विजयादशमी 2025 का पर्व इस वर्ष गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। यह दिन धर्म की अधर्म पर विजय, मर्यादा की असुरता पर जीत और आत्म-संयम की असंयम पर जीत का प्रतीक है। देशभर में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन, शस्त्र-पूजन, शमी-पूजन, अपराजिता-पूजन, सीमा-वल्लंघन और विजय-तिलक जैसी आस्थापूर्ण परंपराएँ निभाई जाती हैं।
संक्षेप में: दशमी तिथि के दिन अपराह्न में विजय मुहूर्त और शाम को प्रादोषकाल में रावण-दहन का विधान माना गया है। शहर के अनुसार सूर्यास्त और मुहूर्त में कुछ मिनट का अंतर होता है—अतः स्थानीय पंचांग अवश्य देखें।
तिथि, वार और पंचांग-आधार
- तिथि: आश्विन शुक्ल दशमी (विजयादशमी/दशहरा)
- ग्रेगोरियन तिथि: 2 अक्टूबर 2025 (गुरुवार)
- विधान का आधार: दशमी तिथि का अपराह्न और विजय मुहूर्त पूजन के लिए श्रेष्ठ माने गए हैं। रावण दहन प्रायः सूर्यास्त के बाद प्रादोषकाल में किया जाता है।
- स्थान-निर्भरता: सूर्योदय-सूर्यास्त तथा नक्षत्र-करण के कारण मुहूर्त शहरानुसार कुछ मिनट बदल सकते हैं; अतः अपने नगर-विशेष का पंचांग देखें।
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क्विक फैक्ट्स (सामान्य मार्गदर्शन)
- विजय मुहूर्त: दोपहर के बाद लगभग 45–55 मिनट का छोटा शुभ विंडो माना जाता है।
- अपराह्न पूजा समय: लगभग 1:15 PM से 3:45 PM के बीच का खंड परंपरागत रूप से श्रेष्ठ माना जाता है (शहरानुसार परिवर्तन)।
- रावण दहन का सामान्य समय: सूर्यास्त के बाद प्रादोषकाल—आमतौर पर शाम 6:00–8:00 PM के बीच नगर-परंपरा के अनुसार।
नोट: कुछ नगरों में रावण-दहन नागरिक सुरक्षा और ट्रैफिक प्रबंधन के कारण नगर-प्रशासन द्वारा घोषित समय पर ही होता है; धार्मिक दृष्टि से प्रादोषकाल को प्राथमिक माना जाता है।
रावण दहन समय: सिद्धांत व व्यवहार
1) शास्त्रीय सिद्धांत
- प्रादोषकाल प्रधान: रामायण-परंपरा के अनुसार श्रीराम द्वारा रावण-वध सन्ध्यावेला/प्रादोषकाल में माना गया है; इसलिए रावण-दहन सूर्यास्त के बाद करना शुभ माना जाता है।
- दशमी तिथि का पालन: दहन वही दिन चुना जाए जिसमें स्थानीय सूर्योदय के साथ दशमी प्रभावी हो और शाम तक दशमी बनी रहे। यदि किसी क्षेत्र में दशमी रात्रि में समाप्त हो रही हो तो दहन को उसी रात्रि के प्रादोषकाल में करना अधिक उपयुक्त माना जाता है।
- भद्रा से परहेज: कई परंपराएँ मानती हैं कि दहन के समय भद्रा (विष्टि करण) से बचा जाए; यदि भद्रा का अंश हो तो उसके भद्रा-पूँछ (टेल) में कार्य करना अपेक्षाकृत उचित माना गया है।
2) व्यवहारिक दिशा-निर्देश
- नगर-आधारित समय: सार्वजनिक दहन समारोह प्रशासनिक अनुमति, अग्नि-सुरक्षा, पुलिस-ट्रैफिक आदि कारणों से निश्चित घड़ी पर होते हैं; धार्मिक विंडो का पालन करते हुए कार्यक्रम का समय तय किया जाता है।
- स्थानीय सूर्यास्त देखें: अपने शहर का सूर्यास्त समय देखें; उसके बाद 1–2 घंटे का विंडो सामान्यतः दहन हेतु चुना जाता है।
- परिवार/मोहल्ला-स्तर दहन: यदि छोटे स्तर पर प्रतीकात्मक दहन/दीपदान कर रहे हैं तो प्रादोषकाल को प्राथमिकता दें और सुरक्षा नियमों का पालन करें।
विजयादशमी पर प्रमुख पूजन-पद्धतियाँ
1) शस्त्र-पूजन (आयुध-पूजा)
- अर्थ: धर्म-रक्षा और कर्तव्य-निष्ठा का संकल्प।
- विधि: शस्त्र/औजार/उपकरणों की शुद्धि, धूप-दीप-नैवेद्य, अक्षत-चन्दन, पुष्प, रोली से तिलक। व्यवसायिक उपकरण (मशीनरी, लैपटॉप, वाहन आदि) का भी पूजन।
2) शमी-पत्र पूजन
- अर्थ: पाण्डवों की कथा से जुड़े शमी-वृक्ष को विजय का प्रतीक माना गया; महाराष्ट्र-कर्नाटक में सोना/सोने की पत्ती (शमी पत्र) का आदान-प्रदान शुभ समझा जाता है।
- विधि: शमी-वृक्ष की पूजा, जल-अभिषेक, दीप-धूप, मंत्र-जप, परिवारजनों को शमीपत्र देना।
3) अपराजिता-पूजन
- अर्थ: देवी अपराजिता (दुर्गा का रूप) की आराधना—विजय और सुरक्षा की प्रार्थना।
- विधि: सफेद/नीले पुष्प, दूर्वा, अक्षत, नैवेद्य; लक्ष्मीनारायण/देवी-पूजन के साथ संकल्प।
4) सीमा-वल्लंघन (सीमे का अतिक्रमण)
- अर्थ: आत्म-सीमाओं को पार कर उत्तम लक्ष्य की ओर बढ़ने का संकल्प।
- विधि: परिवार/समाज के साथ किसी प्रतीकात्मक सीमा तक यात्रा, शमी-पत्र का आदान-प्रदान, विजय-तिलक।
5) विद्यारंभ एवं विजय-तिलक
- अर्थ: बच्चों का अक्षरारंभ/संगीत-अध्ययन आरंभ करना शुभ; व्यवसाय में नए खातों/लेजर की शुरुआत भी शुभ।
- विधि: गणपति/सरस्वती-पूजन, अक्षर-लेखन, गुरु-आशीर्वाद; घर-परिवार में विजय-तिलक और शस्त्र/उपकरण पर रोली-अक्षत।
क्षेत्रवार परंपराएँ: भारत-भर का सांस्कृतिक परिदृश्य
उत्तर भारत
- रामलीला और रावण-दहन: मैदानों में रामलीला का समापन—तीन पुतलों का दहन, आतिशबाजी के साथ विजय का उत्सव।
- विजय-तिलक/घोष-यात्राएँ: राजपूताना/पश्चिम उत्तर प्रदेश आदि में विजय-तिलक और सामाजिक शोभायात्राएँ।
पूर्वी भारत (बंगाल, ओडिशा, असम)
- बिजया दशमी: दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन, बड़ों से आशीर्वाद, सिन्दूर खेला (परंपरागत क्षेत्रों में), एक-दूसरे को “शुभो बिजोया” कहना।
पश्चिम भारत (महाराष्ट्र, गुजरात)
- शमी-पत्र/सोना-दर्शन: सोना बाँटना, सीमा-वल्लंघन, शस्त्र-पूजन; कुछ क्षेत्रों में पारंपरिक अखाड़े/दंगल।
दक्षिण भारत (कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र-तेलंगाना, केरल)
- अयुध-पूजा और विजयदशमी: मैसूर दशहरा की भव्य शोभायात्रा, शस्त्र और औजार-पूजन, शिक्षा/कलाओं का आरंभ (विद्यारंभ)।
मान्यताएँ और सांस्कृतिक-सामाजिक अर्थ
- धर्म बनाम अधर्म: रावण का दहन अहंकार, अनाचार और अन्याय के दहन का प्रतीक है।
- आत्म-विजय का संदेश: बाहरी असुरताओं के साथ भीतर की दुर्बलताओं—क्रोध, लोभ, मद, मोह, मात्सर्य—को जीतने का संकल्प।
- समाज-एकता: सामूहिक उत्सव, दान, सेवा-कार्यों और उत्सव-आधारित अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ीकरण।
- पर्यावरण-जागरूकता: कागज/बाँस/जूट जैसे पर्यावरण-अनुकूल सामग्री से पुतले; रसायन/प्लास्टिक/फाइबर से बचाव।
घर में क्या करें: चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका
A) पूजा-पूर्व तैयारी
- घर/पूजा-स्थल की भौतिक शुद्धि, गंगाजल/सुगंधित जल से छिड़काव।
- पूजन सामग्री: चावल (अक्षत), रोली/कुमकुम, हल्दी, पुष्प, नैवेद्य (फल/मिष्ठान), दीप, धूप, अगर/कपूर, शमी-पत्र/अपराजिता (यदि उपलब्ध), कलश/जल।
B) पूजन-विधि (संक्षेप)
- श्रीगणेश, गृह-देवता और कुलदेवी/देवता का ध्यान।
- दुर्गा/अपराजिता का आवाहन—ध्यान/अथवा दुर्गा कवच/अथर्वशीर्ष का पाठ।
- शस्त्र/उपकरण-पूजन: रोली-अक्षत, पुष्प, दीप-धूप; व्यवसायिक कागज़/लेजर पर तिलक।
- शमी-पत्र समर्पण और परिवारजनों को आदान-प्रदान।
- विजय संकल्प: सत्य, संयम, सेवा, परिश्रम और धर्म-पालन के लिए प्रतिज्ञा।
C) दहन/दीपोत्सर्जन (यदि प्रतीकात्मक)
- सूर्यास्त के बाद प्रादोषकाल में संक्षिप्त मंत्र-जप के साथ मिट्टी के दीये/हवन-कुंड में प्रतीकात्मक समिधा/गुड़-तिल अर्पण।
- खुले मैदान में पुतला-दहन केवल प्रशासनिक अनुमति/सुरक्षा मानकों के साथ।
सुरक्षित और जिम्मेदार रावण-दहन के लिए चेकलिस्ट
- अधिकृत/अनुमोदित मैदान और फायर सेफ्टी व्यवस्था सुनिश्चित करें।
- सूखी घास/ज्वलनशील पदार्थ दूर रखें; हवा की दिशा देखें; बच्चों के लिए सुरक्षित दूरी बनाएं।
- आतिशबाजी मानक के अनुसार और अधिकृत स्थान/समय पर ही करें।
- प्लास्टिक/फोम/फाइबर से बने पुतलों से बचें; बायोडिग्रेडेबल सामग्री अपनाएँ।
- कार्यक्रम के बाद स्वच्छता अभियान—राख/कचरा पृथक्करण और सुरक्षित निस्तारण।
सामान्य शंकाएँ (FAQ)
प्रश्न 1: पूजा का “विजय मुहूर्त” दोपहर में क्यों और रावण-दहन शाम को क्यों?
उत्तर: शास्त्रीय रूप से विजय संकल्प/पूजन अपराह्न-विजय मुहूर्त में श्रेष्ठ माना गया है; जबकि रावण-वध की परंपरा प्रादोषकाल (सूर्यास्त के बाद) से जुड़ी है, इसलिए दहन शाम को किया जाता है।
प्रश्न 2: क्या सभी शहरों में दहन का एक ही समय होता है?
उत्तर: नहीं। सूर्यास्त और पंचांग-गणना के कारण समय में अंतर होता है। नगर-प्रशासन/आयोजक धार्मिक विंडो के भीतर सुरक्षा-उपयुक्त समय घोषित करते हैं।
प्रश्न 3: क्या भद्रा देखते हैं?
उत्तर: अनेक परंपराएँ भद्रा-वर्ज्य मानती हैं; यदि भद्रा हो तो भद्रा-टेल या भद्रा-मुक्त विंडो वरीय है। स्थानीय पंचांग/आचार्य से परामर्श करना उचित है।
प्रश्न 4: क्या यह सार्वजनिक अवकाश है?
उत्तर: अधिकांश राज्यों में दशहरा/विजयादशमी सार्वजनिक अवकाश के रूप में सूचीबद्ध होता है; परन्तु राज्यवार सूची देखें।
विजयादशमी 2025 केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक मूल्य-प्रस्ताव है—सत्य, साहस, संयम और करुणा का। इस दिन की पूजा-पद्धतियाँ और रावण-दहन, हमें बाहरी बुराइयों के साथ-साथ आंतरिक दोषों को त्यागने का संदेश देते हैं। स्थानीय पंचांग के अनुसार मुहूर्त का सम्मान, सुरक्षा-मानकों का पालन और पर्यावरण-संरक्षण के साथ मनाया गया उत्सव ही हमारी सच्ची विजय है।
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