नवरात्रि की शुरुआत होते ही भक्त‑हृदय में एक जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से उठती है—“नवरात्रि में माँ दुर्गा के कितने रूपों की पूजा की जाती है?” यह सवाल केवल संख्या भर जान लेने का नहीं, बल्कि देवी‑तत्व के बहुरंगी स्वरूपों को समझने और उन्हें अपने जीवन‑पथ में उतारने का आमंत्रण है। भारतीय परम्परा में शारदीय और चैत्र—दोनों नवरात्रियाँ व्यापक रूप से मनाई जाती हैं, और दोनों में आराधना का केन्द्र नवदुर्गा ही होती हैं। इसी संदर्भ में जब हम पूछते हैं “नवरात्रि में माँ दुर्गा के कितने रूपों की पूजा की जाती है?” तो उत्तर है—नौ, और ये नौ स्वरूप केवल पूजा के औपचारिक पड़ाव नहीं, बल्कि साधना के नौ सूक्ष्म द्वार हैं, जिनसे होकर साधक स्थिरता, तप, साहस, सृजन‑ऊर्जा, करुणा, विजय, भय‑विनाश, शुद्धि और सिद्धि की ओर अगसर होता है।
देवी‑उपासना का यह नौ‑दिवसीय क्रम कलश स्थापना से आरम्भ होकर, प्रतिदिन एक विशिष्ट स्वरूप के ध्यान‑जप, आराधना और नैवेद्य से आगे बढ़ता है। परम्पराएँ क्षेत्र के अनुसार बदल सकती हैं—कहीं भोग के पदार्थों में विविधता दिखती है, कहीं रंगों का क्रम अलग होता है, कहीं दुर्गा सप्तशती के पाठ का विधान मुख्य हो जाता है; फिर भी मूल भाव एक ही है—आदि‑शक्ति का स्मरण और आचरण में सात्त्विकता, करुणा और संयम की प्रतिष्ठा। इसी बहुरंगी पृष्ठभूमि में यह लेख उन नौ स्वरूपों का संगत परिचय देता है जिनके बारे में लोग बार‑बार जानना चाहते हैं, और जिनके संदर्भ में प्रश्न “नवरात्रि में माँ दुर्गा के कितने रूपों की पूजा की जाती है?” बार‑बार पूँछा भी जाता है।
नीचे दी गई सारणी नवदुर्गा के नौ स्वरूपों का संक्षिप्त, उपयोगी और एक‑नज़र में समझ आने वाला चित्र प्रस्तुत करती है, ताकि पाठक आराधना के क्रम, प्रतीकों और साधना‑फोकस को सहजता से जोड़ सकें।
दिन | देवी | प्रमुख शक्ति | वाहन • आयुध/हाथ | बीज मंत्र (IAST / देवनागरी) | पारम्परिक भोग | साधना‑फोकस |
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1 | शैलपुत्री | स्थिरता, आरम्भ | नंदी • त्रिशूल, कमल | Om Devi Śailaputryai Namah / ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः | देसी घी | संकल्प, ग्राउंडिंग |
2 | ब्रह्मचारिणी | तप, अनुशासन | पदयात्रा • माला, कमण्डलु | Om Devi Brahmacāriṇyai Namah / ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः | शक्कर/शरबत, फल | संयम, तपस्या |
3 | चन्द्रघंटा | शौर्य, रक्षा | सिंह • दस भुजाएँ, अर्धचन्द्र | Om Devi Candrāghaṇṭāyai Namah / ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः | दूध/खीर | निडरता, न्याय |
4 | कूष्माण्डा | सृजन, प्राणशक्ति | सिंह • अष्टभुजा, अमृत‑पात्र | Om Devi Kūṣmāṇḍāyai Namah / ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः | मालपुआ/मिष्ठान्न | सकारात्मक ऊर्जा |
5 | स्कन्दमाता | मातृत्व, करुणा | सिंह • पुत्र स्कन्द सहित | Om Devi Skandamātāyai Namah / ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः | केले | परिवार‑कल्याण |
6 | कात्यायनी | विजय, बाधा‑नाश | सिंह • खड्ग, कमल | Om Devi Kātyāyanyai Namah / ॐ देवी कात्यायन्यै नमः | शहद | अवरोधों पर विजय |
7 | कालरात्रि | भय‑विनाश, शत्रु‑दमन | गधा • तलवार, त्रिशूल | Om Devi Kālarātryai Namah / ॐ देवी कालरात्र्यै नमः | गुड़/चना | आन्तरिक साहस |
8 | महागौरी | पवित्रता, शान्ति | वृषभ • त्रिशूल, डमरू | Om Devi Mahāgauryai Namah / ॐ देवी महागौर्यै नमः | नारियल/खीर | मन‑वचन‑कर्म की निर्मलता |
9 | सिद्धिदात्री | सिद्धि, परिपूर्ति | कमलासन • चक्र, गदा, कमल, शंख | Om Devi Siddhidātryai Namah / ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः | तिल | लक्ष्य‑सिद्धि, कृपा |
साधक जब इस सारणी को ध्यान में रखकर आगे बढ़ता है तो उसके लिए प्रत्येक दिन का स्वरूप केवल नाम, वाहन और आयुधों तक सीमित नहीं रहता; वह जीवन‑पद्धति में उतरने वाला अभ्यास बनता है। प्रथम दिन की शैलपुत्री साधक को जड़‑मूलों से जोड़ती हैं, जैसे कि कोई वृक्ष पहले अपनी जड़ों को पुष्ट करे तब ही ऊँचाई पा सके। दूसरे दिन की ब्रह्मचारिणी तप और अनुशासन का वह निखार हैं जो दूरगामी लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है; आज के विचलित समय में संयम का यह पाठ उतना ही प्रासंगिक है जितना किसी आश्रम की कुटिया में रहा होगा। तीसरे दिन की चन्द्रघंटा न्याय‑बोध और निर्भयता का आश्वासन देती हैं; उनके मस्तक का अर्धचन्द्र मानो वह घंटा है जो अन्याय और भय को दूर करने के लिए निरन्तर बजता रहे। चौथे दिन कूष्माण्डा सृष्टि‑शक्ति के रूप में साधक को प्राणवत्ता, स्वास्थ्य और उजास का वरदान देती हैं; उनका स्मरण भीतर के ‘उत्साह‑बीज’ को ऊर्जा देता है। पाँचवें दिन स्कन्दमाता के साथ मातृत्व, करुणा और कुल‑कल्याण का भाव जाग्रत होता है; घर‑परिवार की सुख‑शान्ति, संतानों के मंगल और स्नेह की ऊष्मा उनके चरणों में सहज ही निहित है। छठे दिन कात्यायनी धर्म‑युद्ध की विजय‑श्री हैं; वे बताती हैं कि बाहर के संकटों से जूझने से पहले भीतर के संदेहों, आलस्य और मोह को भी परास्त करना पड़ता है। सातवें दिन कालरात्रि तम और भय का संहार करती हैं; उनकी स्मृति से साधक की साँसें स्थिर होती हैं और वह अपने ही भीतर छिपे संशयों का सामना कर पाता है। आठवें दिन महागौरी शुद्धि और शान्ति का सौम्य आश्वासन हैं; वे मन, वचन और कर्म की निर्मलता के माध्यम से वास्तविक सुख का संकेत देती हैं। नवें दिन सिद्धिदात्री साधक को यह बोध कराती हैं कि जब लक्ष्य धर्ममय और साधना‑संगत हो तो सफलता केवल उपलब्धि नहीं, कृपा का अनुभव भी बन जाती है।
आराधना के इस क्रम में जप, ध्यान और नैवेद्य के साथ‑साथ आचरण की सात्त्विकता सबसे अधिक महत्त्व रखती है। कहीं‑कहीं उपवास का विधान कड़ा दिखता है, परन्तु स्वास्थ्य‑संगत सात्त्विक भोजन, समय पर विश्राम और संयमित वाणी ही साधना को दीर्घकालिक बनाते हैं। घर‑घर में भोग की परम्पराएँ अलग हो सकती हैं—किसी स्थान पर केले, कहीं मालपुआ, कहीं गुड़‑चना; पर यह विविधता किसी मतभेद का नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक बहुलता का उत्सव है। कलश स्थापना, जौ का बीजारोपण और प्रतिदिन दीप‑धूप का विनियोजन भी इसी सात्त्विक भाव का विस्तार है, जो साधक को भीतर‑बाहर दोनों स्तरों पर अनुशासित करता है। ऐसे में यदि कोई पाठक फिर पूछे—“नवरात्रि में माँ दुर्गा के कितने रूपों की पूजा की जाती है?”—तो वह संख्या से आगे बढ़कर इन नौ स्वरूपों को जीवन के नौ पाठों की तरह देखने लगेगा।
क्षेत्रीय पंचांग, चौघड़िया और मुहूर्त के अनुसार आराधना के समय बदल सकते हैं; यही कारण है कि इस लेख में किसी विशेष नगर‑समय का आग्रह नहीं किया गया है। उद्देश्य यह है कि भक्त अपने विश्वसनीय पंचांग से तिथियाँ मिलाएँ और मूल भाव—सात्त्विकता, करुणा, संयम, दान और शील—पर केन्द्रित रहें। देवी‑माहात्म्य, दुर्गा सप्तशती या अन्य स्तोत्रों के अंशों का पाठ साधक के मनोबल को स्थिर करता है और हर दिन के बीज मंत्र को सार्थक दिशा देता है। यह भी स्मरणीय है कि मंत्र‑उच्चारण की शुद्धि और वेदी‑विन्यास जैसे सूक्ष्म पक्षों में स्थानीय आचार्यों का मार्गदर्शन सदैव उपयोगी रहता है; इस सान्निध्य से उपासना अनुभव‑समृद्ध और प्रसादित बनती है।
अन्ततः नवरात्रि केवल अनुष्ठानों का संकलन नहीं, बल्कि समय‑सीमा में फैला हुआ एक आन्तरिक तीर्थ‑यात्रा है। नवदुर्गा के नौ स्वरूपों का अर्थ‑गान हमें यह सिखाता है कि स्थिरता के बिना ऊँचाई संभव नहीं, तप के बिना लक्ष्य टिकते नहीं, निर्भयता के बिना न्याय सम्भव नहीं, सृजन‑ऊर्जा के बिना जीवन खिलता नहीं, करुणा के बिना घर‑आँगन हरित नहीं, विजय के बिना धर्म प्रतिष्ठित नहीं, भय‑विनाश के बिना पथ खुलता नहीं, शुद्धि के बिना सुख टिकता नहीं और सिद्धि के बिना प्रयत्न पूर्णता नहीं पाता। इसलिए जब अगली बार मन में उठे—“नवरात्रि में माँ दुर्गा के कितने रूपों की पूजा की जाती है?”—तो उत्तर केवल “नौ” कहकर न छोड़ें; उन नौ दीपकों को अपने भीतर भी जलाएँ, ताकि आराधना बाहरी न रहे, वह आपके जीवन‑वृक्ष की जड़ों तक पहुँचकर उसे सचमुच हरा‑भरा कर दे।
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Last Updated on सितम्बर 22, 2025 by Hinditerminal.com