शरद ऋतु की पूर्णिमा को भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है—कोजागिरी-पूर्णिमा, शरद-पूर्णिमा, Kojagara/Kaumudi Vrat, ब्रज में रास पूर्णिमा, तथा गुजरात में शरद पूनम। परंपरा है कि इस रात चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर प्रकट होता है और उसकी शीतल किरणें औषधीय/पौष्टिक गुणों से युक्त मानी जाती हैं। महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र में यह पर्व ‘को जागर्ति?—कौन जाग रहा है?’ के आशय से जुड़ा है—अर्थात जो जागकर भगवती महालक्ष्मी का ध्यान करता/करती है, उस पर समृद्धि की कृपा होती है।
यह लेख 2025 के लिए तिथि, व्रत-पूजा विधि, चंद्रदर्शन, खीर-विधान और क्षेत्रीय परंपराओं का व्यावहारिक, प्रामाणिक और SEO-अनुकूल मार्गदर्शन देता है, ताकि पाठक बिना भ्रम के संपूर्ण तैयारी कर सकें।
Table of Contents
2025 में कोजागिरी-पूर्णिमा कब है? (तिथि व प्रमुख समय) | kojagra kab hai 2025
तारीख: सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 (भारत)
पूर्णिमा तिथि (भारत के प्रमुख पंचांगों के अनुसार):
- प्रारंभ: 06 अक्टूबर 2025, 12:23 PM
- समाप्त: 07 अक्टूबर 2025, 09:16 AM
चंद्रदर्शन/चंद्रोदयन (उदाहरण):
- नई दिल्ली: लगभग 05:27 PM (स्थानीय समय)
- अन्य शहरों में चंद्रोदय मिनटों के अंतर से भिन्न हो सकता है; अपने शहर-विशिष्ट समय के लिए स्थानीय पंचांग देखें।
निशीथ काल (Lakshmi Puja के लिए श्रेष्ठ मध्यरात्रि विंडो) – यह स्थानानुसार थोड़ा बदलता है; उदाहरण के तौर पर:
- पुणे: लगभग 11:58 PM – 12:47 AM (7 अक्टूबर)
- मुंबई: लगभग 12:02 AM – 12:51 AM (7 अक्टूबर)
टिप: व्रत/पूजा के समय हमेशा अपने शहर का पंचांग देखें, क्योंकि सूर्योदय, चंद्रोदय और निशीथ-काल कुछ मिनटों के अंतर से बदलते हैं।
Kojagiri का अर्थ, दार्शनिक संदर्भ और क्षेत्रीय परंपराएँ
kojagiri purnima in hindi: ‘Kojagiri’ शब्द का संबंध लोक-प्रश्न ‘को जागर्ति?’ से जोड़ा जाता है—अर्थात जो ईश्वर-ध्यान में जागरण करता है, उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण हों। बंगाल व पूर्वी भारत में यह रात लक्ष्मी पूजन और कोजगरा व्रत के लिए विख्यात है; ब्रज में कृष्ण-लीला की स्मृति में इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है; गुजरात में गरबा/डांडिया और खीर-प्रसाद की परंपराएँ प्रमुख हैं; महाराष्ट्र-कर्नाटक-गोवा में इसे ‘कोजागिरी’ कहा जाता है जहाँ परिवार सहित खुले आकाश के नीचे चंद्रमा की रोशनी में बैठकर खीर/दूध का सेवन शुभ माना जाता है।
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व्रत-पूजा का संकल्प: कौन और कैसे रखें?
Kojagiri Purnima का व्रत स्त्री-पुरुष दोनों रख सकते हैं। नवविवाहिताएँ प्रायः पूर्णिमा-व्रत का संकल्प इसी दिन से आरंभ करती हैं। सामान्य नियम अनुसार व्रत सूर्योदय से चंद्रदर्शन तक रखा जाता है; कुछ साधक फलाहार/दूध लेते हैं, कुछ निर्जला भी करते हैं—यह व्यक्तिगत स्वास्थ्य/संस्कार और कुल-परंपरा पर निर्भर करता है।
पूजा से पहले की तैयारी (सामग्री व स्थान)
पूजा शुद्ध, हवादार और चंद्र-दर्शन योग्य स्थान पर करें। सामग्री में—लक्ष्मी-गणेश चित्र/प्रतिमा, कलश, स्वच्छ जल, आम/पान/आम्र-पल्लव या उपलब्ध पत्ते, रोली-कुमकुम, अक्षत, पुष्प-माला, दीप/घी, अगरबत्ती/धूप, नैवेद्य (खीर/माखन-मिश्री/खीर-पोहा), तुलसी पत्ते, कौड़ियाँ/चावल के दाने, सुपारी, लाल कपड़ा, शंख/घंटा, चंद्र-अर्घ्य के लिए कच्चा दूध, जल, शक्कर/गुड़, सफेद पुष्प आदि रखें।
Kojagiri Vrat: क्रमवार पूजा-विधि (विस्तृत)
(1) संकल्प व स्थान-शुद्धि: संध्या/प्रदोष के समय स्नान कर व्रत-संकल्प लें। पूजा-स्थान पर गंगा जल/स्वच्छ जल छिड़कें, दीप प्रज्वलित करें।
(2) देव-आह्वान: गणेश-पूजन, फिर महालक्ष्मी का आवाहन। श्री-सूक्त/लक्ष्मी अष्टक/कनकधारा स्तोत्र में से सुविधानुसार पाठ करें।
(3) लक्ष्मी-पूजन: रोली-अक्षत से तिलक, पुष्पार्चन, धूप-दीप, नैवेद्य। घर की तिजोरी/लेखा-बही/व्यापार के औज़ार प्रतीक रूप में रखें और उन पर भी अक्षत/पुष्प चढ़ाएँ—यह समृद्धि-संकेत है।
(4) चंद्र-पूजन व अर्घ्य: चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें। अर्घ्य-पात्र में जल, दूध, शक्कर/मिश्री और सफेद पुष्प मिलाएँ। चंद्र मंत्र (जैसे—ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः अथवा ॐ चन्द्राय नमः) से जप करें। कुछ परंपराओं में 108 बार जप-संख्या भी ली जाती है—अपनी क्षमता अनुसार रखें।
(5) खीर-विधान (चंद्र-किरण स्नान): चंद्रोदय के थोड़ी देर बाद खीर (या दूध) को चाँदी/मिट्टी/काँच के चौड़े बर्तन में खुले आकाश के नीचे रखें—ऊपर से मलमल/फूड-ग्रेड नेट से ढक दें ताकि ओस/धूल/कीट न पड़े, पर चंद्र-किरणें आती रहें। यह बर्तन रात भर बाहर रखने का विधान है। प्रातः इसे परिवार में प्रसाद की तरह वितरित करें।
(6) जागरण/भजन-कीर्तन: जहाँ संभव हो, लक्ष्मी-नारायण का कीर्तन, विष्णु-सहस्रनाम/श्री-सूक्त का पाठ करें। यह ‘को-जागर’ परंपरा का मर्म है—सत्संग में जागरण।
(7) पारण (व्रत-समापन): बहुतेरे घरों में चंद्र-अर्घ्य के बाद ही फलाहार/खीर का सेवन कर व्रत पारण कर लेते हैं; कुछ परंपराएँ सुबह पारण मानती हैं। अपने गुरु/कुल-विधान के अनुसार चलें।
चंद्रदर्शन: सही समय व व्यावहारिक सावधानियाँ
क्यों महत्वपूर्ण? पूर्णिमा-व्रत का पारण प्रायः चंद्रोदय/चंद्रदर्शन के बाद माना गया है। चंद्रमा को जल/दूध-अर्घ्य देकर आरोग्य, शीतलता और मानसिक संतुलन की प्रार्थना की जाती है।
समय-निर्धारण कैसे करें?
- चंद्रोदय शहर के अनुसार बदलता है; 2025 में भारत में यह सामान्यतः शाम 5:30 PM के आसपास रहेगा, पर उत्तर/पश्चिम/पूर्व/दक्षिण के शहरों में कुछ मिनटों का अंतर रहेगा।
- उदाहरण के लिए नई दिल्ली में 6 अक्टूबर को चंद्रोदय लगभग 05:27 PM माना गया है।
- निशीथ काल (Lakshmi-Puja के लिए) मध्यरात्रि के आसपास आता है; उदाहरण के तौर पर पुणे में लगभग 11:58 PM – 12:47 AM, और मुंबई में लगभग 12:02 AM – 12:51 AM (7 अक्टूबर) का विंडो माना गया है।
व्यावहारिक सावधानियाँ:
- खीर/दूध बाहर रखते समय ढकाव (फाइन नेट/मलमल) रखें; प्लास्टिक ढक्कन से न ढकें, ताकि चंद्र-प्रकाश पहुँचे और स्वच्छता भी बनी रहे।
- खुले में रखने के लिए ऊँचे, साफ़, पालतू/पक्षियों से सुरक्षित स्थान चुनें।
- डायरेक्ट रेफ्रिजरेशन न करें; प्रातः सेवन से पहले सुगंध/स्वाद/दिखावट जाँचें।
- रोगी/मधुमेह/एलर्जी वाले श्रद्धालु अपने चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही सेवन करें; वैकल्पिक रूप से सामूहिक प्रसाद में थोड़ी मात्रा लें।
आयुर्वेदिक/वैज्ञानिक दृष्टि: ‘चंद्र-किरण स्नान’ की परंपरा का संकेत
लोक-मान्यता में शरद पूर्णिमा की रात ओस/नमी और चंद्र-किरणों से खाद्य-पदार्थों को शीतल, सुपाच्य माना गया है। आयुर्वेद में शरद काल को पित्त-शमन हेतु उपयुक्त माना जाता है; इसलिए दूध/खीर में चंद्र-प्रभाव के प्रतीकात्मक सेवन की परंपरा है। आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर देखें तो यह सांस्कृतिक-आध्यात्मिक अभ्यास है—खुले में रखे खाद्य की स्वच्छता/सुरक्षा का विशेष ध्यान अनिवार्य है।
क्षेत्रानुसार विविधता: महाराष्ट्र, बंगाल, ब्रज और गुजरात
- महाराष्ट्र/कोंकण: परिवार और मित्र मिलकर टेरिस/आँगन में चंद्रमा की रोशनी में बैठते हैं; खीर/दूध-शरबत प्रसाद रूप में बाँटा जाता है; कई जगह सांस्कृतिक संध्या (गीत/वाद्य) भी होती है।
- बंगाल/ओडिशा/असम: इस रात लक्ष्मी पूजन का विशेष विधान—घरों/दुकानों में दीपज्योति और लक्ष्मी-आराधना।
- ब्रज/मथुरा-वृंदावन: रास-लीला की स्मृति में भजन-कीर्तन, मंदिरों में विशेष कार्यक्रम।
- गुजरात: गरबा/डांडिया के साथ शरद पूनम की महिमा; दूध/खीर का प्रसाद।
‘क्या करें’ और ‘क्या न करें’: पारंपरिक संकेत
क्या करें:
- व्रत-संकल्प के साथ सत्संग/पारायण जोड़ें—श्री सूक्त, लक्ष्मी अष्टक, विष्णु सहस्रनाम का पाठ।
- घर/कार्यस्थल की लेखा-बही/औज़ार/तिजोरी पर अक्षत/कुमकुम अर्पित कर समृद्धि-संकेत लें।
- दान/अन्नदान—जहाँ संभव हो, इस रात ज़रूरतमंदों को भोजन/कपड़े दें।
क्या न करें:
- चंद्र-पूजन से पहले नमकीन/भोजन न लें (यदि आपके कुल-विधान में ऐसा नियम हो)।
- खीर/दूध खुले बर्तन में बिना ढके न रखें; स्वच्छता सर्वोपरि।
- केवल रूढ़ि के नाम पर शरीर को अस्वस्थ करने वाले नियम न अपनाएँ—स्वास्थ्य प्रथम।
व्रत-नियम, पारण व अगली सुबह की विधि
- पारण कब? सामान्यतः चंद्र-अर्घ्य के बाद फलाहार/खीर लेकर पारण किया जाता है; कुछ परंपराएँ सुबह पारण का निर्देश देती हैं।
- अगली सुबह: खीर/प्रसाद का वितरण, गृह-लक्ष्मी/वर-वृद्धों का आशीर्वाद, तथा दैनिक दान/जप का संकल्प।
- अर्थ-लाभ/समृद्धि के संकेत प्रतीकात्मक हैं—नियमित परिश्रम, सत्व-आधारित जीवनशैली और धर्माचार ही स्थायी समृद्धि का आधार हैं।
एक नज़र में: 2025 के प्रमुख समय (भारत)
घटक | समय/तारीख |
---|---|
Kojagiri Purnima (भारत) | सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 |
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ | 06 अक्टूबर, 12:23 PM |
पूर्णिमा तिथि समाप्त | 07 अक्टूबर, 09:16 AM |
चंद्रोदय (उदाहरण—नई दिल्ली) | लगभग 05:27 PM |
निशीथ काल (उदाहरण—पुणे) | लगभग 11:58 PM – 12:47 AM (7 अक्टूबर) |
निशीथ काल (उदाहरण—मुंबई) | लगभग 12:02 AM – 12:51 AM (7 अक्टूबर) |
नोट: ऊपर दिए गए उदाहरण स्थान-विशिष्ट हैं। अपने शहर का सटीक समय स्थानीय पंचांग/विश्वसनीय कैलेंडर पर अवश्य जाँचें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्र. क्या Kojagiri Purnima और Sharad Purnima एक ही हैं?
हाँ, भारत के अनेक भागों में एक ही पूर्णिमा को इन नामों से जाना जाता है; क्षेत्रीय परंपराएँ भिन्न हो सकती हैं।
प्र. खीर को बाहर कितनी देर रखना चाहिए?
परंपरा अनुसार रात भर (चंद्रोदय से अगले प्रातः) रखा जाता है। व्यावहारिक रूप से सुरक्षा/स्वच्छता देखते हुए ढका रखें और सुबह तुरंत प्रसाद रूप में वितरित करें।
प्र. व्रत में क्या लें?
फलाहार/दूध/खीर सामान्य हैं; कुछ परंपराओं में निर्जला भी है। स्वास्थ्य और कुल-विधान के अनुसार अपनाएँ।
प्र. पारण का सही नियम क्या है?
अधिकतर परंपराओं में चंद्र-अर्घ्य के बाद पारण; कुछ में सुबह। अपने गुरु/कुलाचार से मार्गदर्शन लें।
प्र. क्या यह केवल लक्ष्मी-पूजन का पर्व है?
मुख्यधारा में लक्ष्मी-पूजन केंद्र में है; परन्तु कृष्ण-भक्ति परंपरा (ब्रज) में रास-लीला स्मरण, गुजरात में शरद पूनम गरबा, महाराष्ट्र में परिवारिक जागरण प्रमुख हैं।
Kojagiri Purnima 2025 समृद्धि, आरोग्य और सांस्कृतिक एकत्व का सुंदर संगम है। यदि आप तैयारी विधिपूर्वक करें—तिथि/समय की स्थानीय पुष्टि, स्वच्छता-सावधानियाँ और सत्संग-भक्ति—तो यह रात केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि घर-परिवार के लिए अनुभव बन जाती है।
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