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पंढरपुर विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में भीमा नदी के तट पर स्थित पंढरपुर विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर, हिंदू धर्म की भक्ति परंपरा का एक अत्यंत पूजनीय केंद्र है। इसे ‘दक्षिण का काशी’ कहा जाता है और यह स्थल भगवान विठोबा (विठ्ठल) और उनकी पत्नी रुक्मिणी माता को समर्पित है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु विशेष रूप से आषाढ़ी और कार्तिक एकादशी पर यहां दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महाराष्ट्र की आत्मा से जुड़ा हुआ है।
श्री पांडुरंग विट्ठल को किसका रूप माना जाता है?
विठोबा को भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। ‘विठ्ठल’ शब्द संस्कृत के ‘विष्णु’ और ‘स्थल’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है – वह स्थान जहाँ भगवान विष्णु विराजमान हैं।
भक्तों के अनुसार, विठोबा का रूप एक करुणामय और साक्षात भक्तवत्सल भगवान का स्वरूप है। वे काले रंग के, दोनो हाथ कमर पर रखे हुए, सीधे खड़े दिखाई देते हैं, जो संकेत करते हैं कि वे भक्त पुंडलिक की सेवा से प्रसन्न होकर वहीं स्थिर हो गए थे।
पंढरपुर मंदिर का इतिहास और स्थापना कथा
पुंडलिक की कथा:
पंढरपुर मंदिर की स्थापना कथा में भक्त पुंडलिक का उल्लेख अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्कंद पुराण और संत परंपरा की मान्यताओं के अनुसार, पुंडलिक एक समय अपने माता-पिता की सेवा में लीन थे। जब भगवान श्रीकृष्ण (या विष्णु) उनसे मिलने आए, तो उन्होंने भगवान से थोड़ी प्रतीक्षा करने को कहा और एक ईंट (वीट) पर खड़ा रहने का आग्रह किया। भगवान भक्त की सेवा भावना से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने वहीं खड़े रहकर उसे दर्शन दिए। वही रूप आज विठोबा के रूप में प्रसिद्ध है।
ऐतिहासिक स्रोत:
स्कंद पुराण (काशी खंड, अध्याय 27) और पद्म पुराण (उत्तर खंड, अध्याय 6) में पंढरपुर तथा भक्त पुंडलिक की कथा का वर्णन मिलता है, संत नामदेव की अभंग वाणी और संत एकनाथ की रचनाओं में पंढरपुर का व्यापक उल्लेख मिलता है। इस स्थल का भक्ति आंदोलन में विशिष्ट स्थान रहा है और यह क्षेत्र संतों की साधना भूमि रहा है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 12वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य बनाया गया माना जाता है, जिसे यादव और विजयनगर शासकों ने भी संरक्षण दिया।
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रुक्मिणी माता का मंदिर
रुक्मिणी माता को विठोबा की पत्नी और भक्तों की आराध्य देवी माना जाता है। उनकी कथा के अनुसार, जब रुक्मिणी क्रुद्ध होकर पंढरपुर आई थीं, तब विठोबा उन्हें मनाने आए और यहीं दोनों का पुनर्मिलन हुआ। यह मंदिर विठोबा मंदिर के निकट स्थित है और यहां रुक्मिणी देवी की सुंदर मूर्ति विद्यमान है। देवी की पूजा मुख्यतः पारंपरिक रूप से विवाहित महिलाएं सौभाग्य की कामना से करती हैं।
पंढरपुर मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएं
पंढरपुर मंदिर का मुख्य गर्भगृह काले पत्थर से निर्मित है और इसका शिखर हेमाडपंथी शैली में बना हुआ है। मंदिर में भगवान विठोबा की मुख्य मूर्ति काले पत्थर की बनी हुई है, जो दो हाथों को कमर पर टिकाए हुए खड़ी मुद्रा में है।
प्रमुख विशेषताएं:
- पदुका दर्शन: गर्भगृह से पहले भगवान की चरण पादुका के दर्शन करने की परंपरा है।
- दीपमालाएं: मंदिर प्रांगण में बनी ऊंची दीपमालाएं विशेष अवसरों पर सजाई जाती हैं।
- नामदेव पायरी: यह मंदिर की सीढ़ियां हैं जहाँ संत नामदेव ने भजन गाए थे।
- दर्शन व्यवस्था: भक्तगण लंबी कतारों में खड़े होकर विठोबा के दर्शन करते हैं, जिसमें खासतौर पर ‘मुखदर्शन’ और ‘पाददर्शन’ प्रमुख हैं।
मंदिर से जुड़ी प्रमुख मान्यताएं और चमत्कारी घटनाएं
- ऐसा कहा जाता है कि भगवान स्वयं भक्त पुंडलिक की भक्ति से प्रसन्न होकर ईंट पर खड़े हुए और आज भी उसी रूप में विराजमान हैं।
- कई भक्तों को दर्शन देने की कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर, संत चोखामेळा, संत नामदेव शामिल हैं।
- मान्यता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से आषाढ़ी या कार्तिक एकादशी के दिन दर्शन करते हैं, उन्हें पुण्य फल प्राप्त होता है।
दर्शन विधि और पंढरपुर जाने का सही समय
दर्शन विधि:
- सबसे पहले भीमा नदी (चंद्रभागा) में स्नान करने की परंपरा है।
- स्नान के बाद मंदिर प्रवेश करके ‘नामदेव पायरी’ से सीढ़ियों द्वारा प्रवेश किया जाता है।
- भगवान विठोबा के चरणों की पादुका का दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है।
- मुख्य मूर्ति के समक्ष ‘मुखदर्शन’ करने के बाद भक्त जन अर्चना व आरती करते हैं।
आरती और पूजा का समय:
- काकड़ आरती: प्रातः 4:00 बजे
- मध्यान आरती: दोपहर 11:00 बजे
- धूप आरती: सायं 5:00 बजे
- शेज आरती: रात 10:00 बजे
दर्शन का सर्वोत्तम समय:
- आषाढ़ी एकादशी (जुलाई): लाखों वारीकरी पैदल यात्रा कर मंदिर में दर्शन करते हैं।
- कार्तिक एकादशी (अक्टूबर/नवंबर): भक्ति रस से ओतप्रोत वातावरण होता है।
- चातुर्मास: यह चार महीने भक्तिपूर्ण साधना और तीर्थाटन के लिए उपयुक्त होते हैं।
पंढरपुर वारी और विठ्ठल मंदिर का संबंध
वारी यानी पैदल यात्रा, संत तुकाराम (देहू) और संत ज्ञानेश्वर (आलंदी) की पालखी के साथ पंढरपुर पहुंचती है। लाखों भक्त, जिन्हें ‘वारीकरी’ कहा जाता है, मृदंग, वीणा, टाळ, अभंगों के साथ चलते हुए भक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यह यात्रा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि का मार्ग भी मानी जाती है।
पंढरपुर यात्रा कैसे करें? मंदिर तक पहुंचने के मार्ग और साधन
पंढरपुर कैसे पहुंचें?
- रेल मार्ग: पंढरपुर रेलवे स्टेशन प्रमुख जंक्शनों जैसे पुणे, मुंबई, सोलापुर से जुड़ा हुआ है।
- सड़क मार्ग: राज्य परिवहन (MSRTC) की नियमित बस सेवाएं पुणे, सोलापुर, कोल्हापुर, मुंबई से उपलब्ध हैं।
- नजदीकी हवाई अड्डा: सोलापुर और पुणे एयरपोर्ट।
ठहरने की व्यवस्था:
पंढरपुर में धर्मशालाएं, मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित विश्रामगृह, और निजी लॉजिंग की सुविधाएं उपलब्ध हैं। भीड़ के समय पूर्व बुकिंग कर लेना उचित होता है।
विठ्ठल भक्तों की प्रसिद्ध संत परंपरा
पंढरपुर न केवल एक तीर्थस्थल है, बल्कि संत परंपरा का आधार स्तंभ भी रहा है:
- संत नामदेव: जिन्होंने नामस्मरण और कीर्तन की परंपरा को जन्म दिया।
- संत तुकाराम: अपने अभंगों द्वारा भक्ति आंदोलन को दिशा दी।
- संत ज्ञानेश्वर: जिनकी रचनाओं में ज्ञान और भक्ति का सुंदर समन्वय मिलता है।
- संत चोखामेळा: जिन्होंने सामाजिक विषमता के विरुद्ध विठ्ठल भक्ति को जन-जन तक पहुंचाया।
पंढरपुर मंदिर के वर्तमान प्रशासन और सुविधाएं
मंदिर का संचालन ‘श्री विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर समिति’ द्वारा किया जाता है। समिति दर्शन व्यवस्था, स्वच्छता, आरती समय-सारिणी और विशेष अवसरों की व्यवस्था का संचालन करती है।
प्रमुख सुविधाएं:
- ऑनलाइन दर्शन बुकिंग प्रणाली
- कतार प्रबंधन और टोकन सिस्टम
- वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के लिए विशेष प्रवेश
- CCTV निगरानी, स्वच्छता सेवाएं
ऑनलाइन बुकिंग कैसे करें?
आप मंदिर के आधिकारिक पोर्टल पर जाकर दर्शन स्लॉट की बुकिंग कर सकते हैं:
- Official Website: https://vitthalrukminimandir.org/
- यहां पर “Online Darshan Booking” विकल्प पर क्लिक करके नाम, मोबाइल नंबर, आधार नंबर आदि जानकारी भरकर स्लॉट बुक कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
पंढरपुर विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि वह स्थान है जहाँ भक्ति, सेवा और समर्पण का वास्तविक अर्थ समझ आता है। यह मंदिर हमें संतों की वाणी, लोक परंपरा और सामाजिक समरसता की जीवंत प्रेरणा देता है। विठोबा का दर्शन न केवल नेत्रों को, बल्कि आत्मा को भी संतोष प्रदान करता है।
इसलिए, जब भी अवसर मिले, इस तीर्थस्थल की यात्रा अवश्य करें और संतों की भूमि पर अपने श्रद्धा और विश्वास की पुष्पांजलि अर्पित करें।
जय जय राम कृष्ण हरी!
इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: Vitthal Rukmini Temple- Pandharpur