Diwali 2025:संपूर्ण जानकारी और महत्व

भारत का सबसे बड़ा, भव्य और रोशनी से जगमगाता पर्व दिवाली (Diwali 2025) पूरे भारतवर्ष ही नहीं, बल्कि विश्वभर में रहने वाले भारतीयों द्वारा बड़े उल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस त्योहार को दीपावली भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है दीपों की पंक्ति। दिवाली का पर्व अच्छाई पर बुराई और प्रकाश पर अंधकार की विजय का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व हर वर्ष नए उत्साह और नई उमंग के साथ आता है और परिवार, समाज तथा राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का कार्य करता है।

Diwali 2025 की तिथि

दिवाली 2025 की तारीख – 21 अक्टूबर 2025 (मंगलवार)
इस दिन कार्तिक अमावस्या होगी। परंपरा के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। कार्तिक मास की अमावस्या को सर्वाधिक पवित्र और शुभ माना गया है। इसी दिन समृद्धि और सुख-शांति की कामना करते हुए घर-घर में दीप प्रज्वलित किए जाते हैं।

दिवाली का महत्व

दिवाली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर माना जाता है। इस दिन को संपन्नता, नई ऊर्जा, उत्साह और परिवार के सामूहिक आनंद का प्रतीक समझा जाता है। ऐसा विश्वास है कि कार्तिक अमावस्या की रात को माता लक्ष्मी घर-घर आती हैं और जिनके घर स्वच्छ, उज्ज्वल और दीपों से सजे होते हैं, वहाँ स्थायी रूप से निवास करती हैं। लक्ष्मीजी धन, वैभव, समृद्धि और सुख-शांति प्रदान करती हैं। इसी प्रकार भगवान गणेश विघ्नहर्ता माने जाते हैं और प्रत्येक शुभ कार्य से पहले उनका आह्वान आवश्यक माना जाता है। दिवाली के दिन गणेश पूजन का विशेष महत्व है क्योंकि वे ज्ञान, बुद्धि और सफलता के दाता हैं। इस पर्व को परिवार और समाज में एकजुटता, भाईचारे और सहयोग की भावना को बढ़ाने वाला अवसर भी माना जाता है।

दिवाली से जुड़ी पौराणिक कथाएँ

  1. रामायण प्रसंग: श्रीरामचंद्रजी के 14 वर्षों का वनवास पूरा कर सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटने की खुशी में नगरवासियों ने दीप जलाए। तभी से दीपावली पर दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई और यह पर्व विजय और उत्सव का प्रतीक बन गया।
  2. नरकासुर वध: श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर का वध कर प्रजा को भयमुक्त करने की स्मृति में दीपावली मनाई जाती है। इसे नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली भी कहा जाता है।
  3. माता लक्ष्मी का प्राकट्य: समुद्र मंथन से लक्ष्मीजी के प्रकट होने के उपलक्ष्य में दिवाली पर उनका पूजन किया जाता है।
  4. राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक: मान्यता है कि इसी दिन राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था और तभी से विक्रम संवत की शुरुआत हुई।

दिवाली 2025: लक्ष्मी पूजन मुहूर्त

  • लक्ष्मी पूजन मुहूर्त: 21 अक्टूबर शाम 06:22 से 08:20 बजे तक
  • प्रदोष काल: शाम 05:56 से 08:20 बजे तक

इस समय पूजा करने से मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का आशीर्वाद विशेष रूप से प्राप्त होता है। प्रदोष काल को धन प्राप्ति और समृद्धि के लिए सर्वोत्तम समय माना गया है।

दिवाली पर की जाने वाली प्रमुख परंपराएँ

  1. घर की सफाई और सजावट – दिवाली से पहले घर की गहन सफाई और रंगाई-पुताई की जाती है। स्वच्छ और सुसज्जित घर लक्ष्मीजी को प्रिय होता है।
  2. दीपदान – अमावस्या की रात को दीपक जलाकर घर, मंदिर, आंगन और चौखट को सजाया जाता है। दीपक अंधकार को मिटाकर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।
  3. लक्ष्मी-गणेश पूजा – परिवार के सभी सदस्य मिलकर लक्ष्मी-गणेश की विधिवत पूजा करते हैं। इस पूजा में श्रीयंत्र, कलश और नारियल का विशेष महत्व है।
  4. पटाखे और मिठाइयाँ – लोग एक-दूसरे को मिठाइयाँ बांटते हैं, उपहार देते हैं और खुशियाँ साझा करते हैं। बच्चे आतिशबाजी का आनंद लेते हैं।
  5. नववर्ष का स्वागत – कई स्थानों पर दिवाली के अगले दिन से व्यापारी नए लेखे-जोखे की शुरुआत करते हैं और इसे नए साल का प्रारंभ मानते हैं।

दिवाली और पांच दिवसीय पर्व

  1. धनतेरस (18 अक्टूबर 2025) – धन और स्वास्थ्य की देवी धन्वंतरि और कुबेर की पूजा का दिन। इस दिन बर्तन, आभूषण और नई वस्तुएँ खरीदना शुभ माना जाता है।
  2. नरक चतुर्दशी / छोटी दिवाली (20 अक्टूबर 2025) – नरकासुर वध की स्मृति में दीये जलाए जाते हैं।
  3. लक्ष्मी पूजन / मुख्य दिवाली (21 अक्टूबर 2025) – कार्तिक अमावस्या की रात लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है।
  4. गोवर्धन पूजा/दीपावली पाडवा (22 अक्टूबर 2025) – भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर प्रजा की रक्षा करने की स्मृति। इस दिन अन्नकूट का आयोजन होता है।
  5. भाई दूज/भाऊबीज (23 अक्टूबर 2025) – भाई-बहन के प्रेम और रक्षा का प्रतीक पर्व। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर उनके दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। बदले में भाई बहनों को उपहार और आशीर्वाद देते हैं। यह पर्व रक्षा बंधन की तरह ही भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है और परिवार में प्रेम और एकता का संदेश फैलाता है।

दिवाली का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

दिवाली केवल हिंदुओं का पर्व नहीं है, बल्कि जैन, सिख और बौद्ध धर्म में भी इसका विशेष महत्व है:

  • जैन धर्म – भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में दिवाली मनाई जाती है।
  • सिख धर्म – इस दिन गुरु हरगोबिंद जी को कारागार से रिहा किया गया था।
  • बौद्ध धर्म – भारत के कुछ हिस्सों में इसे अशोक विजयदशमी के रूप में जोड़ा जाता है।

दिवाली को वैश्विक स्तर पर भी भारतीय संस्कृति की पहचान के रूप में देखा जाता है। विदेशों में बसे भारतीय समुदाय बड़े आयोजन करते हैं और भारतीय संस्कृति को दुनिया तक पहुंचाते हैं।


दिवाली 2025: पूजन विधि

  1. घर की सफाई और पवित्रीकरण करें।
  2. चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति स्थापित करें।
  3. कलश स्थापना कर उस पर स्वास्तिक बनाएं।
  4. गंगाजल से स्नान कराकर देवी-देवताओं को सजाएं।
  5. दीपक, धूप, पुष्प, अक्षत, मिठाइयाँ और नैवेद्य से पूजन करें।
  6. लक्ष्मी मंत्र और गणेश मंत्र का जाप करें।
  7. पूजा के बाद परिवारजन मिलकर आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें।

दिवाली 2025 और अर्थव्यवस्था

दिवाली का पर्व भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद खास है। इस समय बाजारों में अत्यधिक रौनक होती है। सोना-चांदी, आभूषण, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स, गाड़ियाँ, मिठाइयाँ और पटाखों की बिक्री अपने चरम पर होती है। कारोबारियों के लिए यह साल का सबसे बड़ा व्यापारिक अवसर होता है। ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म भी इस दौरान विशेष छूट और ऑफ़र देते हैं।

दिवाली और पर्यावरण

हालांकि दिवाली का त्योहार आनंद और उल्लास का प्रतीक है, लेकिन पटाखों के कारण पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ता है। ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसलिए हाल के वर्षों में लोग ईको-फ्रेंडली दिवाली मनाने पर जोर दे रहे हैं, जिसमें दीये जलाना, फूलों से सजावट करना, प्राकृतिक रंगों का उपयोग करना और पटाखों से परहेज शामिल है। बच्चों और युवाओं में भी जागरूकता बढ़ रही है और स्कूल-कॉलेज इस दिशा में अभियान चलाते हैं।

सारांश 

दिवाली 2025 केवल एक पर्व नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और आस्था का उज्ज्वल प्रतीक है। यह दिन हमें सिखाता है कि अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, एक दीपक का प्रकाश उसे दूर कर सकता है। परिवारजन, समाज और राष्ट्र इस पर्व के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ते हैं और यह त्योहार हमें आशा, विश्वास और एकता का संदेश देता है।

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