Pitru Paksha: यह क्या है और पितृ पक्ष के दौरान क्या करें?

  • Post author:
  • Post category:धर्म
  • Reading time:7 mins read
  • Post last modified:सितम्बर 7, 2025

पितृ पक्ष

India में हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक का समय पितृ पक्ष (Pitru Paksha) कहलाता है। इसे “श्राद्ध पक्ष”, “महालय पक्ष” या कई जगहों पर Hadpak भी कहा जाता है। यह लगभग 16 दिनों का विशेष काल होता है जब लोग अपने पूर्वजों (Pitru) को याद करते हैं, उनके लिए तर्पण, श्राद्ध और दान करते हैं। माना जाता है कि इन दिनों में पितृ लोक के द्वार खुल जाते हैं और पूर्वज पृथ्वी पर आकर अपने वंशजों के श्राद्ध को स्वीकार करते हैं।

पितृ पक्ष का महत्व | Pitru Paksha ka Mahatva

पितृ पक्ष को हमारे धर्मग्रंथों में अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। महाभारत और पुराणों में उल्लेख है कि इस काल में पितरों को तर्पण और श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही वे अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और आशीर्वाद देते हैं। इसे पितृ ऋण चुकाने का भी समय माना जाता है। धर्मशास्त्रों में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति इस अवधि में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके परिवार में दीर्घायु, आरोग्य और समृद्धि बनी रहती है। कई मान्यताओं के अनुसार यह काल केवल पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए ही नहीं बल्कि जीवित वंशजों के आध्यात्मिक उत्थान के लिए भी शुभ माना जाता है। समाज में यह समय पारिवारिक एकता और परंपराओं को संजोने का अवसर भी बनता है।

pitru paksha ke niyam

पितृ पक्ष के दौरान क्या करें?

श्राद्ध और तर्पण

सबसे अहम कर्म है श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना। इसमें व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ अपने पूर्वजों को याद करता है और उन्हें तृप्त करने के लिए जल, तिल और पके हुए अन्न का अर्पण करता है। यह केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं बल्कि ancestors के प्रति आभार व्यक्त करने का माध्यम माना जाता है।

Pitru paksha me kya daan karna chahie

दान को pitru paksha में बहुत पुण्यदायी माना गया है। इस काल में किया गया दान केवल धार्मिक कर्म नहीं बल्कि ancestors के प्रति आभार का भी प्रतीक माना जाता है। परंपराओं के अनुसार, पूर्वजों की आत्मा को संतुष्ट करने और पितृ दोष को दूर करने के लिए दान करना अत्यंत आवश्यक है। लोग श्रद्धा और विश्वास के साथ दान करते हैं ताकि परिवार को सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त हो सके।

कुछ प्रमुख वस्तुएँ जिनका दान शुभ और फलदायी माना जाता है:

  • वस्त्र (जैसे धोती, साड़ी, अंगोछा)
  • अन्न, गुड़, काले तिल, नमक
  • चांदी के बर्तन, छाता, जूते आदि

ब्राह्मण और जरूरतमंद को भोजन कराना

ब्राह्मणों को श्रद्धा भाव से भोजन करवाना और दक्षिणा देना बहुत शुभ माना जाता है। यह केवल धार्मिक परंपरा ही नहीं बल्कि उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक माध्यम है। साथ ही, समाज के अन्य जरूरतमंदों को भी याद किया जाता है। गरीबों को अन्न दान करना, गाय को चारा खिलाना, कुत्तों और कौवों को भोजन देना तथा यहाँ तक कि चींटियों के लिए आटा या गुड़ डालना भी पितरों को प्रसन्न करने का कार्य माना गया है।

सात्विक आहार लेना

इन दिनों खुद भी सात्विक भोजन लेना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि भोजन शुद्ध, हल्का और पचने में आसान होना चाहिए ताकि मन और शरीर दोनों शांति का अनुभव कर सकें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सात्विक आहार लेने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और व्यक्ति के मन में भी शुद्धता आती है।

पितृ पक्ष के दौरान क्या न करें? | pitru paksha me kya na kare

मांगलिक कार्य न करें

पितृ पक्ष के दौरान किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य करना वर्जित माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस समय विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण या नया व्यवसाय शुरू करना अशुभ फल देता है। इसलिए इन दिनों परिवारजन केवल पूर्वजों की स्मृति में श्राद्ध और तर्पण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

कुछ प्रमुख बातें जिनसे बचना चाहिए:

  • विवाह, गृहप्रवेश या नया व्यवसाय आरंभ करना
  • धार्मिक उत्सव या मांगलिक कार्यक्रम आयोजित करना

तामसिक भोजन से परहेज़

इन दिनों मांस, शराब, लहसुन और प्याज़ का सेवन नहीं करना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा अप्रसन्न होती है और साधक की तपस्या निष्फल हो सकती है। सात्विक भोजन ही पितृपक्ष में श्रेयस्कर है।

अन्य वर्जनाएँ

पितृ पक्ष के समय कुछ और निषेध माने जाते हैं जिन्हें पालन करना आवश्यक है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और पारिवारिक परंपरा के अनुसार भी महत्वपूर्ण है।

  • बाल या दाढ़ी कटवाना, नाखून काटना
  • नए कपड़े खरीदना और पहनना
  • आडंबर और विलासिता का प्रदर्शन करना

धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ

पितृ पक्ष में श्रद्धा और विधि से किए गए कर्म से पितृ दोष दूर होता है। यह केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि मानसिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। जब व्यक्ति अपने पितरों को याद कर उनके लिए श्राद्ध, तर्पण और दान करता है, तो माना जाता है कि पूर्वज प्रसन्न होते हैं और परिवार को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इसका प्रभाव घर के वातावरण और परिवार के जीवन पर सकारात्मक रूप से पड़ता है।

कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार माने गए हैं:

  • परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
  • पितृ अपने वंशजों को स्वास्थ्य, संतान और आयु का आशीर्वाद देते हैं।
  • जीवन में आने वाली बाधाएँ और अशांति कम होती है।

सांस्कृतिक विविधताएँ

उत्तर भारत में इसे श्राद्ध पक्ष कहा जाता है। यहाँ लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। महाराष्ट्र और मध्य भारत में इसे हडपक (Hadpak) नाम से जाना जाता है, और इन क्षेत्रों में यह परंपरा परिवार और समाज दोनों में बड़े सम्मान के साथ निभाई जाती है। वहीं बंगाल में इसे महालया कहा जाता है और यह दुर्गा पूजा की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन विशेष पूजा और मंत्रोच्चार के साथ देवी दुर्गा का आवाहन किया जाता है, जो सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

पितृ पक्ष में क्या नहीं खरीदना चाहिए?
पितृ पक्ष के दौरान लोग आमतौर पर नई वस्तुएँ, गहने, या विलासिता की चीज़ें नहीं खरीदते। माना जाता है कि इस समय ऐसे ख़रीदारी करने से पूर्वजों की पूजा और श्राद्ध की गंभीरता प्रभावित होती है।

क्या पितृ पक्ष में नई चीज़ें खरीद सकते हैं?
परंपरागत रूप से पितृ पक्ष में नई चीज़ें खरीदना अशुभ माना जाता है। यह काल मांगलिक कार्यों और उत्सवों से दूर रहकर केवल पितरों को समर्पित होता है। इसलिए परिवारजन नई वस्तुओं की खरीददारी को पितृ पक्ष समाप्त होने के बाद तक टालते हैं।

क्या पितृ पक्ष में सोना खरीद सकते हैं?
परंपरागत मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में सोना खरीदना भी शुभ नहीं माना जाता। क्योंकि सोना ऐश्वर्य और उत्सव का प्रतीक है, और यह काल पूर्वजों की स्मृति और तर्पण को समर्पित होता है। इसलिए लोग इस दौरान सोना या अन्य कीमती धातुएँ खरीदने से परहेज़ करते हैं।

Pitru Paksha kitne din ka hota hai?
पितृ पक्ष कुल 16 दिनों का होता है। यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इस अवधि में प्रत्येक दिन किसी न किसी तिथि पर श्राद्ध करने की परंपरा होती है।

क्या पितृ पक्ष में मांसाहार कर सकते हैं?
नहीं, पितृ पक्ष में मांसाहार करना सख्ती से वर्जित माना जाता है। परंपरागत मान्यताओं के अनुसार इस समय केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए। मांस, मछली या अंडे जैसे पदार्थों का सेवन पूर्वजों के प्रति अनादर समझा जाता है और इससे किए गए श्राद्ध या तर्पण के आध्यात्मिक फल कम हो जाते हैं। 

Read also in English : Pitru Paksha: What Is It and What to Do During Pitru Paksha?

Reference : https://en.wikipedia.org/wiki/Pitru_Paksha

Last Updated on सितम्बर 7, 2025 by Hinditerminal.com