामग्री, नियम/सावधानियाँ और सामाजिक-आध्यात्मिक अर्थ समझाकर तैयारी आसान करेगा।
कंजक पूजन कब किया जाता है? (अष्टमी या नवमी)
- अनेक परंपराओं में दुर्गाष्टमी को कुमारी-पूजन किया जाता है।
- कई स्थानों पर यह महानवमी को भी किया जाता है—या दोनों दिनों में।
- यदि किसी कारणवश अष्टमी/नवमी में संभव न हो, तो नवरात्रि के अंतिम दिन या विजयादशमी पूर्वकाल में संक्षिप्त पूजन भी मान्य माना जाता है (स्थानीय परंपरा/आचार्य की राय लें)।
प्रतीक-भाव: 9 कन्या और 1 बालक क्यों?
9 कन्याएँ = नवदुर्गा का प्रतीक
- शैलपुत्री – दृढ़ता और आरम्भ का संकल्प
- ब्रह्मचारिणी – तप, अनुशासन, साधना
- चन्द्रघंटा – साहस, संरक्षण, शत्रु-निवारण
- कूष्माण्डा – सृजन-शक्ति, ऊर्जा, समृद्धि
- स्कन्दमाता – मातृत्व, पोषण, करुणा
- कात्यायनी – न्याय, शौर्य, दुष्ट-विनाश
- कालरात्रि – भय-नाश, नकारात्मकता का अंत
- महागौरी – शुद्धि, सौम्यता, कल्याण
- सिद्धिदात्री – सिद्धि, लाभ, पूर्णता
1 बालक (भैरव/लंगूर) का महत्त्व
भैरवनाथ को शक्ति-मंडल का क्षेत्रपाल माना जाता है। लोक-परंपरा में एक बालक को साथ बैठाकर भोजन कराना भैरव-तत्त्व का सम्मान है—अर्थात् रक्षा, धैर्य और संतुलन का आश्रय।
आवश्यक सामग्री (संकेत-सूची)
- पूजा स्थल की स्वच्छता, चौकी/आसन, माता-चौकी/कलश
- रोली/कुमकुम, हल्दी, अक्षत, मौली/कलाई धागा
- पुष्प/माला, दुर्वा/बेलपत्र (स्थानीय परंपरा अनुसार)
- दीप, धूप/अगरबत्ती, घी/तिल का तेल
- आरती थाल, घंटी
- भोग: प्रचलित रूप से पूरी, काला चना, सूजी/आटे का हलवा; अनेक स्थानों पर खीर/खिचड़ी/मिष्ठान्न भी
- दक्षिणा, फल, मेवा, उपहार (चूड़ी/क्लिप/रुमाल/पेन/किताबें/वस्त्र), छोटी चुनरी/दुपट्टा (इच्छानुसार)
- जल से भरा लोटा, पांव धोने हेतु ताम्र/स्टील का पात्र, तौलिया/रूमाल
कंजक पूजन की क्रमबद्ध विधि
1) तैयारी और संकल्प
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें; पूजा-स्थान को सजाएँ।
- कलश-स्थापन/माता-चौकी के समक्ष आसन स्थापित करें।
- परिवार/व्रती मिलकर संकल्प लें—“नवदुर्गा-पूजन के समापन पर कुमारी-पूजन करके देवी-तत्त्व का सम्मान करेंगे।”
2) कंजकों का सम्मानपूर्वक स्वागत
- आमंत्रित बच्चियाँ/बालक आते ही नमस्कार करें, आसन दें।
- चरण-प्रक्षालन (यदि सहज/उपयुक्त हो), अर्घ्य/आचमन दें।
- तिलक लगाएँ, मौली बाँधें, पुष्प अर्पित करें।
3) पूजन-सूत्र
- दीप प्रज्वलन कर देवी की आरती करें; नवदुर्गा-नामों का स्मरण/जप करें।
- कुमारी-रूप मानकर फल-फूल, अक्षत, कुमकुम अर्पित करें।
- संक्षिप्त कवच/स्तुति/सप्तशती के श्लोक-पाठ (जितना संभव/परिवार-परंपरा अनुसार)।
4) भोजन/भोग
- पारंपरिक रूप से पूरी-चना-हलवा प्रसाद रूप में परोसा जाता है।
- पहले कंजक/लंगूर को परोसें, तत्पश्चात परिवार/भक्तजन ग्रहण करें।
5) दक्षिणा/उपहार व आशीर्वाद ग्रहण
- कुमारी/बालक को दक्षिणा, फल/उपहार, चुनरी/वस्त्र सादर दें।
- आशीर्वाद लेकर विनम्रतापूर्वक विदा करें।
प्रमुख नियम व सावधानियाँ
- सम्मान सर्वोपरि: बच्चियों/बालक का सम्मान, सुरक्षा और सहजता सुनिश्चित करें।
- स्वच्छता व सत्त्विकता: भोजन सात्त्विक, स्वच्छ व प्रेम से बने; प्लास्टिक/अपशिष्ट से बचें।
- उम्र व संख्या: परंपरा अनुसार 2–10/12 वर्ष; संख्या आदर्शतः 9 + 1, पर उपलब्धता/परिस्थिति अनुसार 1, 3, 5 कुमारी भी मान्य मानी जाती हैं।
- जबरदस्ती नहीं: किसी बच्चे पर किसी प्रकार का दबाव/कैमरा-झिझक न बने।
- दक्षिणा में विवेक: नकद/उपहार उपयोगी हों; दिखावा/प्रतिस्पर्धा से बचें।
- स्थानीय परंपरा का आदर: क्षेत्र/सम्प्रदायानुसार मंत्र/विधि भिन्न हो सकती है; स्थानीय आचार्य/पंचांग की सलाह लें।
कुमारी-पूजन के आध्यात्मिक व सामाजिक लाभ
आध्यात्मिक दृष्टि
- देवी-कृपा का अनुभव: नवदुर्गा-स्मरण से साधना में स्थिरता व आत्म-बल।
- अहं-क्षय और करुणा: नन्ही बालिकाओं में ईश-तत्त्व देखकर विनय, सेवा-भाव का जागरण।
सामाजिक दृष्टि
- बालिकाओं का सम्मान: समानता, सुरक्षा और शिक्षा के संदेश का लोक-प्रसार।
- सामूहिकता: मिलकर पर्व मनाने से पड़ोस/समाज में सद्भाव मजबूत होता है।
सामान्य प्रश्न (FAQs)
Q1. कंजक पूजन अष्टमी को करें या नवमी को?
दोनों परंपराएँ प्रचलित हैं। अनेक स्थानों पर दुर्गाष्टमी को, कई जगह महानवमी को, और कुछ परिवारों में दोनों दिनों में भी कुमारी-पूजन होता है। अपने स्थानीय पंचांग/परंपरा अनुसार करें।
Q2. क्या 9 कन्याएँ न मिलें तो पूजन अधूरा माना जाएगा?
नहीं। परंपरा में 1, 3, 5 कन्याओं का पूजन भी मान्य माना गया है। भाव, शुचिता और सम्मान अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
Q3. 1 बालक (लंगूर/भैरव) क्यों?
भैरव-तत्त्व की प्रतीक-उपस्थिति के लिए। यह रक्षा, धैर्य व संतुलन का संदेश देता है।
Q4. भोजन में क्या परोसा जाए? क्या केवल पूरी-चना-हलवा अनिवार्य है?
यह लोक-परंपरा से लोकप्रिय संयोजन है। आपके क्षेत्र में खीर, खिचड़ी, पूआ/मालपुआ, फलाहार आदि भी प्रचलित हो सकते हैं। सात्त्विक, स्वच्छ व प्रेम से बना भोजन मुख्य है।
Q5. क्या कन्या-पूजन के साथ कन्याओं को भेंट/दक्षिणा देना आवश्यक है?
हाँ, पर दिखावे से बचें। उपयोगी उपहार (किताबें, अध्ययन-सामग्री, वस्त्र, फल) व विनम्र दक्षिणा दें।
Q6. मंत्र/पाठ अनिवार्य हैं?
अनिवार्य नहीं, पर देवी-स्तुति/आरती/नवदुर्गा-नाम-स्मरण करना श्रेष्ठ है। जो पाठ आप शुद्ध उच्चारण व भावना से कर सकें, वही करें।
2025 में कंजक पूजन की योजना: एक चेकलिस्ट
- स्थानीय पंचांग से अष्टमी/नवमी की पुष्टि करें।
- कंजक/लंगूर के लिए सम्मानपूर्वक निमंत्रण दें; परिवार की सहमति सुनिश्चित करें।
- सामग्री सूची (दीप, रोली, मौली, पुष्प, आरती थाल, प्रसाद आदि) तैयार रखें।
- सात्त्विक भोजन समय से बनवाएँ; स्वच्छता/हाइजीन सर्वोपरि।
- उपहार/दक्षिणा सरल व उपयोगी रखें; प्लास्टिक-रहित पैकिंग अपनाएँ।
- पूजन-स्थल स्वच्छ-सज्जित; सुरक्षित बैठने/हाथ-पैर धोने की व्यवस्था।
- आरती/स्तुति के संक्षिप्त श्लोक/भजन पूर्व-तैयार रखें।
पर्यावरण-स्नेही व समावेशी सुझाव
- एक-बार इस्तेमाल प्लास्टिक से बचें; स्टील/चीनी-मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करें।
- भोजन का संतुलित परिमाण रखें; शेष बचा अन्न दान करें।
- किसी एक वर्ग/समूह तक सीमित न रहें; समावेशी व सम्मानजनक दृष्टि अपनाएँ।
सार-संदेश
कंजक/कुमारी पूजन का सार देवी-तत्त्व का सम्मान, करुणा, सेवा और समाज में बालिकाओं के प्रति आदर का सार्वजनिक संकल्प है। 2025 में भी जब आप नवरात्रि का यह उत्सव मनाएँ, तो भावना, शुचिता और सरलता को प्रधानता दें। 9 कन्याएँ और 1 बालक केवल संख्या नहीं, बल्कि नवदुर्गा और भैरव के प्रतीक-तत्त्व हैं—जो हमें धैर्य, साहस, करुणा और समन्वय का पाठ पढ़ाते हैं। यही कंजक पूजन का आध्यात्मिक-सामाजिक सार है—और यही नवरात्रि की सच्ची सफलता।
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Last Updated on सितम्बर 19, 2025 by Hinditerminal.com