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धनतेरस 2024: शुभ समय और पूजा विधियां | Dhanteras 2024: Auspicious times and puja rituals

धनतेरस 2024

धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है, 29 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा, जिससे दीपावली के उत्सव की शुरुआत होती है। यह महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार दीपावली से दो दिन पहले मनाया जाता है।

धनतेरस हिन्दू त्योहारों में से एक महत्वपूर्ण है, जिसे पूरे देश में उत्साह और आनंद के साथ मनाया जाता है। इस शुभ दिन पर लोग भगवान कुबेर, भगवान धन्वंतरि, और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। घरों के बाहर दीपक और मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। हर साल धनतेरस दीपावली से दो दिन पहले मनाया जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को। इस बार धनत्रयोदशी 29 अक्टूबर 2024 को मनाई जा रही है। धनतेरस के दिन नए बर्तन, सोना, चांदी के आभूषण खरीदना भी शुभ माना जाता है।

धनतेरस 2024 शुभ मुहूर्त

उदयातिथि के अनुसार, धनतेरस 2024 को, दिन के 10:31 बजे से शुरू हो रहा है और इस तिथि का समापन 30 अक्टूबर 2024 को दोपहर 1:15 बजे पर होगा।

धनतेरस 2024 पूजन मुहूर्त

धनतेरस का पूजन मुहूर्त शाम 6:55 बजे से लेकर रात 8:22 बजे तक है, जिसकी अवधि 1 घंटा 27 मिनट है।

धनतेरस मुहूर्त

  • प्रदोष काल: 05:54 बजे से 08:22 बजे तक
  • वृषभ काल: 06:55 बजे से 08:57 बजे तक

धनतेरस पूजन विधि

धनतेरस की शाम को उत्तर की दिशा में भगवान कुबेर और भगवान धनवंतरि की स्थापना करनी चाहिए। दोनों के सामने एक-एक मुख का घी का दीपक जलाना चाहिए। पूजा के दौरान “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” का जाप करें। इसके बाद “धनवंतरि स्तोत्र” का पाठ करें। पूजा के बाद दीपावली पर कुबेर को धन स्थान पर और धनवंतरी को पूजा स्थान पर स्थापित करें।

धनतेरस पर दीपदान का महत्व

धनतेरस के दिन दीपदान किया जाता है। कहा जाता है कि धनतेरस के दिन जिस घर में यमराज के लिए दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती है। धनतेरस की शाम को मुख्य द्वार पर 13 और घर के अंदर 13 दीप जलाने चाहिए। इस दिन मुख्य दीपक रात को सोते समय जलाया जाता है, जो दक्षिण की दिशा में मुख करके जलाना चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा को यम की दिशा मानी जाती है। इस रीति से घर से सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।

धनतेरस पौराणिक कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे, जिनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरि कलश लेकर प्रकट हुए थे और इसके बाद से ही धनतेरस का आयोजन होने लगा। इस दिन बर्तन खरीदने की भी परंपरा है, जिससे सौभाग्य, वैभव और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर की विधि-विधान से पूजा की जाती है।

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